Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 20
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शाला सूक्त

    कु॒लायेऽधि॑ कु॒लायं॒ कोशे॒ कोशः॒ समु॑ब्जितः। तत्र॒ मर्तो॒ वि जा॑यते॒ यस्मा॒द्विश्वं॑ प्र॒जाय॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कु॒लाये॑ । अधि॑ । कु॒लाय॑म् । कोशे॑ । कोश॑: । सम्ऽउ॑ब्जित: । तत्र॑ । मर्त॑: । वि । जा॒य॒ते॒ । यस्मा॑त् । विश्व॑म् । प्र॒ऽजाय॑ते ॥३.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुलायेऽधि कुलायं कोशे कोशः समुब्जितः। तत्र मर्तो वि जायते यस्माद्विश्वं प्रजायते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुलाये । अधि । कुलायम् । कोशे । कोश: । सम्ऽउब्जित: । तत्र । मर्त: । वि । जायते । यस्मात् । विश्वम् । प्रऽजायते ॥३.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 20

    पदार्थ -

    १. 'कुलम् अयते अत्र' इस व्युत्पत्ति से कुलाय शब्द 'एक परिवार के रहने के स्थान' का वाचक है। (कुलाये अधि) = एक कुलाय पर (कुलायम्) = कुलाय तथा (कोशे) = एक कोश पर (कोश:) = दूसरा कोश (समुजित:) = सम्यक् आवृत्त हुआ-हुआ है। एक बड़े परिवार में एक भाई नीचे के मकान में रहता है तो दूसरा ऊपर रह रहा है। २. (तत्र) = वहाँ (मर्त:) = मनुष्य (विजायते) = विशिष्टरूप से अपनी शक्तियों का प्रादुर्भाव करता है, (यस्मात् विश्वं प्रजायते) = जिससे कोई भी सन्तान असर्वाङ्ग [अ-विश्व, विकलांग] उत्पन्न नहीं होती-सब सन्तान सर्वाङ्ग ही होती हैं।

    भावार्थ -

    एक बड़े परिवार में एक भाई नीचे के गृह में रहता है तो दूसरा ऊपर के। सब मिलकर प्रेम से अपनी शक्तियों का विस्तार करते हैं, परिणामतः इनकी सब सन्ताने सर्वाङ्ग ही होती हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top