Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 6
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - शाला छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - शाला सूक्त

    यानि॑ ते॒ऽन्तः शि॒क्यान्याबे॒धू र॒ण्या॑य॒ कम्। प्र ते॒ तानि॑ चृतामसि शि॒वा मा॑नस्य पत्नी न॒ उद्धि॑ता त॒न्वे भव ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यानि॑ । ते॒ । अ॒न्त: । शि॒क्या᳡नि । आ॒ऽबे॒धु: । र॒ण्या᳡य । कम् । प्र । ते॒ । तानि॑ । चृ॒ता॒म॒सि॒ । शि॒वा । मा॒न॒स्य॒ । प॒त्नि॒ । न॒: । उध्दि॑ता । त॒न्वे᳡ । भ॒व॒ ॥३.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यानि तेऽन्तः शिक्यान्याबेधू रण्याय कम्। प्र ते तानि चृतामसि शिवा मानस्य पत्नी न उद्धिता तन्वे भव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यानि । ते । अन्त: । शिक्यानि । आऽबेधु: । रण्याय । कम् । प्र । ते । तानि । चृतामसि । शिवा । मानस्य । पत्नि । न: । उध्दिता । तन्वे । भव ॥३.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १. हे शाले! (यानि शिक्यानि) = जिन छीको को [A loop or swing made of rope] (कम्) = सुख से (रण्याय) = रमणीयता के लिए (ते अन्त: आबेधु:) = शिल्पियों ने तेरे अन्दर बाँधा है, (ते तानि) = तेरे उन छींकों को (प्रचृतामसि) = प्रकर्षेण दृढ़ करते हैं। २. तू (शिवा) = कल्याणकर हो, (मानस्य पत्नी) = हमारे सम्मान का रक्षण करनेवाली हो। (न: तन्वे) = हमारे शक्ति-विस्तार के लिए, (उत् हिता भव) = ऊपर स्थापित हुई-हुई हो अथवा उत्कृष्ट हित करनेवाली हो।

    भावार्थ -

    हमारा घर कार्यार्थ बँधे हुए छौंकों से सुन्दर प्रतीत हो। यह घर कल्याणकर व सम्मानप्रद तथा हमारे शरीरों के स्वास्थ्य के लिए हितकर हो।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top