ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 30/ मन्त्र 21
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आ नो॑ गो॒त्रा द॑र्दृहि गोपते॒ गाः सम॒स्मभ्यं॑ स॒नयो॑ यन्तु॒ वाजाः॑। दि॒वक्षा॑ असि वृषभ स॒त्यशु॑ष्मो॒ऽस्मभ्यं॒ सु म॑घवन्बोधि गो॒दाः॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । गो॒त्रा । द॒र्दृ॒हि॒ । गो॒ऽप॒ते॒ । गाः । सम् । अ॒स्मभ्य॑म् । स॒नयः॑ । य॒न्तु॒ । वाजाः॑ । दि॒वक्षाः॑ । अ॒सि॒ । वृ॒ष॒भ॒ । स॒त्यऽशु॑ष्मः । अ॒स्मभ्य॑म् । सु । म॒घ॒ऽव॒न् । बो॒धि॒ । गो॒ऽदाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो गोत्रा दर्दृहि गोपते गाः समस्मभ्यं सनयो यन्तु वाजाः। दिवक्षा असि वृषभ सत्यशुष्मोऽस्मभ्यं सु मघवन्बोधि गोदाः॥
स्वर रहित पद पाठआ। नः। गोत्रा। दर्दृहि। गोऽपते। गाः। सम्। अस्मभ्यम्। सनयः। यन्तु। वाजाः। दिवक्षाः। असि। वृषभ। सत्यऽशुष्मः। अस्मभ्यम्। सु। मघऽवन्। बोधि। गोऽदाः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 30; मन्त्र » 21
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 4; मन्त्र » 6
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 4; मन्त्र » 6
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह।
अन्वयः
हे वृषभ मघवन् ! यतस्त्वं गोदाः सत्यशुष्मोऽसि तस्मादस्मभ्यं सुबोधि। हे गोपते यथाऽस्मभ्यं सनयो दिवक्षा वाजाः संयन्तु तथैव त्वं नो गोत्रा गाश्चा दर्दृहि ॥२१॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (नः) अस्माकम् (गोत्रा) गोत्राणि कुलानि (दर्दृहि) अत्यन्तं वर्धय (गोपते) भूपते (गाः) पृथिवीः (सम्) (अस्मभ्यम्) (सनयः) संभक्तयः (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (वाजाः) विज्ञानान्नादिप्रदा व्यवहाराः (दिवक्षाः) ये दिवं विज्ञानप्रकाशादिकमक्षन्ति व्याप्नुवन्ति (असि) (वृषभ) बलिष्ठ (सत्यशुष्मः) सत्यबलः (अस्मभ्यम्) (सु) (मघवन्) बहुपूजितधनयुक्त (बोधि) (गोदाः) यो गा वाण्यादीन् ददाति सः ॥२१॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि सत्याचारसुशीला विद्वांसो मनुष्याणामुपदेष्टारः स्युस्तर्हि तेषां किमपि सुखमप्राप्तमरक्षणीयं न स्यात् ॥२१॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (वृषभ) बलवान् (मघवन्) बहुत श्रेष्ठ धन से युक्त ! जिससे आप (गोदाः) वाणी आदि के दाता (सत्यशुष्मः) सत्य बलवाले (असि) हैं इससे (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (सु) (बोधि) आनन्ददायक हूजिये हे (गोपते) भूमि के स्वामी जैसे (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (सनयः) संविभाग करने के योग्य (दिवक्षाः) विज्ञानरूप प्रकाश आदि से पूरित (वाजाः) विज्ञान और अन्न आदि के प्राप्त करानेवाले व्यवहार (सम्) (यन्तु) प्राप्त होवें वैसे ही आप (नः) हम लोगों के (गोत्रा) कुलों और (गाः) पृथिवियों को (आ) सब प्रकार (दर्दृहि) अत्यन्त वृद्धि कीजिये ॥२१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सत्य आचरण करनेवाले विद्वान् लोग मनुष्यों के उपदेशकारक होवें, तो उन जनों का कुछ भी सुख अप्राप्त और अरक्ष्य न होवे ॥२१॥
विषय
ज्ञान+शक्ति
पदार्थ
[१] हे (गोपते) = ज्ञानवाणियों के रक्षक प्रभो ! (न:) = हमारे लिए (गोत्रा) = इन ज्ञानवाणियों के समूह को (आदर्दृहि) = [आद्रियस्व] आदर युक्त करिये। हमारे हृदयों में इन ज्ञानवाणियों के प्रति आदर की भावना हो । (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (गा:) = ये ज्ञानवाणियाँ तथा (सनयः वाजा:) = सम्भजनीय बल [शक्तियाँ] (संयन्तु) = प्राप्त हों। [२] (दिवा: असि) = द्युलोक व्याप्त होकर निवास करनेवाले आप हैं। सदा प्रकाशमय लोक में रहनेवाले आप हैं । हे (वृषभ) = शक्तिशालिन् प्रभो! आप (सत्यशुष्मः) = सच्चे शत्रुशोषक बलवाले हैं। हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो! आप (अस्मभ्यम्) = हमारे लिए (गोदाः) = इन ज्ञानवाणियों को देनेवाले होते हुए सुबोधि भली प्रकार हमारा ध्यान करिए। इन ज्ञानवाणियों द्वारा ही तो आप हमारा रक्षण करते हैं। इनको प्राप्त करके हम भी प्रकाशमय लोक में निवासवाले बनें [दिवक्षा:] सच्चे शत्रुशोषक बल को प्राप्त करें [सत्यशुष्मः] ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमें ज्ञानवाणियों को तथा सम्भजनीय शक्तियों को प्राप्त कराके हमारा रक्षण करें।
