ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 20
ए॒त उ॒ त्ये प॑तयन्ति॒ श्वया॑तव॒ इन्द्रं॑ दिप्सन्ति दि॒प्सवोऽदा॑भ्यम् । शिशी॑ते श॒क्रः पिशु॑नेभ्यो व॒धं नू॒नं सृ॑जद॒शनिं॑ यातु॒मद्भ्य॑: ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । ऊँ॒ इति॑ । त्ये । प॒त॒य॒न्ति॒ । श्वऽया॑तवः । इन्द्र॑म् । दि॒प्स॒न्ति॒ । दि॒प्सवः॑ । अदा॑भ्यम् । शिशी॑ते । श॒क्रः । पिशु॑नेभ्यः । व॒धम् । नू॒नम् । सृ॒ज॒त् । अ॒शनि॑म् । या॒तु॒मत्ऽभ्यः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एत उ त्ये पतयन्ति श्वयातव इन्द्रं दिप्सन्ति दिप्सवोऽदाभ्यम् । शिशीते शक्रः पिशुनेभ्यो वधं नूनं सृजदशनिं यातुमद्भ्य: ॥
स्वर रहित पद पाठएते । ऊँ इति । त्ये । पतयन्ति । श्वऽयातवः । इन्द्रम् । दिप्सन्ति । दिप्सवः । अदाभ्यम् । शिशीते । शक्रः । पिशुनेभ्यः । वधम् । नूनम् । सृजत् । अशनिम् । यातुमत्ऽभ्यः ॥ ७.१०४.२०
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 20
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(दिप्सवः) ये हिंसकाः (अदाभ्यम्) अहिंसनीयं (इन्द्रम्) परमात्मानमपि (दिप्सन्ति) स्वाज्ञानेनोपघ्नन्ति (श्वयातवः) ये श्ववृत्तयः (पतयन्ति) स्वं परं च पातयन्ति (त्ये) ते (उ) निश्चयम् (एते) एतावन्तो दुष्टाः (शिशीते) तीक्ष्णेन (अशनिं सृजत्) परमात्मनिर्मितास्त्रेण हन्यन्ते (यातुमद्भ्यः) दण्डनीयेभ्यः (पिशुनेभ्यः) कपटिभ्यः (नूनम्, वधम्) निश्चयहननार्थं यतते परमात्मा ॥२०॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(दिप्सवः) जो हिंसक (अदाभ्यम्) अहिंसनीय (इन्द्रम्) परमात्मा को भी (दिप्सन्ति) अपने अज्ञान से हनन करते हैं, (श्वयातवः) जो श्वानों की सी वृत्तिवाले (पतयन्ति) स्वयं गिरते हैं, औरों को गिराते हैं, (त्ये) ऐसे (उ) निश्चय (एते) इन सब दुष्टों के लिए (शिशीते) परमात्मा तीक्ष्ण (अशनिं) शस्रों को (सृजत्) रचता है, (यातुमद्भ्यः) दुराचारी (पिशुनेभ्यः) कपटियों को (नूनम्, वधम्) निश्चय मारता है ॥२०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में ये सब कथन किया है कि दुष्टाचारी अन्यायकारी प्रजा को दुःख देते हैं, उन्हीं के लिए परमात्मा ने तीक्ष्ण शस्त्रों को रचा। तात्पर्य यह है कि परमात्मा उपद्रवी और दुष्टाचारियों को दमन करके संसार में शान्ति का राज्य फैलाना चाहता है ॥२०॥
विषय
दण्ड के लिये आग्नेय अस्त्रों का प्रयोग ।
भावार्थ
( एते उ त्ये ) ये वे बहुत से ( श्व-यातवः ) कुत्ते के समान चाल चलने और अन्यों को पागल कुत्ते के समान विना प्रयोजन काटने और अन्यों के प्रति परुष भाषण कहने और गुर्रा २ कर डराने वाले लोग ही ( पतयन्ति ) मालिक से बन कर बैठ जाना चाहते और प्रजा के धन को हर लेना चाहा करते हैं ( दिप्सवः ) हिंसाकारी लोग ही ( अदाभ्यम् इन्द्रं दिप्सन्ति ) अहिंसनीय ऐश्वर्यवान् राजा को भी मारना चाहा करते हैं । (शक्रः) शक्तिशाली राजा ( पिशुनेभ्यः ) क्षुद्र पुरुषों को दमन करने के लिये ( वधं शिशीते ) दुष्टों को दण्ड देने वाले अपने शस्त्र बल को सदा तेज़ करता रहे। ( नूनं ) अवश्य ही वह ( यातुमद्भयः ) प्रजा को पीड़ा देने वाले दुष्ट पुरुषों को दमन करने के लिये ( अशनिं ) विद्युत्वत् आघातकारी शस्त्र ( सृजत् ) बनावे और उन पर छोड़े। इत्यष्टमो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
चापलूसों से सावधान
पदार्थ
पदार्थ- (एते उ त्ये) = ये वे बहुत से (श्व-यातवः) = कुत्ते के समान चाल चलने और अन्यों को पागल कुत्ते के समान बिना प्रयोजन काटने और गु- गुर्रा कर डरानेवाले लोग ही (पतयन्ति) = मालिक से बनना चाहते और प्रजा के धन को हरना चाहा करते हैं (दिप्सवः) = हिंसाकारी लोग ही (अदाभ्यम् इन्द्रं दिप्सन्ति) = अहिंसनीय, राजा को मारना चाहा करते हैं। (शक्रः) = शक्तिशाली राजा (पिशुनेभ्यः) = क्षुद्र पुरुषों का दमन करने के लिये (वधं शिशीते) = शस्त्र बल को तेज करे। (नूनं) = अवश्य ही वह (यातुमद्भ्यः) = प्रजापीड़क पुरुषों के दमन के लिये (अशनिं) = विद्युत्वत् आघातकारी अस्त्र (सृजत्) = बनावे।
भावार्थ
भावार्थ- राजा को ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिये जो सामने तो झूठी प्रशंसा करे और पीछे राजा को मारने की योजना बनावे अथवा जो राजा की झूठी प्रशंसा=चापलूसी करके प्रजा का धन हरण करें। ऐसे दुष्टों को राजा दण्ड अवश्य देवे।
इंग्लिश (1)
Meaning
These miscreants with the mentality of street curs roam around, pull people down, and try to damage Indra, the ruler, who is otherwise indomitable. Indra then, commander of power and force, sharpens the thunderbolt, the edge of justice and punishment, for these crafty saboteurs on the prowl and strikes the fatal blow upon them.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात हे कथन केलेले आहे, की दुष्ट व अन्यायी लोक प्रजेला दु:ख देतात. त्यांच्यासाठीच परमेश्वराने तीक्ष्ण शस्त्रे निर्माण केलेली आहेत. तात्पर्य हे, की परमात्मा उपद्रवी व दुष्ट लोकांचे दमन करून जगात शांतीचे राज्य प्रसृत करू इच्छितो. ॥२०॥
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