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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 19
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - गणपतिर्देवता छन्दः - शक्वरी स्वरः - धैवतः
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    ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिꣳहवामहे प्रि॒याणां॑ त्वा प्रि॒यप॑तिꣳहवामहे निधी॒नां त्वा॑ निधि॒पति॑ꣳ हवामहे वसो मम। आहम॑जानि गर्भ॒धमा त्वम॑जासि गर्भ॒धम्॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग॒णाना॑म्। त्वा॒। ग॒णप॑ति॒मिति॑ ग॒णऽप॑तिम्। ह॒वा॒म॒हे॒। प्रि॒याणा॑म्। त्वा॒। प्रि॒यप॑ति॒मिति॑ प्रि॒यऽप॑तिम्। ह॒वा॒म॒हे॒। नि॒धी॒नामिति॑ निऽधी॒नाम्। त्वा॒। नि॒धि॒पति॒मिति॑ निधि॒ऽपति॑म्। ह॒वा॒म॒हे॒। व॒सो॒ऽइति॑ वसो। मम॑। आ। अ॒हम्। अ॒जा॒नि॒। ग॒र्भ॒धमिति॑ गर्भ॒ऽधम्। आ। त्वम्। अ॒जा॒सि॒। ग॒र्भ॒धमिति॑ गर्भ॒ऽधम् ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गणानान्त्वा गणपतिँ हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपतिँ हवामहे निधीनान्त्वा निधिपतिँ हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    गणनाम्। त्वा। गणपतिमिति गणऽपतिम्। हवामहे। प्रियाणाम्। त्वा। प्रियपतिमिति प्रियऽपतिम्। हवामहे। निधीनामिति निऽधीनाम्। त्वा। निधिपतिमिति निधिऽपतिम्। हवामहे। वसोऽइति वसो। मम। आ। अहम्। अजानि। गर्भधमिति गर्भऽधम्। आ। त्वम्। अजासि। गर्भधमिति गर्भऽधम्॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 19
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे जगदीश्‍वर, आम्ही (उपासकगण) (गणानाम्) गणांमधे (मनुष्य-समूहामधे) व्यापक असलेल्या (गणपतिम्) गणांचे पालन करणार्‍या (त्वा) अशा आपणाला (हवामहे) (आमचा एकमेव पालक म्हणून) स्वीकार करतो. (प्रियाणाम्) अतिप्रिय वा अतिसुंदर वस्तू वा व्यक्तीमधून (प्रियपतिम्) सर्वांहून प्रिय व सुंदर अशा (त्वा) आपली (हवामहे) प्रशंसा करतो. (निधीनाम्) विद्या आदी पदार्थांची पुष्टी करणार्‍या लोकांमधे (निधिपतिम्) विद्या आदी पदार्थांचे खर्‍या अर्थाने रक्षण करणार्‍या (त्वा) आपणास आम्ही (हवामहे) स्वीकार करतो (आपणासारखा पालक, प्रिय वा विधिदाता अन्य कोणी नाही) हे वसो) ज्यामधे सर्वप्राणी निवास करतात) सर्वव्यापी असल्यामुळे सर्व सृष्टी व प्राणी आपल्यामधे आहेत) असे हे परमेश्‍वर (मम्) माझे न्यायाधीश व्हा (माझ्या कर्म-दुष्कर्मादीचे फळ्या) आपण (गर्भधम्) गर्भ ज्याप्रमाणे शिशूला, तद्वत जगाला धारण करणार्‍या प्रकृतीला धारण करीत आहात. (त्यम्) आपण (आ, अजासि) जन्म आदी दोषापासून मुक्त आहात, अशा त्या (गर्भधम्) प्रकृती धारण करणार्‍या आपणाला (अहम्) मी (आ, अजानि) चांगल्या प्रकारे जाणावे (हेच माझ्या हिताचे आहे) ॥19॥

    भावार्थ - भावार्थ - हे मनुष्यांनो, सर्व जगाचे रक्षक, इच्छित सुखप्रदाता, ऐश्‍वर्यदाता, प्रकृति-पालक आणि सर्वांची उत्पत्तिकारक अशा जगदीश्‍वराचीच तुम्ही उपासना करा. ॥19॥

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