ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 5
ऋषिः - वसिष्ठः
देवता - इन्द्रासोमौ रक्षोहणी
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
इन्द्रा॑सोमा व॒र्तय॑तं दि॒वस्पर्य॑ग्नित॒प्तेभि॑र्यु॒वमश्म॑हन्मभिः । तपु॑र्वधेभिर॒जरे॑भिर॒त्रिणो॒ नि पर्शा॑ने विध्यतं॒ यन्तु॑ निस्व॒रम् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑सोमा । व॒र्तय॑तम् । दि॒वः । परि॑ । अ॒ग्नि॒ऽत॒प्तेभिः॑ । यु॒वम् । अश्म॑हन्मऽभिः । तपुः॑ऽवधेभिः । अ॒जरे॑भिः । अ॒त्रिणः॑ । नि । पर्शा॑ने । वि॒ध्य॒त॒म् । यन्तु॑ । नि॒ऽस्व॒रम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रासोमा वर्तयतं दिवस्पर्यग्नितप्तेभिर्युवमश्महन्मभिः । तपुर्वधेभिरजरेभिरत्रिणो नि पर्शाने विध्यतं यन्तु निस्वरम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रासोमा । वर्तयतम् । दिवः । परि । अग्निऽतप्तेभिः । युवम् । अश्महन्मऽभिः । तपुःऽवधेभिः । अजरेभिः । अत्रिणः । नि । पर्शाने । विध्यतम् । यन्तु । निऽस्वरम् ॥ ७.१०४.५
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्रासोमा) हे न्यायकारिन् भगवन् ! (युवम्) भवान् (अग्नितप्तेभिः) अग्निसंसर्गाद्दन्दह्यमानैः (तपुर्वधेभिः) तापनाशकैः (अजरेभिः) अच्छेद्यैः (अश्महन्मभिः) इत्थं भूतैर्वज्रैः (दिवस्परि) अन्तरिक्षात् (वर्तयतम्) शत्रूनाच्छादयतु, तथा (अत्रिणः) अन्यायेन भक्षणशीलान् (पर्शाने) उभयोः पार्श्वयोरावृत्य (निविध्यतम्) इत्थं ताडयतु येन (निस्वरम्, यन्तु) तूष्णीं पलायन्ताम् ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्रासोमा) हे न्यायकारी परमात्मन् ! (युवम्) आप (अग्नितप्तेभिः) अग्नि से तपाये हुए (तपुर्वधेभिः) तापों के नाशनेवाले (अजरेभिः) जो कि बड़े दृढ़ हैं, ऐसे (अश्महन्मभिः) वज्रों से (दिवस्परि) अन्तरिक्षस्थल से (वर्तयतम्) शत्रुओं को आच्छादन करो और (अत्रिणः) अन्याय से भक्षण करनेवालों को (पर्शाने) दोनों ओर से घेर कर (निविध्यतम्) ऐसी ताड़ना करो, जिससे कि (निस्वरम्) शब्दहीन होकर (यन्तु) भाग जायें ॥५॥
भावार्थ
भाव यह है कि अन्यायकारी दुष्टों के दमन करने को परमात्मा अनेक प्रकार कथन करते हैं ॥५॥
विषय
दण्ड योग्य अपराधियों का निर्देश
भावार्थ
हे ( इन्द्रासोमा ) राजन् ! हे शासक जन ! ( युवम् ) आप दोनों (अग्नि-तप्तेभिः) अग्नि से तपे हुए, ( अश्म-हन्मभिः ) मेघ से विद्युत् के समान वा ओले के समान आघात करने वाले (तपुर्वधेभिः ) दुष्टों के नाशकारी अस्त्रों, नालीकादि गुलिका वाणों से (दिवः परि) आकाश से दूर से ही मार कर ( अत्रिणः) प्रजा के नाशक, भक्षक दुष्ट पुरुष के (पर्शाने) दोनों पासों के बल समुदाय को ( नि विध्यतम् ) खूब छिन्न भिन्न करो । जिससे वह (निः-स्वरम् ) विना आवाज़ किये, चुपचाप, विना कष्ट पहुंचाये ( यन्तु ) चला जावे। इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
आकाश से दुष्टों पर अस्त्र प्रहार
पदार्थ
पदार्थ - हे (इन्द्रासोमा) = राजन् ! शासक जन! (युवम्) = आप दोनों (अग्नि-तप्तेभिः) = अग्नि से तपे हुए, (अश्म-हन्मभिः) = मेघ से विद्युत् तुल्य आघात करनेवाले (तपुर्वधेभिः) = दुष्ट नाशक अस्त्रों से (दिवः परि) = आकाश से दूर से ही मार कर (अत्रिणः) = प्रजा नाशक दुष्ट पुरुष के (पर्शाने) = दोनों पासों के बल समुदाय को (नि विध्यतम्) = छिन्न-भिन्न करो। जिससे वह (निः-स्वरम्) = बिना आवाज किये, बिना कष्ट पहुँचाये (यन्तु) = चला जावे।
भावार्थ
भावार्थ- राजा दुष्ट-नाशक अस्त्रों को वायुसेना में सम्मिलित करे। इससे दुष्ट व शत्रुओं पर आकाश से ही अस्त्रों का प्रहार करके दुष्ट पुरुषों की शक्ति का नाश कर दे। तब वह दुष्ट शक्तिहीन होकर स्वयं ही भाग जाएगा।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra-Soma, lord of power and force, lord of peace and harmony, turn all round, revolve your search lights and from the skies shoot out your weapons of defence and offence, and with fiery, thunder-tipped, fatally destructive, irresistible and inviolable weapons fix the voracious ogres, strike them on the precipice and throw them into the abyss, running off into silence and oblivion without uttering a sigh of pain or voice of protest.
मराठी (1)
भावार्थ
अन्यायी दुष्टांचे दमन करण्यासाठी परमात्मा अनेक उपाय सुचवितो हा भाव आहे. ॥५॥
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