Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 38
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
    1

    नमः॒ कूप्या॑य चाव॒ट्याय च॒ नमो॒ वीध्र्या॑य चात॒प्याय च॒ नमो॒ मेघ्या॑य च विद्यु॒त्याय च॒ नमो॒ वर्ष्या॑य चाव॒र्ष्याय॑ च॥३८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। कूप्या॑य। च॒। अ॒व॒ट्या᳖य। च॒। नमः॑। वीध्र्या॒येति॑ वि॒ऽईध्र्या॑य। च॒। आ॒त॒प्या᳖येत्याऽत॒प्या᳖य। च॒। नमः॑। मेघ्या॑य। च॒। वि॒द्यु॒त्या᳖येति॑ विऽद्यु॒त्या᳖य। च॒। नमः॑। वर्ष्या॑य। च॒। अ॒व॒र्ष्याय॑। च॒ ॥३८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः कूप्याय चावट्याय च नमो वीर्ध्याय चातप्याय च नमो मेघ्याय च विद्युत्याय नमो वर्ष्याय चावर्ष्याय च नमो वात्याय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। कूप्याय। च। अवट्याय। च। नमः। वीध्र्यायेति विऽईध्र्याय। च। आतप्यायेत्याऽतप्याय। च। नमः। मेघ्याय। च। विद्युत्यायेति विऽद्युत्याय। च। नमः। वर्ष्याय। च। अवर्ष्याय। च॥३८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 38
    Acknowledgment

    भावार्थ -
    ( कूप्याय च ) कूपों पर नियत पुरुष, ( अवटयाय च ) अवट अर्थात् गढ़ों पर नियत पुरुष, ( वीध्याय च ) विविध प्रकाशों के विज्ञान में कुशल, ( आतप्याय च ) सूर्य के ताप का उत्तम उपयोग या विज्ञान वाले अथवा आपत, धूप में कार्य करने वाले, ( मेध्याय च ) मेघों का विज्ञान जानने वाले, (विद्युत्याय द्य च ) विद्युत् के विज्ञान में कुशल, ( वर्ष्याय च ) वृष्टि के विज्ञान में कुशल और ( वर्ष्याय च ) अवर्ष अर्थात् वर्षाओं के न होने पर जल का उचित प्रबन्ध करने में, अतिवृष्टि को दूर करने में समर्थ इन समस्त पुरुषों के राष्ट्र में उचित आदर, पद, अन्न, वेतन आदि प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भुरिगार्षी पक्तिः । पञ्चमः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top