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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 18
    ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ऋषि॑मना॒ य ऋ॑षि॒कृत्स्व॒र्षाः स॒हस्र॑णीथः पद॒वीः क॑वी॒नाम् । तृ॒तीयं॒ धाम॑ महि॒षः सिषा॑स॒न्त्सोमो॑ वि॒राज॒मनु॑ राजति॒ ष्टुप् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋषि॑ऽमनाः । यः । ऋ॒षि॒ऽकृत् । स्वः॒ऽसाः । स॒हस्र॑ऽनीथः । प॒द॒ऽवीः । क॒वी॒नाम् । तृ॒तीय॑म् । धाम॑ । म॒हि॒षः । सिसा॑सन् । सोमः॑ । वि॒ऽराज॑म् । अनु॑ । रा॒ज॒ति॒ । स्तुप् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्रणीथः पदवीः कवीनाम् । तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋषिऽमनाः । यः । ऋषिऽकृत् । स्वःऽसाः । सहस्रऽनीथः । पदऽवीः । कवीनाम् । तृतीयम् । धाम । महिषः । सिसासन् । सोमः । विऽराजम् । अनु । राजति । स्तुप् ॥ ९.९६.१८

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 18
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोमः) सोमस्वरूपः परमात्मा (सिषासन्) पालनेच्छां कुर्वन् (महिषः) सर्वपूज्यः (तृतीयं, धाम) देवयानपितृयानाभ्यां पृथक् तृतीये मुक्तिधाम्नि (विराजं) विराजन्तं ज्ञानयोगिनं (अनु, राजति) प्रकाशयति (स्तुप्) स्तूयमानश्चास्ति (कवीनां, पदवीः) क्रान्तदर्शिनां कवीनां मुख्यस्थानं चास्ति (सहस्रनीथः) सहस्रधा स्तवनीयः (ऋषिमनाः) सर्वज्ञानसाधनमनोयुक्तः सः (ऋषिकृत्) ज्ञानप्रदः (स्वर्षाः) सूर्यादिकानामपि प्रकाशकः। स एव जिज्ञासुभिः उपास्यः ॥१८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोमः) सोमस्वरूप परमात्मा (सिषासन्) पालन की इच्छा करता हुआ (महिषः) जो महान् है, वह परमात्मा (तृतीयं, धाम) देवयान और पितृयान इन दोनों से पृथक् तीसरा जो मुक्तिधाम है, उसमें (विराजम्) विराजमान जो ज्ञानयोगी है, उसको (अनु, राजति) प्रकाश करनेवाला है और (स्तुप्) स्तूयमान है। (कवीनाम्, पदवीः) जो क्रान्तदर्शियों की पदवी अर्थात् मुख्य स्थान है और (सहस्रनीथः) अनन्त प्रकार से स्तवनीय है। (ऋषिमनाः) सर्वज्ञान के साधनरूप मनवाला वह परमात्मा (यः) जो (ऋषिकृत्) सब ज्ञानों का प्रदाता (स्वर्षाः) सूर्य्यादिकों का प्रकाशक है, वह जिज्ञासु के लिये उपासनीय है ॥१८॥

    भावार्थ

    परमात्मा सब लोक-लोकान्तरों का नियन्ता है तथा मुक्तिधाम में विराजमान पुरुषों का भी नियन्ता है ॥१८॥

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    विषय

    उपदेष्टा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (यः) जो (ऋषि-मनाः) सर्व सत्यार्थ देखने वाला, विद्वानों के ज्ञानों को जानने वाला, उनके चित्तों के समान चित्त वाला, (ऋषिकृत्) सब को दर्शन करने वाला वा अन्य भी मन्त्रार्थं द्वष्टाओं को उत्पन्न करने में समर्थ, (सहस्र-नीथः) सहस्रों वाणियों को जानने वाला, परम वेदज्ञ, (कवीनां पदवीः) विद्वानों के बीच में ज्ञानयोग्य परमपद का प्रकाशक होता है वह (सिषासन्) अन्यों को भी ज्ञानैश्वर्य प्रदान करता हुआ (स्तुप्) उपदेष्टा, (महिषः) महान्, (सोमः) शास्ता विद्वान् होकर (विराजम् अनु) विशेष दीप्तिमान् सूर्य के अनुसार (तृतीयं धाम) तीसरे वा सर्वोत्कृष्ट पद को प्राप्त कर प्रकाशित होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'ऋषिमनाः ऋषिकृत्' सोमः

    पदार्थ

    (ऋषिमनाः) = ऋषियों के मन के समान मन वाला (यः) = जो सोम है वह (ऋषिकृत्) = हमें ऋषि बनाता है (स्वर्षा:) = प्रकाश को प्राप्त कराता है, (सहस्रणीथः) [नीथाः स्तुतिः] ] शत स्तुतियों वाला है। हमें सदा प्रभुस्तवन की वृत्ति वाला बनाता है। (कवीनाम् पदवी:) = ज्ञानियों के मार्ग को कान्त बनाता है [वी - कान्ति] यह (महिषः) = [मह पूजयाम्] प्रभु पूजन की वृत्ति वाला (सोमः) = सोम (तृतीयं धाम) = 'प्रकृति व जीव' से ऊपर उठकर प्रभुरूप तृतीय स्थान को (सिषासन्) = [संभक्तुमिच्छून्] सेवित करने की इच्छा करता हुआ (स्तुप्) = काम-क्रोध-लोभ को रोकनेवाला [To stop] सोम (विराजं अनुराजति) = उस देदीप्यमान प्रभु के अनुसार दीप्ति वाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें 'ऋषि' बनाता है। प्रभु के समान दीप्ति वाला करता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma is the presence that is the universal seer and poetic creator, maker of poets, exalted by sages, shower streams of bliss, adored a thousand ways for infinite power and glory, ultimate love and desire of poets, awful refulgence radiating to the third blazing space beyond the earthly and paradisal regions of life, the presence that mles and illuminates the heart and soul beyond the state of existential involvement, the one loving, blessing, beatific ultimate object of adoration and worship.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर सर्व लोकलोकांतराचा नियंता आहे व मुक्तिधामात विराजमान पुरुषांचाही नियंता आहे. ॥१८॥

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