ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 32/ मन्त्र 15
ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
नकि॑रस्य॒ शची॑नां निय॒न्ता सू॒नृता॑नाम् । नकि॑र्व॒क्ता न दा॒दिति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनकिः॑ । अस्य॑ । शची॑नाम् । नि॒ऽय॒न्ता । सू॒नृता॑नाम् । नकिः॑ । व॒क्ता । न । दा॒त् । इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नकिरस्य शचीनां नियन्ता सूनृतानाम् । नकिर्वक्ता न दादिति ॥
स्वर रहित पद पाठनकिः । अस्य । शचीनाम् । निऽयन्ता । सूनृतानाम् । नकिः । वक्ता । न । दात् । इति ॥ ८.३२.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 32; मन्त्र » 15
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
None is the controller of his mighty acts and powers universally pleasant and true, and there is none who can ever say: He has failed to give and bless.
मराठी (1)
भावार्थ
परम ऐश्वर्यवान परमेश्वर सर्वांचा दाता आहे. त्याचे आपल्या कार्यात चांगल्या प्रकारे प्रभुत्व आहे. याच प्रकारे अनुग्रहशील सर्वांवर समान रूपाने कृपावान राष्ट्राध्यक्षही आपल्या कार्यात स्वतंत्र असतो. माणसाच्या जीवनात तेच स्थान जीवात्म्याचे आहे जे ब्रह्मांड संचालनात परमेश्वराचे आहे. ॥१५॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अस्य) इस इन्द्र [परमेश्वर, राष्ट्राध्यक्ष राजा, जीवात्मा] के (सूनृतानाम्) अनुग्रहशील व प्रभुशक्तियुक्त (शचीनाम्) कार्यों एवं कर्मशक्तियों का (नियन्ता) अवरोधक (न किः) कोई नहीं और (न दात्) 'इसने अमुक को नहीं दिया' (इति वक्ता) यह कहने वाला भी कोई नहीं॥१५॥
भावार्थ
ऐश्वर्यवान् प्रभु सबको देनेवाला है और अपने कार्यों से वह प्रभु है। इसी तरह अनुग्रहशील, सब पर समान रूप से कृपा करनेवाला राष्ट्र का प्रमुख भी स्वकार्य में स्वतन्त्र है। मानव-जीवन में जीवात्मा की वही स्थिति है जो ब्रह्माण्ड का संचालन करने में परमेश्वर की है ॥१५॥
पदार्थ
पदार्थ = ( अस्य ) इस इन्द्र की ( शचीनाम् ) शक्तियों का ( सूनृतानाम् ) = सच्ची और मीठी वाणियों का ( नियन्ता ) = नियन्ता ( न किः ) = नहीं है ( न दात् इति ) = इन्द्र ने मुझे नहीं दिया ऐसा ( वक्ता ) = कहनेवाला ( न कि:) = कोई नहीं है ।
भावार्थ
भावार्थ = उस भगवान् इन्द्र की शक्तियों का और उसकी सत्य और मीठी वाणियों का नियम बांधनेवाला कोई नहीं है और कोई नहीं कह सकता कि इन्द्र ने मुझे कुछ नहीं दिया, क्योंकि सब को सब-कुछ देनेवाला वह इन्द्र ही है ।
विषय
नियन्ता सर्वविजयी सखा। बड़ा दानी है।
भावार्थ
( अस्य ) इसकी ( शचीनाम् ) शक्तियों और (सूनृतानां) उत्तम सत्ययुक्त वाणियों का ( नियन्ता ) रोकने वाला ( नकि: ) कोई भी नहीं है। ( न दात् इति वक्ता नकिः ) वह नहीं देता ऐसा भी कहने वाला कोई नहीं। वह सबको श्रमानुरूप और कर्मानुरूप फल बड़े अनुग्रह से देता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
काण्वो मेधातिथि: ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ७, १३, १५, २७, २८ निचृद् गायत्री। २, ४, ६, ८—१२, १४, १६, १७, २१, २२, २४—२६ गायत्री। ३, ५, १९, २०, २३, २९ विराड् गायत्री। १८, ३० भुरिग् गायत्री॥
विषय
'नियन्ता दाता' प्रभु
पदार्थ
[१] (अस्य) = इस प्रभु की (सूनृतानाम्) = [सु+ऊन् ऋत] उत्तम दुःखों का परिहाण करनेवाली व सत्य (शचीनाम्) = शक्तियों व प्रज्ञानों का (नकिः नियन्ता) = कोई नियन्ता [ रोकनेवाला] नहीं है। प्रभु अपनी शक्ति से सबका नियमन करते हैं। प्रभु का नियन्ता कोई नहीं । [२] संसार में ऐसा (वक्ता) = कहनेवाला भी (नकिः) = कोई नहीं कि (न दात् इति) = प्रभु ने हमें नहीं दिया। प्रभु कर्मानुसार जिस भी स्थिति में हमें रखते हैं, उस स्थिति में उन्नति के लिये सब आवश्यक साधनों को प्राप्त कराते ही हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु सब शक्तियों व प्रज्ञानों के स्वामी हैं। हमें उन्नति के लिये सब आवश्यक साधनों को प्राप्त कराते हैं।
बंगाली (1)
পদার্থ
ন কিরস্য শচীনাং নিয়ন্তা সূনৃতানাম্।
ন কির্বক্তা ন দাদিতি।।৬২।।
(ঋগ্বেদ ৮।৩২।১৫)
পদার্থঃ (অস্য) এই পরমাত্মার (শচীনাম্) শক্তির এবং (সূনৃতানাম্) সত্য ও মধুর বাণীর (নিয়ন্তা) নিয়ন্তা (নঃ কি) কেউ নেই। (নঃ কিঃ বক্তা) এমন কোন বক্তা নেই (ন দাৎ ইতি) যে বলবে, তিনি আমাকে কিছুই দেননি।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ সেই ঐশ্বর্যযুক্ত পরমেশ্বরের শক্তির এবং তাঁর সত্য ও মধুর বাণীকে সীমাবদ্ধ করতে পারেন এমন কেউ নেই। এবং এটা কেউ বলতে পারবে না যে, তিনি আমাকে কিছুই দেন নি। কেননা জগতের সবাই এমনকি কিঞ্চিৎ যা কিছুও পেয়েছে, সবকিছুর প্রদানকর্তা সেই তিনিই।।৬২।।
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