यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 64
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - ईश्वरो देवता
छन्दः - विराडुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
1
होता॑ यक्षत् प्र॒जाप॑ति॒ꣳ सोम॑स्य महि॒म्नः।जु॒षतां॒ पिब॑तु॒ सोम॒ꣳ होत॒र्यज॑॥६४॥
स्वर सहित पद पाठहोता॑। य॒क्ष॒त्। प्र॒जाप॑ति॒मिति॑ प्र॒जाऽप॑तिम्। सोम॑स्य। म॒हि॒म्नः। जु॒षता॑म्। पिब॑तु। सोम॑म्। होतः॑। यज॑ ॥६४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
होता यक्षत्प्रजापतिँ सोमस्य महिम्नः । जुषताम्पिबतु सोमँ होतर्यज ॥
स्वर रहित पद पाठ
होता। यक्षत्। प्रजापतिमिति प्रजाऽपतिम्। सोमस्य। महिम्नः। जुषताम्। पिबतु। सोमम्। होतः। यज॥६४॥
विषय - होता द्वारा प्रजापालक राजा के अधीन ऐश्वर्ययुक्त राज्य का समर्पण ।
भावार्थ -
(होता) सब को अधिकार देनेहारा होता नामक विद्वान् ( प्रजापतिम् ) प्रजापति, प्रजापालक पुरुष को (सोमस्य ) समग्र राष्ट्र के ऐश्वर्य के (महिम्नः) बड़े भारी अधिकारी को ( यक्षत् ) प्रदान करे | वह ( सोमम् ) राष्ट्ररूप ऐश्वर्य को ( सोमम् ) राष्ट्ररूप ऐश्वर्य को (जुषताम् ) स्वीकार करे । और (पिबतु) उसका उपभोग करे । हे (होत:) होत: !? तू (यज) अधिकार प्रदान कर ।
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