विषय
सर्वश्रेष्ठ, वीर स्तुत्य पुरुष इन्द्र कहाने योग्य है।
भावार्थ
हे (गोपते) पृथ्वी के पालक ! राजन् ! तू (नः) हमारे (गोत्रा) कुलों को (आदर्दृहि) आदर युक्त कर, बढ़ा। और (गाः आदर्दृहि) गौवों को प्रदान कर (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (वाजाः) वेगवान् अश्वादि और संग्राम और ऐश्वर्य भी (सनयः) सुखप्रद, भोग योग्य (संयन्तु) होकर अच्छी प्रकार प्राप्त हों। हे (वृषभ) बलवन् ! तू (दिवक्षाः) सूर्य के समान विज्ञान प्रकाश आदि में व्यापक और (सत्यशुष्मः) सत्य और न्याय के बल से बलवान् और सच्चा बलवान् (असि) है। तू (गोदाः) गौ, भूमि, वाणी आदि का दाता है। तू हे (मघवन्) ऐश्वर्यवन्! (अस्मभ्यं) हमारे लाभ के लिये ही (सु बोधि) उत्तम ज्ञान कर और करा। (२) हे गोपते ! आचार्य हमें (गोत्रा) चाणियों को प्रदान कर। ज्ञान वाणियें ही हमारे प्रति तेरे उत्तम दान हों। तू ज्ञाननिष्ठ एवं सत्य ज्ञान बल से युक्त है। तू हमारे लिये वेदवाणी-प्रद होकर हमें ज्ञान करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्द:– १, २, ९—११, १४, १७, २० निचृतत्रिष्टुप्। ५, ६, ८,१३, १९, २१, २२ त्रिष्टुप्। १२, १५ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ४, ७, १६, १८ भुरिक् पङ्क्तिः॥ द्वाविंशत्यृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सत्याचरणी विद्वान माणसांना उपदेश करतात त्यांना कोणतेही सुख दुर्मिळ नसते. ॥ २१ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, generous lord of honour and valour, protector and promoter of lands and cows, strengthen and advance our families, expand our lands and shine our speech. May knowledge of science and divinity, speed and power come to us peacefully as our share of good fortune. Lord of light and knowledge you are, virile and generous, commanding real strength, lord of power and prosperity, giver of lands and cows. Give us the light, give us the knowledge, let us awake into new life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of rulers still goes on.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O the mightiest king ! you are blessed with very admirable wealth, because you are giver of good speech and powerful because of truth and you impart good knowledge to us. O Lord of the land! multiply our family and kine. Let the dealings related to the knowledge and food which pervade the light of wisdom reach us, by the proper division of the labor.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If the learned persons of good character and temperament are the preachers of truth among men, they are sure to get all sorts of happiness.
Foot Notes
(गोत्रा) गोत्राणि कुलानि । Families. (दिवक्षा) ये दिवं विज्ञानप्रकाशदिकमक्षन्ति व्याप्नुवन्ति । (दिवक्षा:) दिवु-क्रीड़ाविजिगीपाव्यवहारद्युतिगतिषु । अत्र द्युत्वर्थः । = Those which pervade the light of wisdom and knowledge. (दर्दु हि) अत्यन्तं वर्धय । (दुर्दहि ) दुर-वृद्धौ (म्वा ० ) = Multiply, enable to grow.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal