ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 30/ मन्त्र 14
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
महि॒ ज्योति॒र्निहि॑तं व॒क्षणा॑स्वा॒मा प॒क्वं च॑रति॒ बिभ्र॑ती॒ गौः। विश्वं॒ स्वाद्म॒ संभृ॑तमु॒स्रिया॑यां॒ यत्सी॒मिन्द्रो॒ अद॑धा॒द्भोज॑नाय॥
स्वर सहित पद पाठमहि॑ । ज्योतिः॑ । निऽहि॑तम् । व॒क्षणा॑सु । आ॒मा । प॒क्वम् । च॒र॒ति॒ । बिभ्र॑ती । गौः । विश्व॑म् । स्वाद्म॑ । सम्ऽभृ॑तम् उ॒स्रिया॑याम् । यत् । सी॒म् । इन्द्रः॑ । अद॑धात् । भोज॑नाय ॥
स्वर रहित मन्त्र
महि ज्योतिर्निहितं वक्षणास्वामा पक्वं चरति बिभ्रती गौः। विश्वं स्वाद्म संभृतमुस्रियायां यत्सीमिन्द्रो अदधाद्भोजनाय॥
स्वर रहित पद पाठमहि। ज्योतिः। निऽहितम्। वक्षणासु। आमा। पक्वम्। चरति। बिभ्रती। गौः। विश्वम्। स्वाद्म। सम्ऽभृतम् उस्रियायाम्। यत्। सीम्। इन्द्रः। अदधात्। भोजनाय॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 30; मन्त्र » 14
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
यथा गौर्वक्षणास्वामा पक्वं बिभ्रती चरति यदत्र महि निहितं ज्योतिरुस्रियायां विश्वं स्वाद्म सम्भृतं चरति स इन्द्रो भोजनाय सर्वं सीमदधादिति सर्वैर्वेद्यम् ॥१४॥
पदार्थः
(महि) महत् (ज्योतिः) तेजः (निहितम्) स्थितम् (वक्षणासु) वहमानासु नदीषु। वक्षणा इति नदीना०। निघं० १। १३। (आमा) आमानि (पक्वम्) (चरति) गच्छति (बिभ्रती) धरन्ती (गौः) या गच्छति सा (विश्वम्) सर्वम् (स्वाद्म) अतिस्वादुमत् (सम्भृतम्) सम्यग्धृतं पोषितं वा (उस्रियायाम्) पृथिव्याम् (यत्) या (सीम्) सर्वतः (इन्द्रः) विद्युत् (अदधात्) दधाति (भोजनाय) पालनायाऽभ्यवहरणाय वा ॥१४॥
भावार्थः
यो विद्युद्भूम्यब्वाय्वन्तरिक्षेषु तद्विकारेषु पदार्थेषु च व्याप्य सर्वं धृत्वा पालयति तस्या विद्यां सर्वे स्वीकुर्वन्तु ॥१४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
(यत्) जो (गौः) चलनेवाली (वक्षणासु) बहती हुई नदियों में (आमा) कच्चे वा (पक्वम्) पके हुए को (बिभ्रती) धारण करती हुई (चरति) चलती है जो इस संसार में (महि) बड़ा (निहितम्) स्थित (ज्योतिः) तेज वा (उस्रियायाम्) पृथिवी में (विश्वम्) संपूर्ण (स्वाद्म) अतिस्वादुवाले (सम्भृतम्) उत्तम प्रकार, धारण वा पोषण किये हुए पदार्थ को प्राप्त होती है वह (इन्द्रः) बिजुली (भोजनाय) पालन वा भोजन के लिये सबको (सीम्) सब ओर से (अदधात्) धारण करती है, यह सब जनों को जानना चाहिये ॥१४॥
भावार्थ
जो बिजुली भूमि जल वायु और अन्तरिक्ष तथा उनके विकारों और पदार्थों में व्यापक हो और सबको धारण कर पालन करती है, उसकी विद्या को सब लोग धारण वा स्वीकार करें ॥१४॥
विषय
जल, दुग्ध व अन्न
पदार्थ
[१] (वक्षणासु) = नदियों में (महि) = महनीय (ज्योतिः) = [ज्योतिरमृतम्-जलम् श० १४।४ | १ | ३२] अमृत [=जल] (निहितम्) = स्थापित किया गया है। प्रभु ने नदियों में उस जल की स्थापना की है, जो सचमुच अमृत है। ठीक उपयुक्त होने पर जल सब रोगों का औषध ही है, इसका नाम ही 'भेषजम्' है। अन्य पेय द्रव्यों की अपेक्षा जल का प्रयोग ही ठीक है। [२] (आमा गौः) = न पकी उमरवाली-तरुणी गौ (पक्वम्) = अपने ऊधस् में पक्क दुग्ध को (विभ्रती) = धारण करती हुई चरति वायु के साथ खुले प्रदेशों में विचरण करती है [वायुर्येषां सहचारं जुजोष] । गौ से दोहा गया ताजा दूध अमृत तुल्य है, उसे उबाले बिना ही पीना अत्यन्त श्रेयस्कर है। दोहे जाते समय वह वस्तुत: उष्ण होता ही है । [३] (विश्वम्) = सब (स्वाद्म) = स्वादिष्ट भोज्य द्रव्य (उस्त्रियायाम्) = [पृथिव्याम् द०, उस्रा= the earth] पृथिवी से उत्पन्न होनेवाले अन्नों में (सम्भृतम्) = सम्यक् भृत हुए हैं। (यत्) = जिन पदार्थों को सीम् निश्चय से (इन्द्रः) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु ने (भोजनाय) = भोजन के लिए (अदधात्) = धारण किया है-स्थापित किया है।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु ने हमारे पालन-पोषण के लिए 'नदियों में जल, गौवों में दूध व पृथिवी में सब स्वादिष्ट अन्नों व फलों' का स्थापन किया है। वस्तुत: 'जल, दूध, अन्न व फल' आदि पर ही हमें अपना भरण-पोषण रखना चाहिये ।
