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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 66/ मन्त्र 16
    ऋषिः - शतं वैखानसाः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    म॒हाँ अ॑सि सोम॒ ज्येष्ठ॑ उ॒ग्राणा॑मिन्द॒ ओजि॑ष्ठः । युध्वा॒ सञ्छश्व॑ज्जिगेथ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हान् । अ॒सि॒ । सो॒म॒ । ज्येष्ठः॑ । उ॒ग्राणा॑म् । इ॒न्दो॒ इति॑ । ओजि॑ष्ठः । युध्वा॑ । सन् । शश्व॑त् । जि॒गे॒थ॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महाँ असि सोम ज्येष्ठ उग्राणामिन्द ओजिष्ठः । युध्वा सञ्छश्वज्जिगेथ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    महान् । असि । सोम । ज्येष्ठः । उग्राणाम् । इन्दो इति । ओजिष्ठः । युध्वा । सन् । शश्वत् । जिगेथ ॥ ९.६६.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 66; मन्त्र » 16
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) जगदुत्पादकपरमेश्वर ! त्वं (महानसि) श्रेष्ठोऽसि। तथा (उग्राणाम्) तेजस्विनां मध्ये (ज्येष्ठः) प्रशस्योऽसि (इन्दो) सर्वप्रकाशकपरमात्मन् ! त्वं (ओजिष्ठः) सर्वोपरि बलवानसि ! अथ च (युध्वा सन्) स्वतः प्रतिकूलशक्तिभिर्युध्यन् (शश्वत्) निरन्तरं (जिगेथ) जयसि ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! आप (महानसि) बड़े हैं और (उग्राणाम्) तेजस्वियों में (ज्येष्ठः) बड़े हैं। (इन्दो) हे सर्वप्रकाशक परमात्मन् ! आप (ओजिष्ठः) सर्वोपरि ओजस्वी हैं और आप (युध्वा सन्) अपने से प्रतिकूल शक्तियों से युद्ध करते हुए (शश्वत्) निरन्तर (जिगेथ) जीतते हैं ॥१६॥

    भावार्थ

    परमात्मा सूर्य-चन्द्रमादिकों की रचना करता हुआ अर्थात् उत्पत्तिसमय में विनाशरूपी सब विरोधी शक्तियों को जीतता है। इस प्रकार परमात्मा सर्वविजयी कथन किया गया है, किसी युद्धविशेष के अभिप्राय से नहीं ॥१६॥

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    विषय

    सदा विजयी

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू महान् (असि) = आदरणीय है। (ज्येष्ठः) = प्रशस्यतम है । हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (उग्राणाम्) = शत्रुओं के लिये उग्र [ भयंकर] वस्तुओं में (ओजिष्ठ:) = ओजस्वितम है । [२] (युध्वा सन्) = शरीर में रोगों व वासनाओं से युद्ध करनेवाला होता हुआ तू (अश्वत्) = सदा (जिगेथ) = विजयी होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रशस्यतम वस्तु है। यह हमें युद्ध में सदा विजयी बनाता है ।

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    विषय

    पराक्रमी को विजयोद्योगी होने का उपदेश

    भावार्थ

    हे (सोम) शासक ! राजन् ! तू (महान् असि) गुण,शक्ति में महान् है। हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (उग्राणां) उग्र शक्ति-शाली, दुष्टों को भय दिलाने वालों में (ज्येष्ठः) सब से बड़ा प्रशंसा योग्य और (ओजिष्ठः) सब से अधिक पराक्रमी, बली है। तू (शश्वत्) सदा ही (युध्वा सन्) युद्धशील ! शत्रुओं पर प्रहार करने वाला होकर (जिगेथ) विजय प्राप्त कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शतं वैखानसा ऋषयः॥ १–१८, २२–३० पवमानः सोमः। १९—२१ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १ पादनिचृद् गायत्री। २, ३, ५—८, १०, ११, १३, १५—१७, १९, २०, २३, २४, २५, २६, ३० गायत्री। ४, १४, २२, २७ विराड् गायत्री। ९, १२,२१,२८, २९ निचृद् गायत्री। १८ पाद-निचृदनुष्टुप् ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, you are great, first, greatest and most lustrous of the mighty, and being a fighter, you are always the winner.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा सूर्य-चंद्र इत्यादींची रचना करत अर्थात् उत्पत्तीच्या वेळी विनाशरूपी सर्व विरोधी शक्तींना जिंकतो, या प्रकारे परमात्म्याला सर्वविजयी म्हटलेले आहे. युद्धाच्या विशेष अभिप्रायाने नव्हे. ॥१६॥

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