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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 8/ मन्त्र 3
    सूक्त - कौरुपथिः देवता - अध्यात्मम्, मन्युः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    दश॑ सा॒कम॑जायन्त दे॒वा दे॒वेभ्यः॑ पु॒रा। यो वै तान्वि॒द्यात्प्र॒त्यक्षं॒ स वा अ॒द्य म॒हद्व॑देत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दश॑ । सा॒कम् । अ॒जा॒य॒न्त॒ । दे॒वा: । दे॒वेभ्य॑: । पु॒रा । य: । वै । तान् । वि॒द्यात् । प्र॒ति॒ऽअक्ष॑म् । स: । वै । अ॒द्य । म॒हत् । व॒दे॒त् ॥१०.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दश साकमजायन्त देवा देवेभ्यः पुरा। यो वै तान्विद्यात्प्रत्यक्षं स वा अद्य महद्वदेत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दश । साकम् । अजायन्त । देवा: । देवेभ्य: । पुरा । य: । वै । तान् । विद्यात् । प्रतिऽअक्षम् । स: । वै । अद्य । महत् । वदेत् ॥१०.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 8; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    १. (पुरा) = सृष्टि के प्रारम्भ में (देवेभ्य:) = सूर्य आदि ब्रह्माण्ड के देवों से (दश देवा:) = शरीरस्थ चक्षु आदि दस देव (साकम् अजायन्त) = साथ-साथ प्रादुर्भूत हुए [सूर्यः चक्षुर्भूत्वा अक्षिणी प्राविशत्, अग्निर्वाग् भूत्वा मुखं प्राविशत्, वायुः प्राणो भूत्वा नासिके प्राविशत्०] २. (य:) = जो भी उपासक (वै) = निश्चय से (तान्) = उन देवों को (प्रत्यक्षं विद्यात्) = अपरोक्षरूप में जानता है-अर्थात् इन देवों का साक्षात्कार करता है, (सः वै) = वही निश्चय से (अद्य) = अब (महद् वदेत्) = देशकालकृत परिच्छेदरहित ब्रह्म को प्रतिपादित [उपदिष्ट] करता है। उसे इन देवों में प्रभु की महिमा दीखती है। यह महिमा उसे प्रभु का आभास प्राप्त कराती है।

    भावार्थ -

    शरीर में ब्रह्माण्ड के सूर्य आदि देवों से चक्षु आदि देव उत्पन्न होते हैं। इन देवों को जाननेवाला ही प्रभु की महिमा को देखनेवाला बनता है।

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