विषय
राजा के अधीन उत्तम भूमि का वर्णन, पक्षान्तर में आचार्य की वाणी का वर्णन।
भावार्थ
(वक्षणासु) जगत् को धारण करने वाली दिशाओं के बीच में यह सूर्य (महि ज्योतिः निहितम्) बड़ा भारी प्रकाश सूर्य रूप स्थापित है और (आमा) उसकी सहचरी (गौः) पृथिवी (पक्वं विभ्रती) परिपक्व अन्न या स्वरूप को धारण करती हुई (चरति) विचरती, गौ के समान उत्तम रस अन्नों को उत्पन्न करने वाली भूमि में (इन्द्रः) जल देने वाला मेघ वा (सीम्) सूर्य (यत्) जो कुछ भी सर्वप्रकार के (भोजनाय) प्राणियों के भोजन करने और उनकी रक्षा करने के लिये (अदधात्) धारण कराता है इसलिये उस पृथिवी में (विश्वं) सब प्रकार का (स्वाद्म) उत्तम स्वादयुक्त वा उत्तम खाद्य अन्न आदि पदार्थ (संभृतम्) अच्छी प्रकार स्थित और पुष्ट होता है। (२) इसी प्रकार—(वक्षणासु) वहन या धारण करने में समर्थ सेनाओं और प्रजाओं में ही (महि ज्योतिः निहितम्) जलधाराओं में विद्युत् के समान बड़ाभारी तेज स्थित रहता है। वह (आमा) बल में कच्ची, निर्बल होकर भी गौ के समान (पक्वं विभ्रती चरति) परिपक्व बलवान् वीर्यवान् स्वामी को धारण करती हुई पत्नी के समान ही उसका सुख भोग करती है अथवा स्वयं निर्बल रहकर उस (पक्वं) परिपक्व वीर्यवत् दृढ़ तेज को धारण करती हुई (चरति) उसका भोग करती है। जिसको (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् राजा (भोजनाय) सबके भोग और रक्षा के लिये धारण करता है वह (विश्व स्वाद्मं) सब प्रकार का सुखकारक, सुखादु भोजन और बल (उस्त्रियायां संभृतम्) दुधार गौ के समान सब पदार्थों की उत्पादक भूमि वा प्रजा में अच्छी प्रकार विद्यमान और परिपुष्ट होता है। (३) (इन्द्रः) विद्वान् आचार्य (भो-जनाय) रक्षणीय शिष्य को जो ज्ञान प्रदान करता है वह ज्ञानोत्पादक वाणी में अच्छी प्रकार स्थित है। (वक्षणासु) वचनयोग्य वाणियों में ही बड़ा ज्ञानप्रकाश स्थित है यह (गौः) ज्ञानवाणी स्वयं (आमा) कोमल होकर भी परिपक्व ज्ञान को धारण करती हुई (चरति) गुरु से शिष्य का प्राप्त होती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:– १, २, ९—११, १४, १७, २० निचृतत्रिष्टुप्। ५, ६, ८,१३, १९, २१, २२ त्रिष्टुप्। १२, १५ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ४, ७, १६, १८ भुरिक् पङ्क्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी विद्युत भूमी, जल, वायू व अंतरिक्ष आणि त्याच्या विकारात व पदार्थात व्यापक असते, तसेच सर्वांना धारण करून पालन करते तिची विद्या सर्व लोकांनी स्वीकारावी. ॥ १४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The moving world moves on bearing the great and glorious light of the lord and whatever mature and maturing vitality is held in the flowing streams of nature’s matter and energy, and whatever delicious delicacies are treasured in the earth and in the cow’s udders, all these Indra creates and holds therein for the sustenance of life in existence.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties and functions of the government servants and people are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The moving electricity pervades the flowing rivers bearing finished and raw articles. It is great light on earth. On this earth much sweetness has been provided by God. This electricity upholds all for their protection and foods. All should know this truth.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
All men should know the science of that electricity which pervades the earth, waters, air, firmament and their products and upholds them.
Foot Notes
(वक्षणासु) वहमानासु नदीषु । वक्षणा इति नदीनाम | (N.G. 1, 13)= In the flowing rivers. (उस्त्रियायाम् ) पृथिव्याम् । = On the earth. (भोजनाय ) पालनायाऽभ्यवहरणाय वा । (भोजनाय ) भुज-पालनेभ्यवहरणयोः (रुधा) = To protect, to eat, to enjoy.
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