ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 66/ मन्त्र 26
पव॑मानो र॒थीत॑मः शु॒भ्रेभि॑: शु॒भ्रश॑स्तमः । हरि॑श्चन्द्रो म॒रुद्ग॑णः ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मानः । र॒थिऽत॑मः । शु॒भ्रेभिः॑ । शु॒भ्रशः॑ऽतमः । हरि॑ऽचन्द्रः । म॒रुत्ऽग॑णः ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानो रथीतमः शुभ्रेभि: शुभ्रशस्तमः । हरिश्चन्द्रो मरुद्गणः ॥
स्वर रहित पद पाठपवमानः । रथिऽतमः । शुभ्रेभिः । शुभ्रशःऽतमः । हरिऽचन्द्रः । मरुत्ऽगणः ॥ ९.६६.२६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 66; मन्त्र » 26
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमानः) पविता (रथीतमः) गतिशीलः परमेश्वरः (शुभ्रेभिः) स्वीयप्रकाशेन (शुभ्रशस्तमः) अतिप्रकाशकोऽस्ति। एतादृशो जगदीश्वरः (हरिश्चन्द्रः) सर्वानन्ददाता (मरुद्गणः) विद्वद्भिरुपासनीयोऽस्ति ॥२६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमानः) पवित्र करनेवाला तथा (रथीतमः) गतिशील परमात्मा (शुभ्रेभिः) अपनी ज्योति से (शुभ्रशस्तमः) सर्वोपरि प्रकाशक है। ऐसा ईश्वर (हरिश्चन्द्रः) सबको आनन्द देनेवाले (मरुद्गणः) विद्वानों का एकमात्र उपास्य है ॥२६॥
भावार्थ
विद्वान् लोग नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वभाव परमात्मा की उपासना करते हैं, किसी अन्य की नहीं ॥२६॥
विषय
'जीवन की शुभ्रता का साधक' सोम
पदार्थ
[१] (पवमानः) = यह पवित्र करनेवाला सोम (रथीतमः) = अतिशयेन उत्तम शरीर-रथवाला है। यह शरीररथ को निर्दोष दृढ़ व प्रकाशमय बनाता है। यह (शुभ्रेभिः शुभ्रशस्तमः) = निर्मल गुणों व दीप्तियों से खूब ही निर्मल व दीप्तिवाला है। [२] (हरिः) = सब दुःखों का हरण करनेवाला है। (चन्द्रः) = आह्लाद को पैदा करनेवाला है। तथा (मरुद्गणः) = प्राणों के गणवाला है । सोमरक्षण से ही तो सम्पूर्ण प्राणशक्ति की वृद्धि होती है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारे जीवन को शुभ्र बनाता है।
विषय
वही सब गुणों से शोभित होता है।
भावार्थ
(पवमानः) वेग से युद्ध में जाता हुआ, अभिषिक्त होता हुआ (रथीतमः) सब से उत्तम महारथी, (शुभ्रशः-तमः) सब से अधिक शोभावान्, (शुभ्रेभिः) अपने शोभायुक्त गुणों से ही (मरुद्-गणः) मनुष्य समूहों का स्वामी और (हरि-चन्द्रः) सब मनुष्यों को आह्लाद देने वाला हो जाता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शतं वैखानसा ऋषयः॥ १–१८, २२–३० पवमानः सोमः। १९—२१ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १ पादनिचृद् गायत्री। २, ३, ५—८, १०, ११, १३, १५—१७, १९, २०, २३, २४, २५, २६, ३० गायत्री। ४, १४, २२, २७ विराड् गायत्री। ९, १२,२१,२८, २९ निचृद् गायत्री। १८ पाद-निचृदनुष्टुप् ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Pure and purifying, supreme master of the cosmic chariot and its controller, most refulgent with its light and powers, destroyer of want and suffering, commander and controller of all cosmic powers and forces in action, such is Soma.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान लोक नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्त स्वभाव परमात्म्याची उपासना करतात, इतर कुणाची नाही. ॥२६॥
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