ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 5
ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
सोम॑: पवते जनि॒ता म॑ती॒नां ज॑नि॒ता दि॒वो ज॑नि॒ता पृ॑थि॒व्याः । ज॒नि॒ताग्नेर्ज॑नि॒ता सूर्य॑स्य जनि॒तेन्द्र॑स्य जनि॒तोत विष्णो॑: ॥
स्वर सहित पद पाठसोमः॑ । प॒व॒ते॒ । ज॒नि॒ता । म॒ती॒नाम् । ज॒नि॒ता । दि॒वः । ज॒नि॒ता । पृ॒थि॒व्याः । ज॒नि॒ता । अ॒ग्नेः । ज॒नि॒ता । सूर्य॑स्य । ज॒नि॒ता । इन्द्र॑स्य । ज॒नि॒ता । उ॒त । विष्णोः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सोम: पवते जनिता मतीनां जनिता दिवो जनिता पृथिव्याः । जनिताग्नेर्जनिता सूर्यस्य जनितेन्द्रस्य जनितोत विष्णो: ॥
स्वर रहित पद पाठसोमः । पवते । जनिता । मतीनाम् । जनिता । दिवः । जनिता । पृथिव्याः । जनिता । अग्नेः । जनिता । सूर्यस्य । जनिता । इन्द्रस्य । जनिता । उत । विष्णोः ॥ ९.९६.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोमः) सर्वोत्पादकः परमात्मा (पवते) सर्वान् पुनाति (जनिता, मतीनां) ज्ञानानामुत्पादकः (दिवः, जनिता) द्युलोकस्योत्पादकः (पृथिव्याः, जनिता) पृथिव्या उत्पादकः (सूर्यस्य, जनिता) सूर्यस्योत्पादकः (अग्नेः, जनिता) अग्नेरुत्पादकः (उत) अथ च (विष्णोः, जनिता) ज्ञानयोग्युत्पादकः (इन्द्रस्य, जनिता) कर्मयोग्युत्पादकः ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोमः) उक्त सर्वोत्पादक परमात्मा (पवते) सबको पवित्र करता है (जनिता मतीनाम्) और ज्ञानों को उत्पन्न करनेवाला है, (दिवो जनिता) द्युलोक को उत्पन्न करनेवाला है, (पृथिव्या जनिता) पृथिवीलोक का उत्पन्न करनेवाला है, (अग्नेर्जनिता) अग्नि को उत्पन्न करनेवाला है और (सूर्यस्य जनिता) सूर्य्य को उत्पन्न करनेवाला है (उत) और (विष्णोः, जनिता) ज्ञानयोगी को उत्पन्न करनेवाला है, (इन्द्रस्य जनिता) कर्म्मयोगी को उत्पन्न करनेवाला है ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा के सर्वकर्तृत्व का वर्णन किया है ॥५॥
विषय
सर्वशासक प्रभु।
भावार्थ
(सोमः पवते) सब को शासन करने में समर्थ, सब का प्रभु, स्वामी, (पवते) सर्वत्र व्यापता है, वही सब को चला रहा है। वह (महीनां जनिता) उत्तम बुद्धियों और उत्तम भावनाओं को उत्पन्न करने वाला है। (दिवः जनिता) वही प्रकाश, ज्ञान और व्यवहार, सभा, समिति, आकाशस्थ जगत् को प्रकट करता है। वही (पृथिव्याः जनिता) पृथिवी, आश्रय, स्त्री, भूमि का प्रकट करने वाला है। वह (अग्निः जनिता) अग्नि और तद्वत् विद्वान् ज्ञानप्रकाश को उत्पन्न करने वाला है। वह (सूर्यस्य जनिता) सूर्य का उत्पादक है। (इन्द्रस्य जनिता) वह अन्न, जलप्रद मेघ, विद्युत् आदि का उत्पादक है। (उत विष्णोः) और वही व्यापक वायु का भी उत्पादक है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'इन्द्र व विष्णु' पद की प्राप्ति
पदार्थ
(सोमः) = वीर्यशक्ति (पवते) = हमें प्राप्त होती है। यह (मतीनां जनिता) = बुद्धियों का प्रादुर्भाव करनेवाली होती है (दिवः जनिता) = यदि यह मस्तिष्क रूप द्युलोक का प्रादुर्भाव करती है, तो साथ ही (पृथिव्याः जनिता) = शरीर रूप पृथिवी का भी विकास करनेवाली होती है । यह सोमशक्ति (अग्नेः जनिता) = शरीर रूप पृथ्वी पर अग्नि तत्व को पैदा करनेवाली है और (सूर्यस्य जनिता) = मस्तिष्क रूप द्युलोक में सूर्य को प्रादुर्भूत करती है। शरीर में अग्नितत्त्व से तेजस्विता को जन्म देता है और मस्तिष्क में सूर्य प्रकाश का कारण बनता है। यह सोम (इन्द्रस्य) = सब बल और कर्मों को करनेवाले इन्द्र को (जनिता) = पैदा करता है, (उत) = और (विष्णो) = व्यापक उदार हृदय वाले पुरुष को जनिता उत्पन्न करता है । यह सोम हमें 'इन्द्र व विष्णु' पद को प्राप्त कराता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम शक्ति व प्रकाश को जन्म देता हुआ हमें 'इन्द्र व विष्णु' बनाता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of divine peace, power and generous creativity, flows and purifies universally. It is generator of heavens, maker of the earth and creator of the nobilities of sagely wisdom, generator of fire, maker of the stars, manifester of its own omnipotence, and manifester of the omnipresence of its own self in expansive space.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराच्या सर्वकर्तृत्वाचे वर्णन केलेले आहे. ॥५॥
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