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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 34
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी पङ्क्तिः सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    59

    चि॒त्रं दे॒वानां॑ के॒तुरनी॑कं॒ ज्योति॑ष्मान्प्र॒दिशः॒ सूर्य॑ उ॒द्यन्। दि॑वाक॒रोऽति॑ द्यु॒म्नैस्तमां॑सि॒ विश्वा॑तारीद्दुरि॒तानि॑ शु॒क्रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    चि॒त्रम् । दे॒वाना॑म् । के॒तु: । अनी॑कम् । ज्योति॑ष्मान् । प्र॒ऽदिश॑: । सूर्य॑: । उ॒त्ऽयन् । दि॒वा॒ऽक॒र: । अति॑ । द्यु॒म्नै: । तमां॑सि । विश्वा॑ । अ॒ता॒री॒त् । दु॒:ऽइ॒तान‍ि॑ । शु॒क्र: ॥२.३४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चित्रं देवानां केतुरनीकं ज्योतिष्मान्प्रदिशः सूर्य उद्यन्। दिवाकरोऽति द्युम्नैस्तमांसि विश्वातारीद्दुरितानि शुक्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चित्रम् । देवानाम् । केतु: । अनीकम् । ज्योतिष्मान् । प्रऽदिश: । सूर्य: । उत्ऽयन् । दिवाऽकर: । अति । द्युम्नै: । तमांसि । विश्वा । अतारीत् । दु:ऽइतान‍ि । शुक्र: ॥२.३४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 34
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (चित्रम्) अद्भुत (अनीकम्) जीवनदाता [ब्रह्म], (देवानाम्) गतिमान् लोकों के (केतुः) जतानेवाले, (ज्योतिष्मान्) तेजोमय (सूर्यः) सर्वप्रेरक [परमात्मा] (प्रदिशः) सब दिशाओं में (उद्यन्) ऊँचे होते हुए, (दिवाकरः) दिन को रचनेवाले [सूर्य रूप], (शुक्रः) वीर्यवान् [परमेश्वर] ने (द्युम्नैः) अपने प्रकाशों से (तमांसि) अन्धकारों को (अति) लाँघकर (विश्वा) सब (दुरितानि) कठिनाइयों को (अतारीत्) पार किया है ॥३४॥

    भावार्थ

    जैसे यह सूर्य अन्धकार नाश करके दिन बनाकर प्रकाशमान है, वैसे ही वह परमेश्वर सूर्य आदि लोकों को रचकर धारण आकर्षण द्वारा सबकी रक्षा करता है, वैसे ही मनुष्य विद्या से प्रकाशमान होकर विघ्नों को हटावें ॥३४॥यह और अगला मन्त्र आगे हैं-अ० २०।१०७।१३, १४ ॥

    टिप्पणी

    ३४−(चित्रम्) अद्भुतम् (देवानाम्) गतिमतां लोकानाम् (केतुः) ज्ञापकः (अनीकम्) अनिहृषिभ्यां किच्च। उ० ४।१७। अन प्राणने-ईकन्। अनयति जीवयति यत् तद् ब्रह्म (ज्योतिष्मान्) तेजोमयः (प्रदिशः) (सूर्यः) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (उद्यन्) उत्कर्षेण प्राप्नुवन् (दिवाकरः) दिवाविभानिशा०। पा० ३।२।˜२१। दिवा+करोतेः-ट प्रत्ययः। दिनकरः। सूर्यो यथा (अति) अतीत्य (द्युम्नैः) द्युतिभिः। दीप्तिभिः (तमांसि) अन्धकारान् (विश्वा) सर्वाणि (अतारीत्) अपारयत् (दुरितानि) कष्टानि (शुक्रः) शुक्र-अर्शआद्यच्। वीर्यवान् ॥

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    विषय

    देवानाम् 'केतु:+अनीकम्'

    पदार्थ

    १. वे प्रभु (देवानाम्) = सूर्यादि सब देवों के (केतुः) = प्रकाशक हैं, (चित्रं अनीकम्) = उनका बल अद्भुत है, सब देवों को प्रकाश और शक्ति प्राप्त करानेवाले प्रभु ही हैं। (ज्योतिष्मान्) = ज्योर्तिमय हैं। (प्रदिश:) = इन प्रकृष्ट दिशाओं में (सूर्यः उद्यन्) = सूर्यरूपेण उदित होते हुए वे प्रभु (दिवाकरः) = दिन व प्रकाश करनेवाले हैं। २. वे (शुक्र:) = पवित्र व दीप्त प्रभु (घुम्नैः) = ज्ञान-ज्योतियों से (विश्वा तमासि) = सब अज्ञानान्धकारों को (अति अतारीत्) = पार करनेवाले हैं-अविद्या-अन्धकार को नष्ट करके प्रकाश प्राप्त करानेवाले हैं। अविद्या-अन्धकार को दूर करके दुरितानि-सब दुरितों को भी वे प्रभु दूर करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    सब देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले प्रभु ज्योतिष्मान् हैं। वे हमारे अविद्या अन्धकार को दूर करके हमें सब दुरितों से पार ले-जाते हैं।

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    भाषार्थ

    (चित्रम्) विचित्र (देवानाम् केतुः) देवों अर्थात् दिव्य ज्योतियों का ध्वज, (अनीकम्) प्राणप्रद, (ज्योतिष्मान्) ज्योति वाला (सूर्यः) सूर्य, (प्रदिशः) दूर की दिशा अर्थात् पूर्व क्षितिज से (उद्यन्) ऊपर को उठता हुआ, उदित होता हुआ (दिवाकरः) दिन का निर्माण करता है, (द्युम्नः) प्रकाशों द्वारा, (तमांसि) रात्रि के अन्धकारों का (अति) अतिक्रमण करता हुआ, (शुक्रः) चमकीला सूर्य (विश्वा दुरिता) सब दुष्परिणामों को (अतारीत) दूर करता है।

    टिप्पणी

    [अनीकम् = अनिति जीवयतीति (उणा० ४।१८), जो प्राणप्रद अर्थात् जीवन प्रद है। अन प्राणने। द्युम्नम् द्योततेः]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    Wondrous banner of divinities, life elevating, self-refulgent, pure, powerful and radiant harbinger of the day, the inspiring sun, rising over quarters of space, has dispelled all evils and darknesses of the world far out with its radiations of light.

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    Translation

    Wonderous bright appearance of the bounties of Nature, emitting light, the sun has risen up the mid-regions. The radiant maker of day with this intense brilliance has overcome all the darknesses difficult to traverse.

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    Translation

    This wondrous sun is like the banner of the rays and powerful forces. This brilliant sun rising in all directions and being inflaming crosses over all the deepest darkness by its refulgence and makes day.

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    Translation

    The Marvellous, Life-infusing God, the Indicator of the moving planets. Refulgent, All-urging, rising high in all directions, the Maker of the day, the Powerful God, has transcended all forms of darkness and overcome all impediments.

    Footnote

    See Atharva, 20-107-13.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३४−(चित्रम्) अद्भुतम् (देवानाम्) गतिमतां लोकानाम् (केतुः) ज्ञापकः (अनीकम्) अनिहृषिभ्यां किच्च। उ० ४।१७। अन प्राणने-ईकन्। अनयति जीवयति यत् तद् ब्रह्म (ज्योतिष्मान्) तेजोमयः (प्रदिशः) (सूर्यः) सर्वप्रेरकः परमेश्वरः (उद्यन्) उत्कर्षेण प्राप्नुवन् (दिवाकरः) दिवाविभानिशा०। पा० ३।२।˜२१। दिवा+करोतेः-ट प्रत्ययः। दिनकरः। सूर्यो यथा (अति) अतीत्य (द्युम्नैः) द्युतिभिः। दीप्तिभिः (तमांसि) अन्धकारान् (विश्वा) सर्वाणि (अतारीत्) अपारयत् (दुरितानि) कष्टानि (शुक्रः) शुक्र-अर्शआद्यच्। वीर्यवान् ॥

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