अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 13
गोभ्यो॒ अश्वे॑भ्यो॒ नमो॒ यच्छाला॑यां वि॒जाय॑ते। विजा॑वति॒ प्रजा॑वति॒ वि ते॒ पाशां॑श्चृतामसि ॥
स्वर सहित पद पाठगोभ्य॑: । अश्वे॑भ्य: । नम॑: । यत् । शाला॑याम् । वि॒ऽजाय॑ते । विजा॑ऽवति । प्रजा॑ऽवति । वि । ते॒ । पाशा॑न् । चृ॒ता॒म॒सि॒ ॥३.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
गोभ्यो अश्वेभ्यो नमो यच्छालायां विजायते। विजावति प्रजावति वि ते पाशांश्चृतामसि ॥
स्वर रहित पद पाठगोभ्य: । अश्वेभ्य: । नम: । यत् । शालायाम् । विऽजायते । विजाऽवति । प्रजाऽवति । वि । ते । पाशान् । चृतामसि ॥३.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 13
विषय - 'विजावती प्रजावती' शाला
पदार्थ -
१. इस घर में होनेवाले (गोभ्यः अश्वेभ्यः) = गौओं व घोड़ों के लिए (नमः) = उचित अन्न दाना-घास प्राप्त कराते हैं [नमः अन्न]। (शालायां विजायते) = इस घर में विशिष्टरूप से (यत्) = जो पदार्थ है, उस सबके लिए हम आदर का भाव रखते हैं, उन सबका समुचित प्रयोग करते हैं। समुचित प्रयोग ही उनका आदर है। २. हे (विजावति) = विविध पदार्थों को उत्पन्न करनेवाली. (प्रजावति) = उत्तम सन्तानोंवाली शाले! (ते पाशान्) = तेरे सब जालों व बन्धनों को (विचृतामसि) = विशेषरूप से ग्रथित करते हैं।
भावार्थ -
घर में होनेवाली गौओं और घोड़ों को समुचित दाना-मास प्राप्त कराया जाए। गृह के सब पदार्थों का समुचित प्रयोग हो। गृह के सब बन्धनों को सुदृढ़ बनाया जाए।
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