अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 19
ब्रह्म॑णा॒ शालां॒ निमि॑तां क॒विभि॒र्निमि॑तां मि॒ताम्। इ॑न्द्रा॒ग्नी र॑क्षतां॒ शाला॑म॒मृतौ॑ सो॒म्यं सदः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठब्रह्म॑णा । शाला॑म् । निऽमि॑ताम् । क॒विऽभि॑: । निऽमि॑ताम् । मि॒ताम् । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । र॒क्ष॒ता॒म् । शाला॑म् । अ॒मृतौ॑ । सो॒म्यम् । सद॑: ॥३.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मणा शालां निमितां कविभिर्निमितां मिताम्। इन्द्राग्नी रक्षतां शालाममृतौ सोम्यं सदः ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मणा । शालाम् । निऽमिताम् । कविऽभि: । निऽमिताम् । मिताम् । इन्द्राग्नी इति । रक्षताम् । शालाम् । अमृतौ । सोम्यम् । सद: ॥३.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 19
विषय - सौम्यं सदः
पदार्थ -
१. (ब्रह्मणा) = ज्ञानपूर्वक (निमिताम्) = बनाई गई (कविभिः मितां निमिताम्) = ज्ञानियों से मापी गई और मानपूर्वक बनाई गई इस (शालाम्) = शाला को (इन्द्राग्नी रक्षताम्) = बल और प्रकाश रक्षित करनेवाले हों। 'इन्द्र' बल का प्रतीक है और 'अग्नि' प्रकाश का। इस (शालाम्) = शाला को (अमृतौ) = विषय-वासना के पीछे न मरनेवाले-विषयों से अनाक्रान्त पति-पत्नी [माता-पिता] रक्षित करें। २. (सदः) = यह घर (सोम्यम्) = सौम्य न कि आग्नेय भोजनों से युक्त हो। सौम्य भोजन इस घर में रहनेवालों को 'अमृत'-नीरोग व दीर्घजीवी बनाएँ।
भावार्थ -
घर ज्ञानियों द्वारा ज्ञानपूर्वक मापकर बनाया जाए। इस घर में 'बल व प्रकाश'दोनों तत्वों को सिद्ध करने का यत्न किया जाए। सौम्य भोजनों का ही प्रयोग करते हुए यहाँ के लोग नौरोग व दीर्घजीवी हों।
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