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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 104 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 104/ मन्त्र 17
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - ग्रावाणः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र या जिगा॑ति ख॒र्गले॑व॒ नक्त॒मप॑ द्रु॒हा त॒न्वं१॒॑ गूह॑माना । व॒व्राँ अ॑न॒न्ताँ अव॒ सा प॑दीष्ट॒ ग्रावा॑णो घ्नन्तु र॒क्षस॑ उप॒ब्दैः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । या । जिगा॑ति । ख॒र्गला॑ऽइव । नक्त॑म् । अप॑ । द्रु॒हा । त॒न्व॑म् । गूह॑माना । व॒व्रान् । अ॒न॒न्तान् । अव॑ । सा । प॒दी॒ष्ट॒ । ग्रावा॑णः । घ्न॒न्तु॒ । र॒क्षसः॑ । उ॒प॒ब्दैः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र या जिगाति खर्गलेव नक्तमप द्रुहा तन्वं१ गूहमाना । वव्राँ अनन्ताँ अव सा पदीष्ट ग्रावाणो घ्नन्तु रक्षस उपब्दैः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । या । जिगाति । खर्गलाऽइव । नक्तम् । अप । द्रुहा । तन्वम् । गूहमाना । वव्रान् । अनन्तान् । अव । सा । पदीष्ट । ग्रावाणः । घ्नन्तु । रक्षसः । उपब्दैः ॥ ७.१०४.१७

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 104; मन्त्र » 17
    अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (या) या रक्षोवृत्तिं दधाना स्त्री (जिगाति) नक्तं दिवं पर्यटति (खर्गलेव) उलूकीव (तन्वम्) स्वदेहं (गूहमाना) पिदधती या सा (वव्रान्, अनन्तान्) अनेका अधोगतीः (अव, सा, पदीष्ट) अवाङ्मुखी सती गच्छतु तां (ग्रावाणः) वज्रं (उपब्दैः) शब्दायमानं सत् (घ्नन्तु) हन्तु, यतः सा (रक्षसः) रक्षसः सम्बन्धिन्यस्ति ॥१७॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (या) जो कोई राक्षसी वृत्तिवाली स्त्री (जिगाति) रात-दिन भ्रमण करती है, (खर्गलेव) निशाचर जीवों के समान (तन्वं) अपने शरीर को (गूहमाना) छिपाए रहती है, वह (वव्रान्, अनन्तान्) अनन्त अधोगतियों को (अव, सा, पदीष्ट) प्राप्त हो और (ग्रावाणः) वज्र उसको (उपब्दैः) शब्दायमान होकर (घ्नन्तु) नाश करें, क्योंकि (रक्षसः) वह भी राक्षसों से सम्बन्ध रखती है ॥१७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में राजधानी की रक्षा के लिए इस बात का उपदेश किया गया है जो स्त्री गुप्तचरी होकर रात को विचरती है और अपना भेद किसी को नहीं देती अथवा स्त्रियों के आचरण बिगाड़ने के लिए ऐसा रूप धारण करती है, उसको भी राक्षसों की श्रेणी में गिनना चाहिए, उसको राजा यथायोग्य दण्ड दे ॥१७॥

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    विषय

    दुष्ट स्त्रियों को दण्ड ।

    भावार्थ

    ( या ) जो स्त्री, ( खर्गला इव ) उल्लुनी के समान (दुहा) पति से द्रोह करके अपने ( तन्वं गूहमाना ) शरीर को छिपाकर ( नक्तम् ) रात के समय ( प्र अप जिगाति ) घर छोड़ कर जाती है ( सा ) वह ( अनन्तां वत्रान् ) खूब गहरे गढ़ों को ( अव पदीष्ट ) प्राप्त हो । इस प्रकार ( ग्रावाण: ) क्षत्रिय लोग ( उपदैः ) गर्जनाओं और घोषणाओं सहित ( रक्षसः नन्तु ) दुष्ट पुरुषों को विनष्ट करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ देवताः – १ –७, १५, २५ इन्द्रासोमो रक्षोहणौ ८, । ८, १६, १९-२२, २४ इन्द्रः । ९, १२, १३ सोमः । १०, १४ अग्निः । ११ देवाः । १७ ग्रावाणः । १८ मरुतः । २३ वसिष्ठः । २३ पृथिव्यन्तरिक्षे ॥ छन्द:१, ६, ७ विराड् जगती । २ आर्षी जगती । ३, ५, १८, २१ निचृज्जगती । ८, १०, ११, १३, १४, १५, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ आर्षी त्रिष्टुप् । १२, १६ विराट् त्रिष्टुप् । १६, २०, २२ त्रिष्टुप् । २३ आर्ची भुरिग्जगती । २४ याजुषी विराट् त्रिष्टुप् । २५ पादनिचृदनुष्टुप् ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    दुराचारिणी स्त्री को दण्ड

    पदार्थ

    पदार्थ- (या) = जो स्त्री, (खर्गला इव) = उल्लूनी के समान (द्रुहा) = पति-द्रोह करके (तन्वं गूहमाना) = शरीर को छिपाकर (नक्तम्) = रात के समय (प्र अप जिगाति) = घर छोड़कर जाती है (सा) = वह (अनन्तां वव्रान्) = खूब गहरे गढ़ों को (अव पदीष्ट) = प्राप्त हो । (ग्रावाण:) = क्षत्रिय लोग (उपब्दैः) = घोषणाओं सहित (रक्षसः घ्नन्तु) = दुष्ट पुरुषों को विनष्ट करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- यदि कोई दुश्चरित्र स्त्री अपने पति से झगड़कर या छुपकर रात को घर से किसी अन्य पुरुष के पास चली जावे तो उस स्त्री तथा दुश्चरित्र पुरुष को भूमि में गड्ढा खोदकर दबा दिया जावे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And she that goes about at night, hiding her person like the spirit of hate and violence, a she owl as if, let her fall into the bottomless deep of darkness where the stones of evil and darkness itself would destroy her with a clang.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात राजधानीच्या रक्षणासाठी या गोष्टीचा उपदेश केला गेलेला आहे, की जी स्त्री गुप्तचारी बनून रात्री फिरते व आपले रहस्य कुणाला सांगत नाही किंवा स्त्रियांचे आचरण बिघडविण्यासाठी असे रूप धारण करते, की तिला राक्षसाच्या श्रेणीतच गणले पाहिजे. तिला राजाने यथायोग्य दंड द्यावा. ॥१७॥

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