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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 43
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - जगती सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    अ॒भ्यन्यदे॑ति॒ पर्य॒न्यद॑स्यतेऽहोरा॒त्राभ्यां॑ महि॒षः कल्प॑मानः। सूर्यं॑ व॒यं रज॑सि क्षि॒यन्तं॑ गातु॒विदं॑ हवामहे॒ नाध॑मानाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । अ॒न्यत् । ए॒ति॒ । परि॑ । अ॒न्यत् । अ॒स्य॒ते॒ । अ॒हो॒रा॒त्राभ्या॑म् । म॒हि॒ष: । कल्प॑मान: । सूर्य॑म्‌ । व॒यम् । रज॑सि । क्षि॒यन्त॑म् । गा॒तु॒ऽविद॑म् । ह॒वा॒म॒हे॒ । नाध॑माना: ॥२.४३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभ्यन्यदेति पर्यन्यदस्यतेऽहोरात्राभ्यां महिषः कल्पमानः। सूर्यं वयं रजसि क्षियन्तं गातुविदं हवामहे नाधमानाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । अन्यत् । एति । परि । अन्यत् । अस्यते । अहोरात्राभ्याम् । महिष: । कल्पमान: । सूर्यम्‌ । वयम् । रजसि । क्षियन्तम् । गातुऽविदम् । हवामहे । नाधमाना: ॥२.४३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 43

    पदार्थ -

    १. (अन्यत् अभि एति) = एक हमारी ओर आता है, (अन्यत् परि अस्यते) = दूसरा हमसे परे फेंका जाता है। दिन आता है तो रात्रि परे फेंकी जाती है। रात्रि आती है तो दिन परे फेंका जाता है। इसप्रकार (अहोरात्राभ्याम्) = दिन और रात्रि के द्वारा (महिषः) = वह पूजनीय प्रभु (कल्पमान:) = हमारे आयुष्यों को काट रहे हैं। दिन और रात्रि एक क्रम में आते हैं और हमारे आयुष्य को जीर्ण करते चलते हैं। २. उस (सूर्यम्) = सूर्यसम ज्योति ब्रह्म को (रजसि क्षियन्तम्) = सम्पूर्ण अन्तरिक्ष में निवास करनेवाले, (गातुविदम्) = हमारे लिए मार्ग का ज्ञापन करनेवाले को, (वयम्) = हम (नाथमानाः हवामहे) = प्रार्थना करते हुए पुकारते हैं। प्रभु ही मार्गदर्शन करते हुए हमें पापों से बचाते हैं और इस प्रकार हमारा कल्याण करते हैं।

    भावार्थ -

    दिन व रात्रि के निर्माण द्वारा हमारे आयुष्य का यापन होता चलता है। वे प्रभु सर्वत्र व्याप्त हैं, हमें मार्ग दिखा रहे हैं।

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