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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 26
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - श्रीर्देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    ऊ॒र्ध्वामे॑ना॒मुच्छ्रा॑पय गि॒रौ भा॒रꣳ हर॑न्निव। अथा॑स्यै॒ मध्य॑मेधता शी॒ते वाते॑ पु॒नन्नि॑व॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊ॒र्ध्वाम्। ए॒ना॒म्। उत्। श्रा॒प॒य॒। गि॒रौ। भा॒रम्। हर॑न्नि॒वेति॒ हर॑न्ऽइव। अथ॑। अ॒स्यै॒। मध्य॑म्। ए॒ध॒ता॒म्। शी॒ते। वाते॑ पु॒नन्नि॒वेति॑ पु॒नन्ऽइ॑व ॥२६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्ध्वमेनामुच्छ्रापय गिरौ भारँ हरन्निव । अथास्य मध्यमेधताँ शीते वाते पुनन्निव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्ध्वाम्। एनाम्। उत्। श्रापय। गिरौ। भारम्। हरन्निवेति हरन्ऽइव। अथ। अस्यै। मध्यम्। एधताम्। शीते। वाते पुनन्निवेति पुनन्ऽइव॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 26
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    भावार्थ -
    ( गिरौ) पर्वत पर ( भारम् ) भार को, (हरन् इव) उठा ले जाने वाला पुरुष जिस प्रकार उसे ऊपर ले जाता है ( एनाम् ) इस प्रजा, पृथ्वी के शासन भार को (ऊर्ध्वाम् ) उन्नत पद पर (उत: श्रापय) उठा, उन्नत कर । (अथ) और (अस्यै) इस राष्ट्र प्रजा का ( मध्यम् ) मध्य भाग, बीच का, राजधानी का भाग ( एधताम् ) बढ़े, समृद्ध हो । (शीते वाते) शीतल वायु में जैसे किसान अन्न को छाज से गिरा-गिरा कर साफ करता है और वायु के बल से तुषों को दूर करता है और स्वच्छ अन्न की ढेरी को बढ़ाता है, उसी प्रकार हे राजन् ! तू भी (शीते वाते) शीत अर्थात् बढ़े हुए रक्षाकारी वायु के समान प्रचण्ड बल पर राष्ट्र को पवित्र कर, उसे दुष्ट पुरुषों से रहित कर । (२) दम्पति के पक्ष में- ( एनाम् ऊर्ध्वम् उत् श्रापय) इस स्त्री को तू उच्च पद पर स्थापित कर, हे पुरुष ! तू (गिरौ भारं हरन् इव ) पर्वत पर बोझा उठाकर लेजाने हारे के समान विशेष उत्तरदायित्व का भार उठा रहा है। इसका मध्य भाग, गर्भाशय, पुत्र, सन्तान आदि वृद्धि को प्राप्त हो तब तू अन्न को साफ करने वाले के समान (शीते) वृद्धिकारी और (बाते) पवित्र पदार्थों के आधार पर अपने आचार व्यवहार को पवित्र रख और बालक पर उत्तम संस्कार डाल । स्त्री के गर्भिणी होने के काल में पुरुष को भी संयम से रहना चाहिये । उसको 'शीत' अर्थात् वृद्धिकर, पुष्टिप्रद और पवित्र पदार्थों से पुष्ट करे 'शीतम्' – श्यैङ् वृद्धौ । भ्वादिः । श्रीर्वैराष्ट्रस्य भारः । श्रीर्वैराष्ट्रस्य मध्यम् । क्षेमो वै राष्ट्रस्य शीतम् । श० ३।३।१-४ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - श्रीर्देवता। अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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