ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 22
उलू॑कयातुं शुशु॒लूक॑यातुं ज॒हि श्वया॑तुमु॒त कोक॑यातुम् । सु॒प॒र्णया॑तुमु॒त गृध्र॑यातुं दृ॒षदे॑व॒ प्र मृ॑ण॒ रक्ष॑ इन्द्र ॥
स्वर सहित पद पाठउलू॑कऽयातुम् । शु॒शु॒लूक॑ऽयातुम् । ज॒हि । श्वऽया॑तुम् । उ॒त । कोक॑ऽयातुम् । सु॒प॒र्णऽया॑तुम् । उ॒त । गृध्र॑ऽयातुम् । दृ॒षदा॑ऽइव । प्र । मृ॒ण॒ । रक्षः॑ । इ॒न्द्र॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उलूकयातुं शुशुलूकयातुं जहि श्वयातुमुत कोकयातुम् । सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुं दृषदेव प्र मृण रक्ष इन्द्र ॥
स्वर रहित पद पाठउलूकऽयातुम् । शुशुलूकऽयातुम् । जहि । श्वऽयातुम् । उत । कोकऽयातुम् । सुपर्णऽयातुम् । उत । गृध्रऽयातुम् । दृषदाऽइव । प्र । मृण । रक्षः । इन्द्र ॥ ७.१०४.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 22
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उलूकयातुम्) दीर्घसमुदायं निर्माय विद्यमानाः तथा (शुशुलूकयातुम्) लघुसमुदायवन्तञ्च ये दस्यवो न्याय्यमाचरन्तमभिघ्नन्ति (श्वयातुम्) ये हि बलवदादायापसरणे दक्षाः (कोकयातुम्) ये कोकवत् विभक्ता भूत्वाऽभिहन्तारः (सुपर्णयातुम्) निरपराधजनस्य तापकाः (गृध्रयातुम्) चक्रवर्त्तिनो बुभूषवः न्यायचारिणां तापकाः तान्सर्वान् (इन्द्र) हे भगवन् ! (जहि) नाशय (दृषदा, इव) शिलयेव शस्त्रेण (प्र, मृण) पिनष्टु (रक्ष) सतः पालय ॥२२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(उलूकयातुम्) जो बड़ा समुदाय बनाकर तथा (शुशुलूकयातुम्) छोटे छोटे समुदाय बनाकर न्यायकारियों पर अभिघात करते हैं, (श्वयातुम्) जो गमनशील हैं तथा जो (कोकयातुम्) विभक्त होकर अभिघात करते हैं (सुपर्णयातुम्) तथा जो निरपराधों को सताते हैं और जो (गृध्रयातुम्) चक्रवर्ती होने की इच्छा से न्यायकारियों का दमन करना चाहते हैं, उनको (इन्द्र) ऐश्वर्यवान् परमात्मन् ! (जहि) अत्यन्त नष्ट करो (दृषदा, इव) तथा शिला के समान शस्त्रों से (प्र मृण) पेषण करो और (रक्ष) न्यायकारियों को बचाओ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा ने अन्यायकारी मायावी और नानाप्रकार से न्यायकारियों पर आघात करनेवाले दुष्टों से बचने के लिये प्रार्थना का उपदेश किया है। यद्यपि प्रार्थना केवल वाणीमात्र से सफल नहीं होती, तथापि जब हार्दिक भाव से प्रार्थना की जाती है, तो उससे उद्योग उत्पन्न होकर मनुष्य अवश्यमेव कृतकार्य होता है ॥२२॥
विषय
कुटिलाचारी जनों पर दण्डपात ।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) शत्रुओं के नाशक ! राजन् ! ( उलूक-यातुम् ) बड़े उल्लू के समान चाल चलने और उसके समान छिप कर प्रजा के धन, प्राण पर आक्रमण करने और उनको भयभीत करने वाले को, ( शुशुलूकयातुम् ) छोटे उल्लू के समान अति कर्कश बोल कर डराने और प्रजा के गरीब जनों को पीड़ित करने वाले को, (श्व-यातुम् ) कुत्ते के समान भौंक कर, बककर, कठोर वचन कह कर, डरा धमका कर प्रजा के जनों को पीड़ा देने वाले, (कोक-यातुम् ) उलूक के तीसरी जाति के समान प्रजा को कष्ट देने वाले ( सुपर्ण-यातुम् ) बाज़ के समान झपटने वाले (उत) और ( गृध्रयातुम् ) गीध के समान गोल बनाकर उदासीन प्रजा को नोच कर खाजाने वाले ( रक्षः ) दुष्ट जनों को ( दृषदा इव ) सिलबट्टे या चक्की के पाटों के समान पीस डालने वाले ( प्र मृण) दण्ड द्वारा नष्ट कर डाल ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
पत्थर से पीस दे दुष्टों को
पदार्थ
पदार्थ- हे (इन्द्र) = शत्रुनाशक! राजन्! (उलूक-यातुम्) = बड़े उल्लू के समान चाल चलने और छिपकर प्रजा के धन, प्राण पर आक्रमण करनेवाले को, (शुशुलूकयातुम्) = छोटे उल्लू के समान कर्कश बोलकर डराने और गरीब जनों को पीड़ित करनेवाले को, (श्व-यातुम्) = कुत्ते के समान भौंककर, कठोर वचन कहकर प्रजाजनों को पीड़ा देनेवाले, (कोक-यातुम्) = उलूक की तीसरी जाति के समान प्रजा को कष्ट देनेवाले (सुपर्ण-यातुम्) = बाज़ के समान झपटनेवाले उत और (गृध्रयातुम्) = गीध के समान गोल बनाकर उदासीन प्रजा को नोचकर खा जानेवाले, (रक्षः) = दुष्ट जनों को (दृषदा इव) = सिलबट्टे या चक्की के पाटों के समान पीस डालनेवाले (प्र मृण) = दण्ड द्वारा नष्ट कर डाल।
भावार्थ
भावार्थ- जो दुष्ट लोग छिपकर प्रजा का धन हरण करें, जो कठोर बोलकर डरावें, जो गरीबों को पीड़ित करें, जो चलते फिरते सामान झपटें, और जो गिरोह बनाकर प्रजा को नोचें उन सब दुष्ट जनों को राजा कठोर दण्ड दे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, refulgent and potent ruler of the world, crush the evil and the wicked like pieces of clay with a stone: the fiend in the garb of an owl or an owlet or a dog or a wolf or a hawk or a vulture. They are covert, stealthy, clever, jealous and growling, cruel destroyers, cunning and voracious.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमात्म्याने अन्यायकारी ढोंगी (फसविणाऱ्या) व विविध प्रकारे न्यायी लोकांवर आघात करणाऱ्या दृष्टांपासून बचाव करण्याचा उपदेश केलेला आहे. प्रार्थना जरी केवळ वाणीने सफल होत नाही तरीही हार्दिक भावाने प्रार्थना केली गेली, तर त्यामुळे प्रयत्नशील माणूस अवश्य कृतकार्य होऊ शकतो. ॥२२॥
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