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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - परमेश्वरो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यः प्रा॑ण॒तो नि॑मिष॒तो म॑हि॒त्वैक॒ऽइद्राजा॒ जग॑तो ब॒भूव॑। यऽईशे॑ऽअ॒स्य द्वि॒पद॒श्चत॒ु॑ष्पदः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः। प्रा॒ण॒तः। नि॒मि॒ष॒त इति॑ निऽमिष॒तः। म॒हि॒त्वेति॑ महि॒ऽत्वा। एकः॑। इत्। राजा॑। जग॑तः। ब॒भूव॑। यः। ईशे॑। अ॒स्य। द्वि॒पद॒ इति॑ द्वि॒ऽपदः॑। चतु॑ष्पदः। चतुः॑पद इति॒ चतुः॑पदः। कस्मै॑। दे॒वाय॑। ह॒विषा॑। वि॒धे॒म॒ ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यः प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो बभूव । यऽईशेऽअस्य द्विपदश्चतुष्पदः कस्मै देवाय हविषा विधेम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यः। प्राणतः। निमिषत इति निऽमिषतः। महित्वेति महिऽत्वा। एकः। इत्। राजा। जगतः। बभूव। यः। ईशे। अस्य। द्विपद इति द्विऽपदः। चतुष्पदः। चतुःपद इति चतुःपदः। कस्मै। देवाय। हविषा। विधेम॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 3
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    भावार्थ -
    परमेश्वर पक्ष में- (यः) जो परमेश्वर (महिला) अपने महान् सामर्थ्य से ( प्राणतः) प्राण लेने वाले और (निमिषतः) नेत्रादि की चेष्टा करने वाले सजीव, चर (जगतः ) जगत् का ( एक इत्) एकमात्र ( राजा बभूव) राजा है । और (यः) जो (अस्य) इस (द्विपदः) दोपाये मनुष्य, पक्षी और (चतुष्पदः) चौपाये पशु संसार का भी (ईशे) स्वामी है, (कस्मै देवाय) उस 'क' प्रजा के विधाता, परमेश्वर, प्रजापति, देव, सर्वद्रष्टा, सर्वसुखदाता सर्वस्रष्टा की (हविषा ) भक्ति से (विधेम) स्तुति, सेना, प्रार्थना करें । राजा भी अपने बड़े सामर्थ्य से समस्त प्राणधारी जगत् का राजा है, दुपाये चौपायों का स्वामी है, राज्यकर्त्ता, विधाता, उस प्रजापति का हम (हविषा) उसकी आज्ञानुसार चल कर अथवा अन्नादि भेंट योग्य पदार्थों से ( विधेम ) सत्कार करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कः प्रजापतिर्देवता । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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