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  • यजुर्वेद - अध्याय 29/ मन्त्र 4
    ऋषिः - बृहदुक्थो वामदेव्य ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    स्ती॒र्णं ब॒र्हिः सु॒ष्टरी॑मा जुषा॒णोरु पृ॒थु प्रथ॑मानं पृथि॒व्याम्।दे॒वेभि॑र्यु॒क्तमदि॑तिः स॒जोषाः॑ स्यो॒नं कृ॑ण्वा॒ना सु॑वि॒ते द॑धातु॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्ती॒र्णम्। ब॒र्हिः। सु॒ष्टरी॑म। सु॒स्तरी॒मेति॑ सु॒ऽस्तरी॑म। जु॒षा॒णा। उ॒रु। पृ॒थु। प्रथ॑मानम्। पृ॒थि॒व्याम्। दे॒वेभिः॑। यु॒क्तम्। अदि॑तिः। स॒जोषा॑ इति॑ स॒ऽजोषाः॑। स्यो॒नम्। कृ॒ण्वा॒ना। सु॒वि॒ते। द॒धा॒तु॒ ॥४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तीर्णम्बर्हिः सुष्टरीमा जुषाणोरु पृथु प्रथमानम्पृथिव्याम् । देवेभिर्युक्तमदितिः सजोषाः स्योनङ्कृण्वान सुविते दधातु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्तीर्णम्। बर्हिः। सुष्टरीम। सुस्तरीमेति सुऽस्तरीम। जुषाणा। उरु। पृथु। प्रथमानम्। पृथिव्याम्। देवेभिः। युक्तम्। अदितिः। सजोषा इति सऽजोषाः। स्योनम्। कृण्वाना। सुविते। दधातु॥४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 29; मन्त्र » 4
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে বিদ্বান্ ! আমরা যেমন (পৃথিব্যাম্) ভূমিতে (উরু) বহু (পৃথু) বিস্তীর্ণ (প্রথমানম্) প্রখ্যাত (স্তীর্নম্) সব দিক দিয়া অঙ্গ উপাঙ্গ দ্বারা পূর্ণ যান এবং (বর্হিঃ) জল বা অন্তরিক্ষকে (জুষাণা) সেবন করিয়া (সজোষাঃ) সমান গুণীগন সেবিত (দেবেভিঃ) দিব্য পদার্থ দ্বারা (যুক্তম্) যুক্ত (স্যোনম্) সুখকে (কৃণ্বানা) করিয়া (অদিতিঃ) নাশরহিত বিদ্যুৎ সকলকে (সুবিতে) প্রেরণাকৃত যন্ত্রে (দধাতু) ধারণ করিবে তাহাকে (সুষ্টরীম) সুন্দর রীতি দ্বারা বিস্তার করিবে তদ্রূপ আপনিও করুন ॥ ৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ ! যে পৃথিবী আদিতে ব্যাপ্ত অখন্ডিত বিদ্যুৎ বিস্তৃত বৃহৎ কার্য্যকে সিদ্ধ করিয়া সুখ উৎপন্ন করে তাহাকে কার্য্যে প্রযুক্ত করিয়া প্রয়োজনসিদ্ধি সম্পাদন কর ॥ ৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - স্তী॒র্ণং ব॒র্হিঃ সু॒ষ্টরী॑মা জুষা॒ণোরু পৃ॒থু প্রথ॑মানং পৃথি॒ব্যাম্ ।
    দে॒বেভি॑র্য়ু॒ক্তমদি॑তিঃ স॒জোষাঃ॑ স্যো॒নং কৃ॑ণ্বা॒না সু॑বি॒তে দ॑ধাতু ॥ ৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - স্তীর্ণমিত্যস্য বৃহদুক্থো বামদেব্য ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা ।
    নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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