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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 19
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र व॑र्तय दि॒वो अश्मा॑नमिन्द्र॒ सोम॑शितं मघव॒न्त्सं शि॑शाधि । प्राक्ता॒दपा॑क्तादध॒रादुद॑क्ताद॒भि ज॑हि र॒क्षस॒: पर्व॑तेन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । व॒र्त॒य॒ । दि॒वः । अश्मा॑नम् । इ॒न्द्र॒ । सोम॑ऽशितम् । म॒घ॒ऽव॒न् । सम् । सि॒शा॒धि॒ । प्राक्ता॑त् । अपा॑क्तात् । अ॒ध॒रात् । उद॑क्तात् । अ॒भि । ज॒हि॒ । र॒क्षसः॑ । पर्व॑तेन ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र वर्तय दिवो अश्मानमिन्द्र सोमशितं मघवन्त्सं शिशाधि । प्राक्तादपाक्तादधरादुदक्तादभि जहि रक्षस: पर्वतेन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । वर्तय । दिवः । अश्मानम् । इन्द्र । सोमऽशितम् । मघऽवन् । सम् । सिशाधि । प्राक्तात् । अपाक्तात् । अधरात् । उदक्तात् । अभि । जहि । रक्षसः । पर्वतेन ॥ ७.१०४.१९

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 19
    अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मा प्रार्थनां कर्तुमुपदिशति।

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (सोमशितम्) विद्वद्भिर्निर्मितं (अश्मानम्) वज्रं (दिवः) द्युलोकात् (प्र, वर्तय) क्षिप रक्षो नाशयितुं (मघवन्) हे ऐश्वर्यशालिपरमात्मन् ! (सम्, शिशाधि) स्वस्तोतॄन् सम्यग्रक्ष (प्राक्तात्) पूर्वस्याः (अपाक्तात्) पश्चिमतः (अधरात्) दक्षिणतः (उदक्तात्) उत्तरतः (अभि) सर्वतोऽपि (रक्षसः) राक्षसान् (पर्वतेन) वज्रेण (जहि) नाशय ॥१९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब प्रजा को परमात्मा यह आदेश करता है कि तुम ऐसी प्रार्थना करो।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! द्युलोक के राक्षसों के मारने के लिए (अश्मानम्) वज्र को (प्रवर्तय) फैकें, जो (सोमशितम्) विज्ञानी विद्वानों से बनाया गया हो। (मघवन्) हे ऐश्वर्य्यसम्पन्न परमात्मन् ! न्यायशील साधु पुरुषों की (सं शिशाधि) भलीभाँति रक्षा करें और (प्राक्तात्) पूर्व दिशा से (अपाक्तात्) पश्चिम से (अधरात्) दक्षिण से (उदक्तात्) उत्तर से (रक्षसः) अन्यायकारी राक्षसों को (पर्वतेन) वज्र से (जहि) मारें ॥१९॥

    भावार्थ

    पर्वत के अर्थ यहाँ उस शस्त्र के हैं, जिसमें पोरी के समान बहुत से पर्व पड़ते हों। निघण्टु में पर्वत मेघप्रकरण में भी पढ़ा गया है। जो लोग पर्वत के अर्थ पहाड़ के समझ लेते हैं वह अत्यन्त भूल करते हैं। हाँ वैदिक समय के बहुत पीछे पर्वत के अर्थ लौकिक भाषा में पहाड़ के भी बन गए। अस्तु−यहाँ प्रकरण शस्त्र का है, इसलिए इसके अर्थ शस्त्र के होने चाहिये, अन्य नहीं ॥१९॥

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    विषय

    दुष्टों को कठोर दण्ड

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) शत्रुहन्तः ! तू ( दिवः अश्मानम् ) आकाश से पड़ने वाले ओलों के समान ( दिवः ) तेजोयुक्त-आग्नेय अस्त्र से ( अश्मानम् ) शत्रुनाशक गोली आदि कठिन वस्तु ( प्र वर्त्तय ) फेंक । हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यवन् ! तू ( सोम-शितम् ) ऐश्वर्य और उत्तम शासक से तीव्र हुए शत्रु और प्रजाजन दोनों को ( सं शिशाधि ) अच्छी प्रकार शासन कर । (प्राक्तात्, अपाक्तात्, उदक्तात्, अधरात्) पूर्व, पश्चिम, उत्तर और नीचे, दक्षिण से भी ( पर्वतेन ) दृढ़ पोरु वाले दण्ड से, पशु के समान ( रक्षसः जहि ) दुष्ट पुरुषों को दण्डित कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    आग्नेयास्त्र तथा गोली से शत्रुनाश

    पदार्थ

    पदार्थ - हे (इन्द्र) = शत्रुहन्तः ! तू (दिवः अश्मानम्) = आकाश से गिरे ओलों के तुल्य (दिवः) = आग्नेय अस्त्र से (अश्मानम्) = शत्रुनाशक गोली आदि कठिन वस्तु (प्र वर्त्तय) = फेंक । हे (मघवन्) = ऐश्वर्यवन् ! तू (सोम-शितम्) = ऐश्वर्य और उत्तम शासक से तीव्र हुए शत्रु और प्रजाजन दोनों का (सं शिशाधि) = अच्छी प्रकार शासन कर। (प्राक्तात्, अपाक्तात्, उदक्तात्, अधरात्) = पूर्व, पश्चिम, उत्तर और नीचे, दक्षिण से भी (पर्वतेन) = दृढ़ पोरुवाले दण्ड से, पशु तुल्य (रक्षसः जहि) = दुष्ट पुरुषों को दण्ड दे।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा शत्रु का नाश करने के लिए वायुसेना को सुदृढ़ करे, शत्रुओं पर हवाई हमले करके आग्नेयास्त्र तथा गोलियों की बौछार करे। शत्रु को बन्दी बनाकर कठोर दण्ड दे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, lord of power and justice, from the light of heaven and wisdom of the sages, bring up and strike the thunderbolt of justice and correction tempered and sharpened with soma for peace and progress, and refine and enlighten the noble people dedicated to peace and happiness. From front and back, up and down, seize the wicked and the destroyers and punish them with the bolt.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    पर्वताचा अर्थ येथे त्या शस्त्रासंबंधी आहे, ज्यात सांध्याप्रमाणे पुष्कळसे जोड असतात. निघष्टुमध्ये पर्वत मेघ प्रकरणही आहे.

    टिप्पणी

    जे लोक पर्वताचा अर्थ डोंगर समजतात ते चूक करतात. वैदिक काळानंतर बऱ्याच दिवसांनी लौकिक भाषेत पर्वताचा अर्थ डोंगर बनला. येथे प्रकरण शस्त्राचे आहे. त्यासाठी याचा अर्थ शस्त्रच असला पाहिजे, इतर नव्हे. ॥१९॥

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