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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 34
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    चि॒त्रं दे॒वानां॑ के॒तुरनी॑कं॒ ज्योति॑ष्मान्प्र॒दिशः॒ सूर्य॑ उ॒द्यन्। दि॑वाक॒रोऽति॑ द्यु॒म्नैस्तमां॑सि॒ विश्वा॑तारीद्दुरि॒तानि॑ शु॒क्रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चि॒त्रम् । दे॒वाना॑म् । के॒तु: । अनी॑कम् । ज्योति॑ष्मान् । प्र॒ऽदिश॑: । सूर्य॑: । उ॒त्ऽयन् । दि॒वा॒ऽक॒र: । अति॑ । द्यु॒म्नै: । तमां॑सि । विश्वा॑ । अ॒ता॒री॒त् । दु॒:ऽइ॒तान‍ि॑ । शु॒क्र: ॥२.३४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चित्रं देवानां केतुरनीकं ज्योतिष्मान्प्रदिशः सूर्य उद्यन्। दिवाकरोऽति द्युम्नैस्तमांसि विश्वातारीद्दुरितानि शुक्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चित्रम् । देवानाम् । केतु: । अनीकम् । ज्योतिष्मान् । प्रऽदिश: । सूर्य: । उत्ऽयन् । दिवाऽकर: । अति । द्युम्नै: । तमांसि । विश्वा । अतारीत् । दु:ऽइतान‍ि । शुक्र: ॥२.३४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 34

    पदार्थ -

    १. वे प्रभु (देवानाम्) = सूर्यादि सब देवों के (केतुः) = प्रकाशक हैं, (चित्रं अनीकम्) = उनका बल अद्भुत है, सब देवों को प्रकाश और शक्ति प्राप्त करानेवाले प्रभु ही हैं। (ज्योतिष्मान्) = ज्योर्तिमय हैं। (प्रदिश:) = इन प्रकृष्ट दिशाओं में (सूर्यः उद्यन्) = सूर्यरूपेण उदित होते हुए वे प्रभु (दिवाकरः) = दिन व प्रकाश करनेवाले हैं। २. वे (शुक्र:) = पवित्र व दीप्त प्रभु (घुम्नैः) = ज्ञान-ज्योतियों से (विश्वा तमासि) = सब अज्ञानान्धकारों को (अति अतारीत्) = पार करनेवाले हैं-अविद्या-अन्धकार को नष्ट करके प्रकाश प्राप्त करानेवाले हैं। अविद्या-अन्धकार को दूर करके दुरितानि-सब दुरितों को भी वे प्रभु दूर करनेवाले हैं।

    भावार्थ -

    सब देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले प्रभु ज्योतिष्मान् हैं। वे हमारे अविद्या अन्धकार को दूर करके हमें सब दुरितों से पार ले-जाते हैं।

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