अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 23
इ॒मा आपः॒ प्र भ॑राम्यय॒क्ष्मा य॑क्ष्म॒नाश॑नीः। गृ॒हानुप॒ प्र सी॑दाम्य॒मृते॑न स॒हाग्निना॑ ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मा: । आप॑: । प्र । भ॒रा॒मि॒ । अ॒य॒क्ष्मा: । य॒क्ष्म॒ऽनाश॑नी: । गृ॒हान् । उप॑ । प्र । सी॒दा॒मि॒ । अ॒मृते॑न । स॒ह । अ॒ग्निना॑ ॥३.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा आपः प्र भराम्ययक्ष्मा यक्ष्मनाशनीः। गृहानुप प्र सीदाम्यमृतेन सहाग्निना ॥
स्वर रहित पद पाठइमा: । आप: । प्र । भरामि । अयक्ष्मा: । यक्ष्मऽनाशनी: । गृहान् । उप । प्र । सीदामि । अमृतेन । सह । अग्निना ॥३.२३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 23
विषय - अयक्ष्माः, आपः, अमृता अग्निः
पदार्थ -
१. (इमाः आप:) = इन जलों को जोकि (अयक्ष्मा:) = रोगरहित हैं-जिनमें किन्हीं रोगकृमियों के होने की आशंका नहीं है और जो (यक्ष्मनाशनी:) = रोगों का नाश करनेवाले हैं, उन जलों को (प्रभरामि) = मैं घर में प्रकर्षण प्राप्त कराता हूँ। २. मैं (गृहान्) = इन घरों को (उपप्रसीदामि) = समीपता से, प्रसन्नतापूर्वक प्राप्त होता हूँ-इन घरों में प्रसन्नतापूर्वक स्थित होता हूँ जोकि (अमृतेन अग्निना सह) = कभी न मरनेवाली-कभी न बुझनेवाली व नीरोगता प्राप्त करानेवाली यज्ञाग्नि के साथ है यज्ञाग्नि से युक्त हैं।
भावार्थ -
हमारे घर रोगनाशक जलों से युक्त हों तथा इन घरों में नीरोगता प्राप्त करानेवाली यज्ञाग्नि कभी बुझे नहीं।
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