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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 19
    ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    च॒मू॒षच्छ्ये॒नः श॑कु॒नो वि॒भृत्वा॑ गोवि॒न्दुर्द्र॒प्स आयु॑धानि॒ बिभ्र॑त् । अ॒पामू॒र्मिं सच॑मानः समु॒द्रं तु॒रीयं॒ धाम॑ महि॒षो वि॑वक्ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    च॒मू॒ऽसत् । श्ये॒नः । श॒कु॒नः । वि॒ऽभृत्वा॑ । गो॒ऽवि॒न्दुः । द्र॒प्सः । आयु॑धानि । बिभ्र॑त् । अ॒पाम् । ऊ॒र्मिम् । सच॑मानः । स॒मु॒द्रम् । तु॒रीय॑म् । धाम॑ । म॒हि॒षः । वि॒व॒क्ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    चमूषच्छ्येनः शकुनो विभृत्वा गोविन्दुर्द्रप्स आयुधानि बिभ्रत् । अपामूर्मिं सचमानः समुद्रं तुरीयं धाम महिषो विवक्ति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    चमूऽसत् । श्येनः । शकुनः । विऽभृत्वा । गोऽविन्दुः । द्रप्सः । आयुधानि । बिभ्रत् । अपाम् । ऊर्मिम् । सचमानः । समुद्रम् । तुरीयम् । धाम । महिषः । विवक्ति ॥ ९.९६.१९

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 19
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अपाम्, ऊर्मिं) प्रकृतेः सूक्ष्मतमशक्तिभिः (सचमानः) सङ्गतः (समुद्रं) उत्पत्तिस्थितिप्रलयाश्रयः (तुरीयं, धाम) स चतुर्थधाम परमपदं परमात्मास्ति। (महिषः) महान् पुरुषः उक्ततुरीयपरमात्मानं (विवक्ति) वर्णयति स एव (चमूसत्) प्रत्येकबले सीदति (श्येनः) सर्वाधिकप्रशंसनीयः (शकुनः) सर्वशक्तिमान् (गोविन्दुः) उपास्यतर्पकः (द्रप्सः) द्रुतगतिः (आयुधानि, बिभ्रत्) अनन्तशक्तिं दधत् संसारस्योत्पादकः ॥१९॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अपामूर्मिम्) प्रकृति की सूक्ष्म से सूक्ष्म शक्तियों के साथ (सचमानः) जो संगत है और (समुद्रम्) “सम्यग् द्रवन्ति भूतानि यस्मात् स समुद्रः” जिससे सब भूतों की उत्पत्ति स्थिति और प्रलय होता है, वह (तुरीयम्) चौथा (धाम) परमपद परमात्मा है, उसको (महिषः) “मह्यते इति महिषः”, महिष इति महन्नामसु नि. ३।१३। पठितम्। महापुरुष उक्त तुरीय परमात्मा का (विवक्ति) वर्णन करता है। वह परमात्मा (चमूसत्) जो प्रत्येक बल में स्थित है, (श्येनः) सर्वोपरि प्रशंसनीय है और (शकुनः) सर्वशक्तिमान् है। (गोविन्दुः) यजमानों को तृप्त करके जो (द्रप्सः) शीघ्र गतिवाला है (आयुधानि, बिभ्रत्) अनन्तशक्तियों को धारण करता हुआ इस संपूर्ण संसार का उत्पादक है ॥१९॥

    भावार्थ

    परमात्मा इस विविध रचना का नियन्ता है। उसने अन्तरिक्षलोक को सम्पूर्ण भूतों के इतस्ततः भ्रमण का स्थान बनाया है ॥१९॥

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    विषय

    सेनापतिवत् आत्मा का वर्णन।

    भावार्थ

    (चमू-सत्) सेनाओं पर अध्यक्षवत् विराजने वाले सेनापति के तुल्य (चमूषत्) विषयों के भोक्ता, इन्द्रिय, मन, देह के ऊपर अध्यक्षवत् वशीकर्त्ता, (श्येनः) शंसनीय आचार वाला, (शुकुनः) शक्तिमान्, अन्यों को भी उन्नत पद पर ले जाने में समर्थ, और शत्रुओं को उत्पीड़न करने वाला, (विभृत्वा) सर्वत्र विहार करने वाला वा प्रजा को विशेष रूप से भरण पोषण करने में समर्थ (गोविन्दुः) वेद वाणियों और भूमियों को सूर्य रश्मिवत् धारण करने वाला, तेजस्वी, (द्रप्सः) दुतगति वाला, वीर्यवान् होकर (आयुधानि बिभ्रत्) नाना शस्त्रों उपकरणों को धारण करता हुआ, साधनसम्पन्न, (महिषः) महान् शक्तिशाली होकर, (अपाम् ऊर्मिम् सचमानः) जलों के तरंग के तुल्य प्रजा वर्गों के उत्तम बल को प्राप्त करता हुआ, (समुद्रं) समुद्रवत् महान्, सर्व रसों के आकर (तुरीयं धाम) चतुर्थ धाम, परम पद प्रभु को (विवक्ति) प्राप्त होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'श्येनः शकुनः ' सोमः

    पदार्थ

    (चमूषत्) = द्यावापृथिवी में, मस्तिष्क व शरीर में आसीन होनेवाला सोम (श्येनः) = शंसनीय- गतिवाला है, विचारों की उत्तमता के कारण सदा उत्तम कर्मों वाला होता है। (शकुनः) = हमें शक्तिशाली बनाता हुआ (विभृत्वा) = विशेषरूप से हमारा भरण करता है । (गोविन्दुः) = ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करनेवाला यह सोम (द्रप्सः) = हर्ष का कारण होता है । यह (आयुधानि) =' इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि' रूप आयुधों का (बिभ्रत्) = धारण करता है । (अपां ऊर्मिम्) = कर्मों के प्रेरक (समुद्रम्) = वेदवाणीरूप ज्ञानसमुद्र को (सचमानः) = सेवन करता हुआ (महिषः) = यह पूजा की वृत्ति वाला सोम (तुरीयं धाम) = 'जागरित स्वप्न सुषुप्ति' इन तीन से ऊपर समाधिजन्य तुरीय स्थिति को, योगानिद्रा को (विवक्ति) = हमारे जीवनों में व्यक्त करता है, हमारे जीवनों में हम इस सोमरक्षण से उस तुरीयावस्था का अनुभव करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमें शंसनीयगतिवाला व शक्तिशाली बनाता हुआ अन्तः तुरीयावस्था को प्राप्त करानेवाला होता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Pervading every form of life and nature, adorable supreme Soma presence of divinity, abiding with stars and planets in motion, bearing infinite powers, vibrating with the waves of nature’s dynamics, vesting the cosmic structure, transcends to the fourth state of absolute bliss. Only the mighty sage speaks of the presence beyond speech.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा या विविध रचनांचा नियंता आहे. त्याने अंतरिक्ष लोकाला संपूर्ण भूतांच्या इकडे तिकडे भ्रमण करण्याचे स्थान बनविलेले आहे. ॥१९॥

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