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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 2 के मन्त्र

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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 10
    ऋषि: - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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    उ॒द्यन्र॒श्मीना त॑नुषे॒ विश्वा॑ रु॒पाणि॑ पुष्यसि। उ॒भा स॑मु॒द्रौ क्रतु॑ना॒ वि भा॑सि॒ सर्वां॑ल्लो॒कान्प॑रि॒भूर्भ्राज॑मानः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒तऽयन् । र॒श्मीन्। आ । त॒नु॒षे॒ । विश्वा॑ । रू॒पाणि॑ । पु॒ष्य॒सि॒ । उ॒भा । स॒मु॒द्रौ । क्रतु॑ना । वि । भा॒सि॒ । सर्वा॑न् । लो॒कान् । प॒रि॒ऽभू: । भ्राज॑मान: ॥2.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्यन्रश्मीना तनुषे विश्वा रुपाणि पुष्यसि। उभा समुद्रौ क्रतुना वि भासि सर्वांल्लोकान्परिभूर्भ्राजमानः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उतऽयन् । रश्मीन्। आ । तनुषे । विश्वा । रूपाणि । पुष्यसि । उभा । समुद्रौ । क्रतुना । वि । भासि । सर्वान् । लोकान् । परिऽभू: । भ्राजमान: ॥2.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
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    हिन्दी (2)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे सूर्य !] (उद्यन्) ऊँचा होता हुआ तू (रश्मीन्) किरणों को (आ) सब ओर से (तनुषे) फैलाता है, और (विश्वा) सब (रूपाणि) रूपों [वस्तुओं] को (पुष्यसि) पुष्ट करता है। (उभौ) दोनों (समुद्रौ) समुद्रों [जड़ चेतन रूप संसार] को, (सर्वान् लोकान्) सब लोकों के (परिभूः) चारों ओर घूमता हुआ और (भ्राजमानः) चमकता हुआ तू (केतुना) अपने कर्म से (वि भासि) प्रकाशित कर देता है ॥१०॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार सूर्य ऊँचा होकर सृष्टि को प्रकाशित करके पुष्ट करता है, वैसे ही सब मनुष्य विद्या से सुभूषित होकर परोपकार करें ॥१०॥

    टिप्पणी

    १०−(उद्यन्) उद्गच्छन् (रश्मीन्) किरणान् (आ) समन्तात् (तनुषे) विस्तारयसि (विश्वा) सर्वाणि (रूपाणि) वस्तूनि (पुष्यसि) वर्धयसि (उभा) द्वौ (समुद्रौ) जड़चेतनरूपौ संसारौ (केतुना) कर्मणा (वि) विविधम् (भासि) दीपयसि (सर्वान्) (लोकान्) (परिभूः) परिग्राहकः। परिभ्राम्यन् (भ्राजमानः) प्रकाशमानः ॥

    Vishay

    Padartha

    Bhavartha

    English (1)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    Rising, O divine Sun, you spread the rays of light and nourish all forms of life with energy and pranic vitality. Lord over all, shining with self-refulgence and acts of divinity, you enlighten the people and all regions of the world and vest both oceans of earth and sky with splendour.

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