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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 25
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - ककुम्मत्यास्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    रोहि॑तो दिव॒मारु॑ह॒त्तप॑सा तप॒स्वी। स योनि॒मैति॒ स उ॑ जायते॒ पुनः॒ स दे॒वाना॒मधि॑पतिर्बभूव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रोहि॑त: । दिव॑म् । आ । अ॒रु॒ह॒त् । तप॑सा । त॒प॒स्वी । स: । योनि॑म् । आ । ए॒ति॒ । स: । ऊं॒ इति॑ । जा॒य॒ते॒ । पुन॑: । स: । दे॒वाना॑म् । अधि॑ऽपति: । ब॒भू॒व॒ ॥२.२५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रोहितो दिवमारुहत्तपसा तपस्वी। स योनिमैति स उ जायते पुनः स देवानामधिपतिर्बभूव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रोहित: । दिवम् । आ । अरुहत् । तपसा । तपस्वी । स: । योनिम् । आ । एति । स: । ऊं इति । जायते । पुन: । स: । देवानाम् । अधिऽपति: । बभूव ॥२.२५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 25

    पदार्थ -

    १. (रोहित:) = प्रभु की उपासना से अपना वर्धन करनेवाला (तपस्वी) = तपोमय जीवनवाला साधक (तपसा) = तप के द्वारा (दिवं आरुहत्) = प्रकाशमय ब्रह्मलोक में-मोक्ष में आरोहरण करता है। मोक्षप्राप्ति के लिए तपस्या अत्यन्त आवश्यक है। भोगप्रधान जीवन के साथ मोक्ष का सम्बन्ध नहीं है। (सः) = वह तपस्वी (योनिम् आ एति) = अपने घर [ब्रह्मलोक] को सब प्रकार से प्राप्त होता है। इस घर में परान्तकाल तक निवास करके (स:) = वह (उ) = निश्चय से (पुन: जायते) = पुनः जन्म लेता है, शरीरधारण करके इस लोक में आता है। २. (स:) = वह (देवानां अधिपतिः बभूव) = दिव्यगुणों का स्वामी होता है। यह मोक्ष से लौटनेवाला व्यक्ति उत्तम दिव्यगुणसम्पन्न जीवनवाला होता है। स्वर्गच्युत व्यक्तियों के जीवन में 'दान-प्रसंग, मधुरवाणी, देवार्चन तथा ब्राह्मण-तर्पण' आदि उत्तम गुणों की स्थिति होती है। (स्वर्गच्युतानामिह भूमिलोके चत्वारि चिहानि वसन्ति देहे। दानप्रसको मधुरा च वाणी सुरार्चनं ब्रह्म तर्पणं च॥)|

    भावार्थ -

    हम तपस्या के द्वारा उन्नत होते हुए मोक्ष प्राप्त करते हैं। परान्तकाल के पश्चात् पुनः यहाँ जन्म लेते हैं। उस समय हमारी वृत्ति दिव्यगुणसम्पन्न होती है।

     

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