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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 2
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - परमेश्वरो देवता छन्दः - निचृदाकृतिः स्वरः - पञ्चमः
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    उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि प्र॒जाप॑तये त्वा॒ जुष्टं॑ गृह्णाम्ये॒ष ते॒ योनिः॒ सूर्य्य॑स्ते महि॒मा। यस्तेऽह॑न्त्संवत्स॒रे म॑हि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ यस्ते॑ वा॒याव॒न्तरि॑क्षे महि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ यस्ते॑ दि॒वि सूर्ये॑ महि॒मा स॑म्ब॒भूव॒ तस्मै॑। ते महि॒म्ने प्र॒जाप॑तये॒ स्वाहा॑ दे॒वेभ्यः॑॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। त्वा॒। जुष्ट॑म्। गृ॒ह्णा॒मि॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। सूर्य्यः॑। ते॒। म॒हि॒मा। यः। ते॒। अह॑न्। सं॒व॒त्स॒रे। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। यः। ते। वा॒यौ। अ॒न्तरि॑क्षे। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। यः। ते॒। दि॒वि। सूर्य्ये॑। म॒हि॒मा। स॒म्ब॒भूवेति॑ सम्ऽब॒भूव॑। तस्मै॑। ते॒। म॒हि॒म्ने। प्र॒जाप॑तय॒ इति॑ प्र॒जाऽप॑तये। स्वाहा॑। दे॒वेभ्यः॑ ॥२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपयामगृहीतोसि प्रजापतये त्वा जुष्टम्गृह्णाम्येष ते योनिः सूर्यस्ते महिमा । यस्ते हन्त्सँवत्सरे महिमा सम्बभूव यस्ते वायावन्तरिक्षे महिमा सम्बभूव यस्ते दिवि सूर्ये महिमा सम्बभूव तस्मै ते महिम्ने प्रजापतये स्वाहा देवेभ्यः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उपयामगृहीत इत्युपयामऽगृहीतः। असि। प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। त्वा। जुष्टम्। गृह्णामि। एषः। ते। योनिः। सूर्य्यः। ते। महिमा। यः। ते। अहन्। संवत्सरे। महिमा। सम्बभूवेति सम्ऽबभूव। यः। ते। वायौ। अन्तरिक्षे। महिमा। सम्बभूवेति सम्ऽबभूव। यः। ते। दिवि। सूर्य्ये। महिमा। सम्बभूवेति सम्ऽबभूव। तस्मै। ते। महिम्ने। प्रजापतय इति प्रजाऽपतये। स्वाहा। देवेभ्यः॥२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 2
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    भावार्थ -
    हे राजन् ! तू (उपयाम-गृहीतः असि) राज्यव्यवस्था या निर्धारित राजनियमों द्वारा, स्वीकृत बद्ध है ( जुष्टम् ) सबके प्रेमपात्र (त्वा) तुझको (प्रजापतये) प्रजापति के पद के लिये (गृह्णामि ) स्वीकार करता हूँ और नियुक्त करता हूँ । (ते एषः योनिः ) तेरा यह स्थान, पद, अधिकार है । (सूर्यः ते महिमा) सूर्य तेरा महान् सामर्थ्य है । अर्थात् सूर्य तेरे अधिकार सामर्थ्य का आदर्श है । अर्थात् सूर्य दिन को प्रकट करता, अन्धकार को नाश करता है उसी प्रकार शत्रुरूप अन्धकार और अज्ञान को नाश करके प्रजा में सुख, शान्ति और ज्ञानप्रकाश फैला कर सब प्रजाजन को सत् कार्यों में प्रवृत्त कराने रूप (यः) जो (ते) तेरा ( अहनि ) दिन में दिनवत् उज्ज्वल राज्य में (महिमा) महान् सामर्थ्य (संवभूव) अच्छी प्रकार प्रकट हो रहा है । (संवत्सरे) सूर्य वर्ष में १२ मासों को उत्पन्न कर उनमें भूलोक से जल ग्रहण करता, पुनः वर्षा कर अन्न आदि उत्पन्न करता है, एवं समस्त प्राणियों को पालन करता है उसी प्रकार प्रजा से कर लेकर दुष्टों का दमन कर, सबको वर्षा के समान शान्ति देकर, ऐश्वर्य को प्रजा के हित लगाकर (संवत्सरे) पुनः समस्त प्रजाओं को एकत्र बसा देने रूप कार्य में हे राजन् ! (यः ते महिमा) जो तेरा महान् सामर्थ्य है । (वायौ) वायु सब प्राणों का आधार है उसी प्रकार सबके जीवनों का आधार होने से (यः) जो तेरा महान् सामर्थ्य (वायौ) 'वायु' में है । (अन्तरिक्षे ) अन्तरिक्ष सबको आच्छादित करता है उसी प्रकार सब पर छत्र-छाया रखने वाले तेरा (यः) जो (महिमा) महान् सामर्थ्यं (अन्तरिक्षे ) अन्तरिक्ष में (सं बभूव ) प्रकट होता है । अथवा - ( अन्तरिक्ष वायौ) अन्तरिक्ष में वायु बेरोक टोक वेग से गति करता है उसी प्रकार स्व और शत्रु राष्ट्र के बीच में स्थित मध्यम राष्ट्र में बेरोक गति करने का तेरा महान् सामर्थ्य है । (दिवि सूर्ये) महान् आकाश में सूर्य तेज से चमकता है, कभी अस्त नहीं होता, उसी प्रकार (दिवि ) तेजोमय राजसभा में तेरा (यः महिमा संबभूव) जो महान् सामर्थ्यं प्रकट है (तस्मै) उस (ते) तुझ (प्रजापतये) प्रजापालक राजा के (महिम्ने) महान् सामर्थ्य के लिये और (देवेभ्यः) तेरे अन्य देव, दानशील, विजयी, विद्वान् तेजस्वी पुरुषों के लिये भी (स्वाहा ) हमें उत्तम सत्कार करते हैं । परमेश्वर योग के यम नियमों से साक्षात् किया जाता है । ( जुष्टम् ) अति सेवनीय प्रिय उसे (प्रजापतये गृह्णामि ) प्रजापालक परमेश्वर करके मानता हूँ (एषः) यह समस्त विश्व उसका निवासस्थान है । सूर्य उसकी महिमा है, प्रतिदिन और प्रतिवर्ष में उसकी महिमा प्रकट होती है, उसकी महिमा वायु और अन्तरिक्ष में है । उसकी महिमा तेनोमय सूर्य में प्रकट है। उस परमेश्वर की, उसके प्रकट दिव्य गुणों की मैं (सुआहा) सदा स्तुति करूं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रजापतिः परमेश्वरो देवता । निचृदाकृतिः । पंचमः ॥

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