ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 66/ मन्त्र 8
समु॑ त्वा धी॒भिर॑स्वरन्हिन्व॒तीः स॒प्त जा॒मय॑: । विप्र॑मा॒जा वि॒वस्व॑तः ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । धी॒भिः । अ॒स्व॒र॒न् । हि॒न्व॒तीः । स॒प्त । जा॒मयः॑ । विप्र॑म् । आ॒जा । वि॒वस्व॑तः ॥
स्वर रहित मन्त्र
समु त्वा धीभिरस्वरन्हिन्वतीः सप्त जामय: । विप्रमाजा विवस्वतः ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । ऊँ इति । त्वा । धीभिः । अस्वरन् । हिन्वतीः । सप्त । जामयः । विप्रम् । आजा । विवस्वतः ॥ ९.६६.८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 66; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (विप्रम्) सर्वज्ञं (त्वा) भवन्तं (सप्तजामयः) ज्ञानेन्द्रियाणां सप्त छिद्राणि (धीभिः) बुद्ध्या (समु) सम्यक् (अस्वरन्) शब्दायमानानि (विवस्वतः) यज्ञकर्तुः (आजा) यज्ञे (हिन्वतीः) प्रेरयन्ति ॥८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (विप्रम्) सर्वज्ञ (त्वा) आपको (सप्त जामयः) ज्ञानेन्द्रियों के सात गोलक (धीभिः) बुद्धि द्वारा (समु) भली-भाँति (अस्वरन्) शब्द करते हुए (विवस्वतः) यज्ञकर्त्ता के (आजा) यज्ञ में (हिन्वतीः) प्रेरणा करते हैं ॥८॥
भावार्थ
उपासक लोग बुद्धिवृत्तियों द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार करते हैं। वा यों कहो कि यम-नियम आदि सात अङ्गों द्वारा समाधि की सिद्धि करते हैं। अर्थात् समाधि साध्य पदार्थ है और सात उसके साधन हैं ॥८॥
विषय
सप्त जामयः
पदार्थ
[१] (सप्त) = सात (जामयः) = ' दो कान, दो आँखें, दो नासिका छिद्र व मुख' रूप सात ऋषियों से जन्म लेनेवाली ज्ञान नदियाँ (हिन्वती:) = हमें कर्मों में प्रेरित करती हुईं (त्वा उ) = हे सोम ! तुझे ही (धीभिः) = इन ज्ञानपूर्वक होनेवाले कर्मों से (समु अस्वरन्) = सम्यक् स्तुत करती हैं। इन ज्ञानपूर्वक होनेवाले कर्मों में तेरी ही महिमा दिखती है । [२] हे सोम ! ये ज्ञान नदियाँ (विवस्वतः) = इस ज्ञान की किरणोंवाले ज्ञानी पुरुष के (आजा) = काम, क्रोध, लोभ आदि शत्रुओं के साथ चलनेवाले अध्यात्म-संग्राम में (वि-प्रम्) = विशेषरूप से पूरण करनेवाले तेरा ही स्तवन करती हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारा विशेष रूप से पूरण करनेवाला है। यही ज्ञान प्रवाहों को जन्म देनेवाला है ।
विषय
वेद के सातों छन्द उसकी स्तुति हैं
भावार्थ
(विवस्वतः) विशेष रूप से तेरी परिचर्या करने वाले साधक की (सप्त) सातों (जामयः) बन्धुवत् छन्दोमयी वाणियां (धीभिः) यज्ञादि कर्मों सहित (त्वा हिन्वन्ती) तेरी ही महिमा को बढ़ाती हुई, (आजा) यज्ञ में (त्वा विप्रम्) तुझ विद्वान् के ही (सम् अस्वरन्) गुण वर्णन करती हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शतं वैखानसा ऋषयः॥ १–१८, २२–३० पवमानः सोमः। १९—२१ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १ पादनिचृद् गायत्री। २, ३, ५—८, १०, ११, १३, १५—१७, १९, २०, २३, २४, २५, २६, ३० गायत्री। ४, १४, २२, २७ विराड् गायत्री। ९, १२,२१,२८, २९ निचृद् गायत्री। १८ पाद-निचृदनुष्टुप् ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, spirit of peace, power and bliss, seven streams of Prakrti, seven metres of divine poetry, seven notes of music, all in their functions and vitality in unison, glorify you, vibrant spirit of existence, in the dynamics of the light of life on the vedi of sacred fire.
मराठी (1)
भावार्थ
उपासक बुद्धीवृत्तीद्वारे परमात्म्याचा साक्षात्कार करतात किंवा यमनियम इत्यादी सात अंगाद्वारे समाधीची सिद्धी करतात. समाधी साध्य पदार्थ आहे व सातही त्यांची साधने आहेत ॥८॥
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