ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 66/ मन्त्र 23
स म॑र्मृजा॒न आ॒युभि॒: प्रय॑स्वा॒न्प्रय॑से हि॒तः । इन्दु॒रत्यो॑ विचक्ष॒णः ॥
स्वर सहित पद पाठसः । म॒र्मृ॒जा॒नः । आ॒युऽभिः॑ । प्रय॑स्वान् । प्रय॑से । हि॒तः । इन्दुः॑ । अत्यः॑ । वि॒ऽच॒क्ष॒णः ॥
स्वर रहित मन्त्र
स मर्मृजान आयुभि: प्रयस्वान्प्रयसे हितः । इन्दुरत्यो विचक्षणः ॥
स्वर रहित पद पाठसः । मर्मृजानः । आयुऽभिः । प्रयस्वान् । प्रयसे । हितः । इन्दुः । अत्यः । विऽचक्षणः ॥ ९.६६.२३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 66; मन्त्र » 23
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दुः) परमैश्वर्ययुक्तः परमात्मा (हितः) हितकारकोऽस्ति। तथा (अत्यः) सर्वदा गत्वरोऽस्ति। अथ च (विचक्षणः) सर्वज्ञोऽस्ति (प्रयस्वान्) तर्पकः स परमेश्वरः (प्रयसे) ब्रह्मानन्दाय (आयुभिः) कर्मयोगिभिः (मर्मृजानः) ध्यायमानः सन् तेषां साक्षात्कृतो भवति ॥२३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दुः) परमैश्वर्यसंपन्न परमात्मा (हितः) सबका हितकारक तथा (अत्यः) सतत गमनशील है और (विचक्षणः) सर्वज्ञ (प्रयस्वान्) तर्पक (सः) वह जगदीश (प्रयसे) ब्रह्मानन्द के लिए (आयुभिः) कर्मयोगियों से (मर्मृजानः) ध्यान किया गया उनके साक्षात्कार को प्राप्त होता है ॥
भावार्थ
योगी लोग जब परमात्मा का ध्यान करते हैं, तब परमात्मा उन्हें आत्मस्वरूपवत् भान होता है। इसी अभिप्राय से योगसूत्र में कहा है कि “तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्” समाधिवेला में उपासक के स्वरूप में परमात्मा की स्थिति होती है ॥२३॥
विषय
इन्दुः अत्यो विचक्षणः
पदार्थ
[१] (सः) = वह (आयुभिः) = गतिशील पुरुषों से (मर्मृजान:) = शुद्ध किया जाता हुआ (इन्दुः) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला सोम प्रयस्वान् सात्त्विक अन्नवाला होता है। सात्त्विक अन्न के सेवन से उत्पन्न हुआ हुआ सोम ही (प्रयसे) = प्रकृष्ट उद्योग के लिये (हितः) = हितकर होता है। यह सात्त्विक अन्न से उत्पन्न सोम हमें सात्त्विक कार्यों में प्रवृत्त करता है। [२] (अत्यः) = यह सोम सततगामी अश्व की तरह होता है। हमें शक्तिशाली बनाकर निरन्तर क्रिया में प्रवृत्त करता है । (विचक्षणः) = यह विशिष्ट द्रष्टा होता है। हमारी ज्ञानाग्नि को दीप्त करके यह हमें वस्तुतत्त्वों का दर्शन कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- गतिशील बने रहकर हम सोम को पवित्र कर पाते हैं। यह हमें प्रकृष्ट उद्योग में प्रवृत्त करता है। हमें शक्तिशाली, गतिशील व तत्त्वद्रष्टा बनाता है ।
विषय
विशेष अध्यक्ष की उत्तम उद्योग के लिये नियुक्ति।
भावार्थ
(सः) वह (आयुभिः मर्मृजानः) मनुष्यों द्वारा अभिषिक्त होता हुआ (प्रयस्वान्) उत्तम प्रयत्नवान् (प्रयसे हितः) सब को पालने, तृप्त करने, उत्तम मार्ग में यत्न कराने के लिये स्थापित किया जाय। वह (इन्दुः) ऐश्वर्यंवन् ! शत्रुओं पर आक्रमण करने वाला, प्रजाओं से सेवनीय, (अत्यः) सब को प्राप्त, अश्ववत् सब का रक्षक, सबसे अधिक और (विचक्षणः) विशेष रूप से तत्वज्ञान का द्रष्टा हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शतं वैखानसा ऋषयः॥ १–१८, २२–३० पवमानः सोमः। १९—२१ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १ पादनिचृद् गायत्री। २, ३, ५—८, १०, ११, १३, १५—१७, १९, २०, २३, २४, २५, २६, ३० गायत्री। ४, १४, २२, २७ विराड् गायत्री। ९, १२,२१,२८, २९ निचृद् गायत्री। १८ पाद-निचृदनुष्टुप् ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma is invoked, adored and exalted by humanity, by all living beings indeed. Cosmic high priest offering libations into the creative evolution, generous giver, it is invoked and worshipped for the gifts of life for peace and progress. Refulgent and blissful, it comes and blesses the supplicant, for it watches all, responds, and reveals the mysteries of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
योगी जेव्हा परमेश्वराचे ध्यान करतात तेव्हा परमेश्वर त्यांना आत्मस्वरूपवत् वाटतो. योगसूत्रात म्हटले आहे की ‘‘तदा द्रष्टु: स्वरूपेऽवस्थानम्’’ समाधीच्या वेळी उपासकाच्या स्वरूपात परमात्म्याची स्थिती होते. ॥२३॥
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