ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 11
प॒रः सो अ॑स्तु त॒न्वा॒३॒॑ तना॑ च ति॒स्रः पृ॑थि॒वीर॒धो अ॑स्तु॒ विश्वा॑: । प्रति॑ शुष्यतु॒ यशो॑ अस्य देवा॒ यो नो॒ दिवा॒ दिप्स॑ति॒ यश्च॒ नक्त॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठप॒रः । सः । अ॒स्तु॒ । त॒न्वा॑ । तना॑ । च॒ । ति॒स्रः । पृ॒थि॒वीः । अ॒धः । अ॒स्तु॒ । विश्वाः॑ । प्रति॑ । शु॒ष्य॒तु॒ । यशः॑ । अ॒स्य॒ । दे॒वाः॒ । यः । नः॒ । दिवा॑ । दिप्स॑ति । यः । च॒ । नक्त॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
परः सो अस्तु तन्वा३ तना च तिस्रः पृथिवीरधो अस्तु विश्वा: । प्रति शुष्यतु यशो अस्य देवा यो नो दिवा दिप्सति यश्च नक्तम् ॥
स्वर रहित पद पाठपरः । सः । अस्तु । तन्वा । तना । च । तिस्रः । पृथिवीः । अधः । अस्तु । विश्वाः । प्रति । शुष्यतु । यशः । अस्य । देवाः । यः । नः । दिवा । दिप्सति । यः । च । नक्तम् ॥ ७.१०४.११
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 11
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सः) स दुराचारी (तन्वा) शरीरेण (तना) सन्तानेन च (परः, अस्तु) हीयतां (च) तथा (तिस्रः, पृथिवीः) लोकत्रयादपि (अधः, अस्तु) नीचैः पततु (देवाः) हे भगवन् ! (अस्य, यशः) अस्य दुष्कर्मणः (यशः) कीर्त्तिः (विश्वाः प्रति शुष्यतु) सर्वथा नश्यतु (यः) यो राक्षसः (नः) सत्कर्मणोऽस्मान् (दिवा) समक्षम् (नक्तम्) अप्रत्यक्षं यो (दिप्सति) तापयति हानौ तत्परो भवति स नीचैः पतत्विति ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सः) वह अन्यायकारी पुरुष (तन्वा) शरीर से (तना) सन्तानों से (परः, अस्तु) हीन हो जाय (च) और (तिस्रः, पृथिवीः) तीनों लोकों से (अधः, अस्तु) नीचे हो जाय और (देवाः) हे भगवन् ! (अस्य, यशः) इसका यश (विश्वाः, प्रतिशुष्यतु) सब प्रकार से नष्ट हो जाय, (यः) जो राक्षस (नः) सदाचारी हम लोगों को (दिवा) प्रत्यक्ष (नक्तम्) तथा अप्रत्यक्ष में (दिप्सति) हानि पहुँचाता है ॥११॥
भावार्थ
जो लोग सदाचारी लोगों को दुःख पहुँचाते हैं, वे तीनों लोकों से अर्थात् भूत, भविष्यत् वर्तमान तीनों काल के सुखों से वञ्चित हो जाते हैं। वा यों कहो कि भूतकाल में उनका ऐतिहासिक यश नष्ट हो जाता है और वर्तमानकाल में अशान्ति उत्पन्न होकर उनके शान्त्यादि सुख नाश को प्राप्त हो जाते हैं और भविष्य में उनका अभ्युदय नहीं होता, इस प्रकार वे तीनों लोकों से परे हो जाते हैं अर्थात् वञ्चित रहते हैं ॥११॥
विषय
सत्यासत्य का विवेक करने का उपदेश ।
भावार्थ
और हे ( देवाः ) विद्वान् मनुष्यो ! ( यः च ) जो ( नः ) हमें ( दिवाः ) दिन के समय और या ( नक्तम् ) रात के समय (दिप्सति) हानि पहुंचाता, हमें नाश करना चाहता है ( सः ) वह (तन्वा तना च) शरीर और अपने पुत्रादि से भी ( परः अस्तु ) दूर, वियुक्त हो । वह ( विश्वाः ) समस्त ( तिस्रः ) तीनों ( पृथिवीः ) भूमियों या लोकों से ( अधः अस्तु ) नीचे रहे, गढ़े में या नीची कोटि में रक्खा जावे । ( अस्य यशः ) उसका यश, कीर्त्ति, बल ( प्रति शुष्यतु ) प्रतिदिन सूखता जाय ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
दुष्ट का सामाजिक बहिष्कार
पदार्थ
पदार्थ - हे (देवाः) = विद्वान् मनुष्यो ! (यः च) = और जो (नः) = हमें (दिवा:) = दिन में या (नक्तम्) = रात में (दिप्सति) = हानि पहुँचाता, (सः) = वह (तन्वा तना च) = शरीर और पुत्रादि से भी (परः अस्तु) = दूर हो । वह (विश्वा:) = समस्त (तित्रः) = तीनों (पृथिवीः) = भूमियों, लोकों से (अधः अस्तु) = नीचे रहे, वह गढ़े में, या नीची कोटि में रक्खा जावे। (अस्य यशः) = उसका यश, बल प्रति (शुष्यतु) = प्रतिदिन सूखता जाय।
भावार्थ
भावार्थ- जो दुष्ट प्रजाजनों को दिन में या रात में हानि पहुँचाता है उसका सामाजिक बहिष्कार किया जावे जिससे उसका यश और बल दोनों नष्ट हो जाएगा।
इंग्लिश (1)
Meaning
O divinities of nature and humanity, he who wants to injure and destroy us in the day and in the night, must stay far off by his personal presence and also by the progeny of his evil tendencies and even fall lower than all the three orders of earthly existence, i.e., lower far than the good, the bad and the indifferent. His honour and reputation would dry up and evaporate to zero and there would be none even to remember him after. Let it be so with such a person.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक सदाचारी लोकांना दु:ख देतात. ते तिन्ही लोकांकडून अर्थात भूत, भविष्य, वर्तमान तिन्ही काळांच्या सुखापासून वंचित होतात. भूतकाळात त्यांचे ऐतिहासिक यश नष्ट होते. वर्तमान काळात अशांती उत्पन्न होऊन त्यांची शांती भंग होते व सुखाचा नाश होतो. भविष्यात त्यांचा अभ्युदय होत नाही. या प्रकारे ते तिन्ही लोकांच्या पलीकडे जातात. अर्थात, वंचित होतात. ॥११॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal