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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - परोष्णिक् सूक्तम् - शाला सूक्त

    ह॑वि॒र्धान॑मग्नि॒शालं॒ पत्नी॑नां॒ सद॑नं॒ सदः॑। सदो॑ दे॒वाना॑मसि देवि शाले ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ह॒वि॒:ऽधान॑म् । अ॒ग्नि॒ऽशाल॑म् । पत्नी॑नाम् । सद॑नम् । सद॑: । सद॑: । दे॒वाना॑म् । अ॒सि॒ । दे॒वि॒ । शा॒ले॒ ॥३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हविर्धानमग्निशालं पत्नीनां सदनं सदः। सदो देवानामसि देवि शाले ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हवि:ऽधानम् । अग्निऽशालम् । पत्नीनाम् । सदनम् । सद: । सद: । देवानाम् । असि । देवि । शाले ॥३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 7

    पदार्थ -

    १. हे (देवि शाले) = प्रकाशमय गृह ! [दिव्युती] तू (हविर्धानम् असि) = हवि को आहित करने का स्थान है। तेरा मुख्य कमरा 'अग्निहोत्र का कमरा है। सबसे प्रथम तुझमें इस पूजागृह की व्यवस्था की गई है। तब (अग्निशालम्) [असि] = तू अग्रिशाला है, तुझमें रसोईघर [Kitchen] की व्यवस्था की गई है। इसके पश्चात् तीसरा (पत्नीनां सदनम्) = गृहपनियों के उठने-बैठने का स्थान है। 'पत्नीनां' शब्द सम्मिलित परिवार की सूचना दे रहा है। इसके बाद (सदः) = पुरुषों के उठने-बैठने का कमरा है। २. इन पूजाग्रह आदि के अतिरिक्त (देवानां सदः असि) = आये-गये अतिथियों [अतिथिदेवो भव] का कमरा भी है। यही सामान्य बैठक [Drawing room] कहलाती है।

    भावार्थ -

    एक प्रकाशमय आदर्श गृह में पाँच कमरे होने चाहिएँ–'पूजागृह, रसोईघर, स्त्रियों का कमरा, पुरुषों का कमरा व अतिथिगृह'। इनके अतिरिक्त गोष्ठादि अलग होंगे ही।

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