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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्रासोमौ रक्षोहणी छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    इन्द्रा॑सोमा व॒र्तय॑तं दि॒वो व॒धं सं पृ॑थि॒व्या अ॒घशं॑साय॒ तर्ह॑णम् । उत्त॑क्षतं स्व॒र्यं१॒॑ पर्व॑तेभ्यो॒ येन॒ रक्षो॑ वावृधा॒नं नि॒जूर्व॑थः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑सोमा । व॒र्तय॑तम् । दि॒वः । व॒धम् । सम् । पृ॒थि॒व्याः । अ॒घऽशं॑साय । तर्ह॑णम् । उत् । त॒क्ष॒त॒म् । स्व॒र्य॑म् । पर्व॑तेभ्यः । येन॑ । रक्षः॑ । व॒वृ॒धा॒नम् । नि॒ऽजूर्व॑थः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवो वधं सं पृथिव्या अघशंसाय तर्हणम् । उत्तक्षतं स्वर्यं१ पर्वतेभ्यो येन रक्षो वावृधानं निजूर्वथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रासोमा । वर्तयतम् । दिवः । वधम् । सम् । पृथिव्याः । अघऽशंसाय । तर्हणम् । उत् । तक्षतम् । स्वर्यम् । पर्वतेभ्यः । येन । रक्षः । ववृधानम् । निऽजूर्वथः ॥ ७.१०४.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पूर्वोक्तमेव प्रकारान्तरेण वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (इन्द्रासोमा) हे न्यायकारिन् ! (अघशंसाय) वेदविरुद्धकर्मसेविने (दिवः) द्युलोकात् तथा (पृथिव्याः) भुवः (तर्हणम्, वधम्) शितानि शस्त्राणि (सम्, वर्तयतम्) उत्पादयतु (पर्वतेभ्यः) आकाशे मेघेभ्यो विद्युतमिव (स्वर्यम्, उत्तक्षतम्) उत्तापकानि शस्त्राण्युत्पादयतु (येन) यतः (वावृधानम्) उद्वृद्धाः (रक्षः) राक्षसाः (निजूर्वथः) नश्यन्तु ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब इस भाव को प्रकारान्तर से वर्णन करते हैं।

    पदार्थ

    (इन्द्रासोमा) हे न्यायकारिन् परमात्मन् ! (अघशंसाय) जो वेदविरुद्ध कर्मों की प्रशंसा तथा आचरण करता है, उस राक्षस के लिये (दिवः) द्युलोक से तथा (पृथिव्याः) पृथिवी से (तर्हणम्, वधम्) अतितीक्ष्ण शस्रों को (स्वर्यम्, उत्तक्षतम्) उत्तापक शस्त्रों को उत्पन्न करिये, (येन) जिससे (वावृधानम्) बढ़े हुए (रक्षः) राक्षस (निजूर्वथः) नष्ट हो जायें ॥४॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार मेघों से बिजली उत्पन्न होकर पृथिवीतल पर गिरती है, इस प्रकार अन्यायकारी शत्रुओं के लिये परमात्मा अनेकविध शस्त्र-अस्त्रों को उत्पन्न करके उनका हनन करता है ॥४॥

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    विषय

    दुष्टों के दमन के नाना साधनों का उपदेश।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्रासोमा ) ऐश्वर्यवान्, हे उत्तम विद्यावान् दोनों जनो ! आप दोनों (अघ-शंसाय ) पाप की चर्चा करने वाले पुरुष को दण्ड देने के लिये ( दिवः ) सूर्य और ( पृथिव्याः ) पृथिवी से ( वधं वर्तयम्) दण्ड किया करो, और उसके लिये ( तर्हणम् ) नाशकारी (स्वर्यं) सन्तापजनक और घोर नादकारी ( पर्वतेभ्यः ) मेघों से आने वाले विद्युत् तत्व को ( उत् तक्षतम् ) उत्तम रीति से प्राप्त करो। ( येन ) जिससे ( वावृधानं रक्षः ) बढ़ते दुष्ट जन को भी ( निजूर्वथः ) खूब दण्डित कर सको।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    दुष्ट-पापियों को सन्ताप दें

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (इन्द्रासोमा) = ऐश्वर्यवन्, हे विद्यावान् दोनों जनो! आप (अघ-शंसाय) = पापचर्चाकारी पुरुष को दण्ड देने के लिये (दिव:) = सूर्य और (पृथिव्याः) = पृथिवी से (वधं वर्तयतम्) = दण्ड किया करो और उसके लिये (तर्हणम्) = नाशकारी (स्वर्यं) = सन्तापजनक, नादकारी (पर्वतेभ्यः) = मेघों से आनेवाले विद्युत् को (उत् तक्षम्) = उत्तम रीति से प्राप्त करो। (येन) = जिससे (वावृधानं रक्षः) = बढ़ते दुष्ट जन को (निजूर्वथ:) = दण्डित कर सको।

    भावार्थ

    भावार्थ- राष्ट्र में पाप को फैलानेवाले पापी पुरुष को शासक वर्ग सूर्य का तेज धूप, गले तक भूमि में दबाकर तथा विद्युत् का प्रहार करके बहुत सन्ताप दे। इससे राष्ट्र में बढ़ते अपराध तथा दुष्टजनों को रोका जा सकेगा।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra-Soma, from heaven and earth, from thunder and lightning and the showers of clouds, from the light of idealism, love and generosity and down to earth realism, bring unfailing laws of punishment and correction against sin and crime, acts and policies against poverty, disease, unemployment and wilful sloth, and against the supporters of sin and crime as well as against compromisers with negativities and negationists of evil. Enact law of incentive and encouragement for the generous, and blazing prohibitions for the adamantine evil so that you nip and burn off rising crime and evil in the bud.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या प्रकारे मेघातून विद्युत उत्पन्न होऊन पृथ्वीवर पडते त्या प्रकारे अन्यायकारी शत्रूंसाठी परमेश्वर अनेकानेक शस्त्रे अस्त्रे उत्पन्न करून त्यांचे हनन करतो. ॥४॥

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