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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 2 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 6
    ऋषि: - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    स्व॒स्ति ते॑ सूर्य च॒रसे॒ रथा॑य॒ येनो॒भावन्तौ॑ परि॒यासि॑ स॒द्यः। यं ते॒ वह॑न्ति ह॒रितो॒ वहि॑ष्ठाः श॒तमश्वा॒ यदि॑ वा स॒प्त ब॒ह्वीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒स्ति । ते॒ । सू॒र्य॒ । च॒रसे॑ । रथा॑य । येन॑ । उ॒भौ । अन्तौ॑ । प॒रि॒ऽयासि॑ । स॒द्य: । यम् । ते॒ । वह॑न्ति । ह॒रित॑: । बर्हि॑ष्ठा: । श॒तम् । अश्वा॑: । यदि॑। वा॒ । स॒प्त । ब॒ह्वी: ॥2.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वस्ति ते सूर्य चरसे रथाय येनोभावन्तौ परियासि सद्यः। यं ते वहन्ति हरितो वहिष्ठाः शतमश्वा यदि वा सप्त बह्वीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वस्ति । ते । सूर्य । चरसे । रथाय । येन । उभौ । अन्तौ । परिऽयासि । सद्य: । यम् । ते । वहन्ति । हरित: । बर्हिष्ठा: । शतम् । अश्वा: । यदि। वा । सप्त । बह्वी: ॥2.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
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    हिन्दी (2)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (सूर्य) हे सूर्य ! [लोकों के चलानेवाले पिण्डविशेष] (ते) तेरे (रथाय) रथ [गति विधान] के लिये (चरसे) चलने को (स्वस्ति) कल्याण है, (येन) जिसके कारण से तू (उभौ) दोनों (अन्तौ) अन्तों [आगे-पीछे दोनों ओर, अथवा उत्तरायण और दक्षिणायन मार्ग] को (सद्यः) तुरन्त (परियासि) घूमता चलता है। (यम्) जिस [रथ] को (ते) तेरी (सप्त) सात [शुक्ल, नील, पीत आदि वर्णवाली-मन्त्र ४] (बह्वीः) बहुतसी [भिन्न-भिन्न वर्णवाली] (वहिष्ठाः) अत्यन्त बहनेवाली [शीघ्रगामी] (हरितः) आकर्षक किरणें (यदि वा) अथवा (शतम्) सौ [असंख्य] (अश्वाः) व्यापक गुण [घोड़े समान] (वहन्ति) ले चलते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    सूर्य गोल पिण्ड है, उसका प्रकाश आगे-पीछे सब ओर होता है और वह उत्तरायण और दक्षिणायन मार्ग पर चलता और किरणों द्वारा आकर्षण और वृष्टि आदि करके लोकों का धारण-पोषण करता है, उसी प्रकार मनुष्य विद्या आदि शुभ गुणों से प्रकाशमान होकर आगा-पीछा सोचकर संसार में अपना कर्तव्य पूरा करे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(स्वस्ति) कल्याणम् (ते) तव (सूर्य) हे रवे (चरसे) गमनाय (रथाय) रथो रंहतेर्गतिकर्मणः-निरु० ९।११। रंहणसामर्थ्याय। गतिविधानाय (येन) (उभौ) (अन्तौ) परं चापरं च देशौ। उत्तरायणदक्षिणायनमार्गौ (परियासि) परीत्य गच्छसि (सद्यः) तत्क्षणम् (यम्) रथम् (ते) तव (वहन्ति) गमयन्ति (हरितः) म० ४। आकर्षकाः किरणाः (वहिष्ठाः) वहितृतमाः। अतिशयेन वहनशीलाः। गन्तृतमाः (शतम्) असंख्याताः (अश्वाः) व्याप्तिगुणाः। तुरङ्गा यथा (सप्त) म० ४। (बह्वीः) बह्व्यः ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    O Sun, all well for your moving chariot by which you relentlessly go over both the bounds of your orbit. All well for you whom your varied lights of a hundred horse-power or, may be, seven abundant lights, transport on the way across space.

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