अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 33
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
ति॒ग्मो वि॒भ्राज॑न्त॒न्वं शिशा॑नोऽरंग॒मासः॑ प्र॒वतो॒ ररा॑णः। ज्योति॑ष्मान्प॒क्षी म॑हि॒षो व॑यो॒धा विश्वा॒ आस्था॑त्प्र॒दिशः॒ कल्प॑मानः ॥
स्वर सहित पद पाठति॒ग्म: । वि॒ऽभ्राज॑न् । त॒न्व᳡म् । शिशा॑न: । अ॒र॒म्ऽग॒मास॑: । प्र॒ऽवत॑: । ररा॑ण: । ज्योति॑ष्मान् । प॒क्षी । म॒हि॒ष: । व॒य॒:ऽधा: । विश्वा॑: । आ । अ॒स्था॒त् । प्र॒ऽदिश॑: । कल्प॑मान: ॥२.३३॥
स्वर रहित मन्त्र
तिग्मो विभ्राजन्तन्वं शिशानोऽरंगमासः प्रवतो रराणः। ज्योतिष्मान्पक्षी महिषो वयोधा विश्वा आस्थात्प्रदिशः कल्पमानः ॥
स्वर रहित पद पाठतिग्म: । विऽभ्राजन् । तन्वम् । शिशान: । अरम्ऽगमास: । प्रऽवत: । रराण: । ज्योतिष्मान् । पक्षी । महिष: । वय:ऽधा: । विश्वा: । आ । अस्थात् । प्रऽदिश: । कल्पमान: ॥२.३३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 33
विषय - 'शक्ति व ज्योति' केधाता प्रभु
पदार्थ -
१. वे प्रभु (तिगमः) = शत्रुओं के लिए अति तीक्ष्ण व (विभ्राजन) = विशिष्ट दीसिवाले हैं। (तन्वं शिशान:) = अपने शरीर को अत्यन्त तीक्ष्ण बनानेवाले है-जो भी व्यक्ति अपने को प्रभु का शरीर बनाता है, अर्थात् प्रभु को अपने अन्दर बिठाता है, हृदय में प्रभु का ध्यान करता है, प्रभु उसकी शक्तियों को बढ़ाते हैं। (अरंगमासः प्रवतः रराण:) = [अर-शक्ति, प्रबत: Heights] शक्ति व उत्कर्षों को प्राप्त करानेवाले हैं। २.( ज्योतिषमान्) = वे प्रभु ज्योर्तिमय है, प्रकाशस्वरूप हैं। पक्षी-[पक्ष परिग्रहे] साधनों का परिग्रह करनेवाले हैं। (महिषः) = वे पूज्य प्रभु (वयोधाः) = उत्कृष्ट जीवन को धारण करनेवाले हैं। (विश्वाः प्रदिश:) = सब प्रकृष्ट [विस्तृत] दिशाओं को (कल्पमान:) = शक्तिशाली बनाते हुए (आस्थात्) = समन्तात् स्थित है। सब दिशाओं में स्थित प्राणियों को प्रभु ही शक्ति प्राप्त कराते हैं।
भावार्थ -
प्रभु को जो भी धारण करता है, प्रभु उसे शक्ति व ज्योति प्राप्त कराते हैं। प्रभु हमें शक्तिप्रापक उत्कर्षों की ओर ले-चलते हैं।
इस भाष्य को एडिट करें