अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 12
नम॒स्तस्मै॒ नमो॑ दा॒त्रे शाला॑पतये च कृण्मः। नमो॒ऽग्नये॑ प्र॒चर॑ते॒ पुरु॑षाय च ते॒ नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । तस्मै॑ । नम॑: । दा॒त्रे । शाला॑ऽपतये । च॒ । कृ॒ण्म॒: । नम॑: । अ॒ग्नये॑ । प्र॒ऽचर॑ते । पुरु॑षाय । च॒ । ते॒ । नम॑: ॥३.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्तस्मै नमो दात्रे शालापतये च कृण्मः। नमोऽग्नये प्रचरते पुरुषाय च ते नमः ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । तस्मै । नम: । दात्रे । शालाऽपतये । च । कृण्म: । नम: । अग्नये । प्रऽचरते । पुरुषाय । च । ते । नम: ॥३.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 12
विषय - घर में नियमित अग्निहोत्र
पदार्थ -
१. (तस्मै) = गतमन्त्र में वर्णित उत्तम सन्तान का निर्माण करनेवाले प्रजापति के लिए (नमः) = नमस्कार करते हैं। (दात्रे नमः) = दानशील पुरुष के लिए नमस्कार करते हैं (च) = और (शालापतये) = घर का रक्षण करनेवाले के लिए (नमः कृण्मः) = नमस्कार करते हैं और (ते) = तुझे (अग्नये प्रचरते पुरुषाय) = अग्नि की सेवा करनेवाले-नियमित रूप से अग्निहोत्र करनेवाले पुरुष के लिए (नमः) = नमस्कार करते हैं|
भावार्थ -
गृहस्थ को चाहिए कि घर में सन्तानों को उत्तम बनाने का प्रयल करे, दानशील हो, गृहरक्षण का ध्यान करे तथा घर में अग्निहोत्र के नियम को छिन्न न होने दे।
इस भाष्य को एडिट करें