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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 19
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स्वप्नो॒ वै त॒न्द्रीर्निरृ॑तिः पा॒प्मानो॒ नाम॑ दे॒वताः॑। ज॒रा खाल॑त्यं॒ पालि॑त्यं॒ शरी॑र॒मनु॒ प्रावि॑शन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वप्न॑: । वै । त॒न्द्री: । नि:ऽऋ॑ति: । पा॒प्मान॑: । नाम॑ । दे॒वता॑: । ज॒रा । खाल॑त्यम् । पालि॑त्यम् । शरी॑रम् । अनु॑ । प्र । अ॒वि॒श॒न् ॥१०.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वप्नो वै तन्द्रीर्निरृतिः पाप्मानो नाम देवताः। जरा खालत्यं पालित्यं शरीरमनु प्राविशन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वप्न: । वै । तन्द्री: । नि:ऽऋति: । पाप्मान: । नाम । देवता: । जरा । खालत्यम् । पालित्यम् । शरीरम् । अनु । प्र । अविशन् ॥१०.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 19

    पदार्थ -

    १. शरीर में इन्द्रियादि देवों के प्रवेश कर लेने पर तथा प्राणापानादि के प्रविष्ट हो जाने पर शरीर सर्वव्यवहारक्षम हो गया। अब इसमें विविध विकारों का भी प्रारम्भ हुआ। (स्वप्न:) = स्वाप [निद्रा], (वै) = निश्चय से (तन्द्री:) = अलसता, (निर्ऋति:) = दुर्गति, (पाप्मान: नाम देवता:) = 'ब्रह्महत्या, सुरापान, स्तेय, परस्त्री-संसर्ग, दु:संग' आदि पापमय व्यवहार [दिव् व्यवहारे], (जरा) = बुढ़ापा, (खालत्यम्) = गजापन, (पालित्यम्) = बालों की सफ़ेदी-ये सब विकार (शरीरम् अनुप्राविशन्) = शरीर में अनुप्रविष्ट हो गये।

    भावार्थ -

    शरीर में प्राणन-व्यापार का प्रारम्भ हो जाने पर स्वप्न आदि विकारों का प्रवेश भी हो जाता है।

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