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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 6
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - निचृदार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    अ॒सौ यस्ता॒म्रोऽअ॑रु॒णऽउ॒त ब॒भ्रुः सु॑म॒ङ्गलः॑। ये चै॑नꣳ रु॒द्राऽअ॒भितो॑ दि॒क्षु श्रि॒ताः स॑हस्र॒शोऽवै॑षा हेड॑ऽईमहे॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒सौ। यः। ता॒म्रः। अ॒रु॒णः। उ॒त। ब॒भ्रुः। सु॒म॒ङ्गल॒ इति॑ सुऽम॒ङ्गलः॑। ये। च॒। ए॒न॒म्। रु॒द्राः। अ॒भितः॑। दि॒क्षु। श्रि॒ताः। स॒ह॒स्र॒श इति॑ सहस्र॒ऽशः। अव॑। ए॒षा॒म्। हेडः॑। ई॒म॒हे॒ ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असौ यस्ताम्रोऽअरुणऽउत बभ्रुः सुमङ्गलः । ये चौनँ रुद्राऽअभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रशो वैषाँ हेड ईमहे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    असौ। यः। ताम्रः। अरुणः। उत। बभ्रुः। सुमङ्गल इति सुऽमङ्गलः। ये। च। एनम्। रुद्राः। अभितः। दिक्षु। श्रिताः। सहस्रश इति सहस्रऽशः। अव। एषाम्। हेडः। ईमहे॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 6
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    भावार्थ -
    ( असौ यः ) यह जो ( ताम्रः ) ताम्बे के समान रक्त कठिन शरीर एवं तेजस्वी ( अरुण ) अग्नि के समान तेजस्वी ( बभ्रुः ) सूर्य के समान पीले-लाल रंग का ( सुमङ्गलः ) शुभ मंगल चिन्हों से अलंकृत है । अथवा यह जो ( ताम्रः ) सूर्य के समान लाल सुर्ख, तेजस्वी और शत्रु को क्रेशित कर देने में समर्थ और ( अरुण: ) सूर्योदय के समय के सूर्य के समान गुलाबी प्रभा वाला, अथवा शत्रु से कभी न रोके जाने वाला, अथवा सबका शरण्य ( उत बभ्रुः ) पीले धुम्र वर्णं का, कापिल या पाटला रंग का अथवा अन्न के समान सब प्रजा और, भृत्य वर्गों का भरण पोषण पालन, करने में समर्थ ( सुमंगल: ) सुखपूर्व सर्वत्र विचरने में समर्थ है। और ( ये च) जो भी ( रुद्राः) शत्रु को रुलाने, रोकने वाले, या गंभीर गर्जना करने वाले वीर गण ( एनम् अभितः ) इसके इर्द गिर्द ( दिनु ) समस्त दिशाओं में ( सहस्रशः श्रिताः ) हजारों की संख्या में विराजमान हैं ( एपाम् ) इनके ( हेडः ) रोप, क्रोध या अनादर भाव को हम ( अव ईमहे ) दूर करें। शमन करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - निचृदार्षी पंक्तिः । पञ्चमः ॥

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