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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 34
    ऋषिः - देवा ऋषयः देवता - अन्नपतिर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    वाजः॑ पु॒रस्ता॑दु॒त म॑ध्य॒तो नो॒ वाजो॑ दे॒वान् ह॒विषा॑ वर्द्धयाति। वाजो॒ हि मा॒ सर्व॑वीरं च॒कार॒ सर्वा॒ऽआशा॒ वाज॑पतिर्भवेयम्॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वाजः॑। पु॒रस्ता॑त्। उ॒त। म॒ध्य॒तः। नः॒। वाजः॑। दे॒वान्। ह॒विषा॑। व॒र्द्ध॒या॒ति॒। वाजः॑। हि। मा॒। सर्व॑वीर॒मिति॒ सर्व॑ऽवीरम्। च॒कार॑। सर्वाः॑। आशाः॑। वाज॑पति॒रिति॒ वाज॑ऽपतिः। भ॒वे॒य॒म् ॥३४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाजः पुरस्तादुत मध्यतो नो वाजो देवान्हविषा वर्धयाति । वाजो हि मा सर्ववीरञ्चकार सर्वाऽआशा वाजपतिर्भवेयम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वाजः। पुरस्तात्। उत। मध्यतः। नः। वाजः। देवान्। हविषा। वर्द्धयाति। वाजः। हि। मा। सर्ववीरमिति सर्वऽवीरम्। चकार। सर्वाः। आशाः। वाजपतिरिति वाजऽपतिः। भवेयम्॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 34
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ– যাহা (বাজঃ) অন্ন (হবিষা) দেওয়ার, নেওয়ার এবং খাওয়ার (পুরস্তাৎ) প্রথমে (উত) এবং (মধ্যতঃ) মধ্যে (নঃ) আমাদিগকে (বর্দ্ধয়াতি) বৃদ্ধি করিবে তথা যাহা (বাজঃ) অন্ন (দেবান্) দিব্যগুণগুলিকে বৃদ্ধি করিবে যাহা (হি)(বাজঃ) অন্ন (মা) আমাকে (সর্ববীরম্) যদ্দ্বারা সমস্ত বীর-পুরুষ হয়, এমন (চকার) করে তদ্দ্বারা আমি (বাজপতিঃ) অন্নাদি পদার্থের রক্ষাকর্ত্তা (ভবেয়ম্) হইব এবং (সর্বাঃ) সকল (আশাঃ) দিককে জিতিয়া লইব ॥ ৩৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- অন্নই সকল প্রাণিদেরকে বৃদ্ধি করে, অন্ন দ্বারাই প্রাণী সকল দিকে ভ্রমণ করে, অন্ন বিনা কিছুই করিতে পারে না ॥ ৩৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - বাজঃ॑ পু॒রস্তা॑দু॒ত ম॑ধ্য॒তো নো॒ বাজো॑ দে॒বান্ হ॒বিষা॑ বর্দ্ধয়াতি ।
    বাজো॒ হি মা॒ সর্ব॑বীরং চ॒কার॒ সর্বা॒ऽআশা॒ বাজ॑পতির্ভবেয়ম্ ॥ ৩৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - বাজঃ পুরস্তাদিত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । অন্নপতির্দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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