यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 36
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - स्त्रियो देवताः
छन्दः - भुरिगुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
1
नार्य॑स्ते॒ पत्न्यो॒ लोम॒ विचि॑न्वन्तु मनी॒षया॑।दे॒वानां॒ पत्न्यो॒ दिशः॑ सू॒चीभिः॑ शम्यन्तु त्वा॥३६॥
स्वर सहित पद पाठनार्य्यः॑। ते॒। पत्न्यः॑। लोम॑। वि। चि॒न्व॒न्तु॒। म॒नी॒षया॑। दे॒वाना॑म्। पत्न्यः॑। दिशः॑। सू॒चीभिः॑। श॒म्य॒न्तु॒। त्वा॒ ॥३६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नार्यस्ते पत्न्यो लोम विचिन्वन्तु मनीषया । देवानाम्पत्न्यो दिशः सूचीभिः शम्यन्तु त्वा ॥
स्वर रहित पद पाठ
नार्य्यः। ते। पत्न्यः। लोम। वि। चिन्वन्तु। मनीषया। देवानाम्। पत्न्यः। दिशः। सूचीभिः। शम्यन्तु। त्वा॥३६॥
विषय - सेनाओं के शस्त्रों द्वारा विजयी पुरुषों की पालक शक्तियों का शान्ति प्रयोग । इसी प्रकार उत्तम स्त्रियों द्वारा उत्तम पतियों की हृदयसुख शान्ति ।
भावार्थ -
हे राजन् ! (ते) तेरे राष्ट्र को ( पत्न्यः ) पालन करने वाली ( नार्यः ) नेता पुरुषों की बनी राजसभाएं और (नार्य:) पुरुषों के हित के लिये बनी सेनाएं, (मनीषया) बुद्धि से (ते) तेरे (लोभ) काटने योग्य, उच्छेद्य शत्रु को, नाई जिस प्रकार केशों को पकड़ कर काटता है उसी प्रकार ( विचिन्वन्तु ) विशेषरूप से पकड़ें, उनका चुन २ कर नाश करें और (देवानां पत्न्यः) विद्वानों की पालक (दिशः) दिशाओं में रहनेवाली प्रजाएं और सेनापति की आज्ञा में मार्ग देखनेहारी सेनाएं ( सूचीभिः ) अपनी ज्ञानसूचक नीतियों से और सेनाएं शस्त्रों से (त्वा शम्यन्तु ) तुझको शान्ति प्रदान करें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - स्त्रियो देवताः । भुरिगुष्णिक । ऋषभः ॥
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