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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 10
    ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स पू॒र्व्यो व॑सु॒विज्जाय॑मानो मृजा॒नो अ॒प्सु दु॑दुहा॒नो अद्रौ॑ । अ॒भि॒श॒स्ति॒पा भुव॑नस्य॒ राजा॑ वि॒दद्गा॒तुं ब्रह्म॑णे पू॒यमा॑नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । पू॒र्व्यः । व॒सु॒ऽवित् । जाय॑मानः । मृ॒जा॒नः । अ॒प्ऽसु । दु॒दु॒हा॒नः । अद्रौ॑ । अ॒भि॒श॒स्ति॒ऽपाः । भुव॑नस्य । राजा॑ । वि॒दत् । गा॒तुम् । ब्रह्म॑णे । पू॒यमा॑नः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स पूर्व्यो वसुविज्जायमानो मृजानो अप्सु दुदुहानो अद्रौ । अभिशस्तिपा भुवनस्य राजा विदद्गातुं ब्रह्मणे पूयमानः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । पूर्व्यः । वसुऽवित् । जायमानः । मृजानः । अप्ऽसु । दुदुहानः । अद्रौ । अभिशस्तिऽपाः । भुवनस्य । राजा । विदत् । गातुम् । ब्रह्मणे । पूयमानः ॥ ९.९६.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 10
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सः) स एव (पूर्व्यः) अनादिसिद्धः परमात्मा (वसुवित्) सर्वधनानां नेता (जायमानः) यः सर्वत्र व्याप्नोति (मृजानः) शुद्धः (अप्सु) कर्मसु (दुदुहानः) पूरितो भवति (अद्रौ) सर्वसङ्कटेषु (अभिशस्तिपाः) शत्रुतो रक्षकः (भुवनस्य, राजा) सर्वलोकानां शासकः (ब्रह्मणे, पूयमानः) कर्मसु पवित्रतां प्रददत् (गातुं) उपासकाय (विदत्) पवित्रतां प्रददाति ॥१०॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सः) वह (पूर्व्यः) अनादिसिद्ध परमात्मा (वसुवित्) सब धनों का नेता (जायमानः) जो सब जगह पर व्यापक है, (मृजानः) शुद्ध है, (अप्सु) कर्म्मों में (दुदुहानः) पूर्ण किया जाता है और (अद्रौ) सब प्रकार के संकटों में (अभिशस्तिपाः) शत्रुओं से रक्षा करनेवाला है, (भुवनस्य राजा) सब भुवनों का राजा है, (ब्रह्मणे पूयमानः) कर्म्मों में पवित्रता प्रदान करता हुआ (गातुम्) उपासकों के लिये (विदत्) पवित्रता प्रदान करता है ॥१०॥

    भावार्थ

    शुद्धभाव से उपासना करनेवाले लोगों को परमात्मा सर्वप्रकार के ऐश्वर्य्य और पवित्रताओं का प्रदान करता है ॥१०॥

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    विषय

    परमात्मा का मेघ के तुल्य वर्णन, वही वेद-ज्ञान का दाता है।

    भावार्थ

    (सः) वह (पूर्व्यः) सबसे पूर्व विद्यमान, वा (पूर्व्यः) पालन, पूरण करने योग्य, देहवत् ब्रह्माण्ड में व्यापक, (वसु-वित्) प्राणों, ज्ञानों, धनों, लोकों का प्राप्त कराने हारा आत्मा (जायमानः) स्वयं देह रूप में प्रकट होने वाला, वा जगत् को उत्पन्न करने वाला, (मृजानः) शुद्ध, पवित्र, अन्यों को भी शुद्ध पवित्र करने वाला, (अद्रौ) मेघरूप में (अप्सु दुदुहानः) अन्तरिक्ष में से समस्त जलों को मेघवत्, समस्त कामनाओं को प्रदान करने वाला, (अभिशस्तिपाः) चारों ओर से प्राप्त हिंसाकारी शत्रुओं और निन्दकों और हिंसकों से बचाने वाला, (भुवनस्य राजा) समस्त संसार का राजा, वह प्रकाशस्वरूप रक्षक, (पूयमानः) उपासित होकर (ब्रह्मणे गातुम् विदत्) वेद के ज्ञान को प्राप्त कराता है, ब्रह्मप्राप्ति का मार्ग बतलाता है। इति सप्तमो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    अभिशस्तिपाः

    पदार्थ

    भावार्थ- (स) = वह सोम (पूर्व्यः) = पालन व पूरण करने वालों में उत्तम है । (वसुवित्) = निवास के लिये आवश्यक सब तत्त्वों को प्राप्त करनेवाला है। (जायमानः) = शक्तियों के प्रादुर्भाव वाला है। (अप्सु मृजानः) = कर्मों में यह शुद्ध किया जाता है, अर्थात् हम कर्मों में लगे रहें, तो वासनाओं से बचे रहने से यह सोम मलिन नहीं हो पाता। (अद्रौ) = [one who adores] उपासक में यह (दुदुहान:) = प्रपूरित होता है। (अभिशस्तिपा) = हिंसक शत्रुओं से यह हमारा रक्षण करनेवाला है । (भुवनस्य राजा) = सब प्राणियों के जीवनों को यह दीप्त करनेवाला है । (पूयमानः) = पवित्र किया जाता हुआ यह सोम (ब्रह्मणे) = ब्रह्म प्राप्ति के लिये (गातुं) = मार्ग को (विदत्) = प्राप्त कराता है व उस मार्ग का ज्ञान देता है । एवं यह सोम हमें अन्ततः ब्रह्म को प्राप्त करानेवाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- 'कर्मशीलता व उपासना' सोमरक्षण के साधन हैं, रक्षित सोम हमारा पूरण करता हुआ, शत्रुओं से बचाता हुआ, हमें ब्रह्म की ओर ले चलता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, eternal spirit, master sustainer of the world and its wealth, universally manifestive, adored and exalted, distilled in the cloud and envisioned in thought and action, protector from evil and calumny, ruler and sustainer of the universe, knower and revealer of the paths to divinity is realised in purity and illumined in spiritual yajna of meditation for the attainment of the vision of eternity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    शुद्ध भावनेने उपासना करणाऱ्या लोकांना परमात्मा सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य व पवित्रता देतो. ॥१०॥

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