ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 4
ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अजी॑त॒येऽह॑तये पवस्व स्व॒स्तये॑ स॒र्वता॑तये बृह॒ते । तदु॑शन्ति॒ विश्व॑ इ॒मे सखा॑य॒स्तद॒हं व॑श्मि पवमान सोम ॥
स्वर सहित पद पाठअजी॑तये । अह॑तये । प॒व॒स्व॒ । स्व॒स्तये॑ । स॒र्वऽता॑तये । बृ॒ह॒ते । तत् । उ॒श॒न्ति॒ । विश्वे॑ । इ॒मे । सखा॑यः । तत् । अ॒हम् । व॒श्मि॒ । प॒व॒मा॒न॒ । सो॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अजीतयेऽहतये पवस्व स्वस्तये सर्वतातये बृहते । तदुशन्ति विश्व इमे सखायस्तदहं वश्मि पवमान सोम ॥
स्वर रहित पद पाठअजीतये । अहतये । पवस्व । स्वस्तये । सर्वऽतातये । बृहते । तत् । उशन्ति । विश्वे । इमे । सखायः । तत् । अहम् । वश्मि । पवमान । सोम ॥ ९.९६.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे सर्वोत्पादक ! (पवमान) सर्वपावक ! (अजीतये) अहं न केनापि पराजितः स्याम् (अहतये) अहतो भवेयम् (पवस्व) एतदर्थं मां पवित्रय (स्वस्तये) मङ्गलाय (बृहते, सर्वतातये) बृहद्यज्ञाय च (तत्, उशन्ति) एतद्विषयिकां कामनां (इमे, विश्वे) इमे सर्वे (सखायः) मित्राणि कुर्वन्ति (तत्) तस्मात् (अहं, वश्मि) अहमेतत्कामये, अतः हे परमात्मन् ! भवान् मह्यमुक्तैश्वर्यं ददातु, यतो भवानस्य ब्रह्माण्डस्योत्पादकः ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे सर्वोत्पादक ! (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (अजीतये) हम किसी से जीते न जायें, (अहतये) किसी से मारे न जायें, (पवस्व) इस बात के लिये आप हमको पवित्र बनायें और (स्वस्तये) मङ्गल के लिये (बृहते, सर्वतातये) सर्वोपरि बृहत् यज्ञ के लिये (तदुशन्ति) इसी पद की कामना (इमे विश्वे) ये सब (सखायः) मित्रगण करते हैं। (तत्) इसीलिये (अहम्) मैं (वश्मि) यही कामना करता हूँ। इसीलिये हे परमात्मन् ! आप हमको उक्त प्रकार का ऐश्वर्य्य दें, क्योंकि आप इस ब्रह्माण्ड के उत्पत्तिकर्ता हैं ॥४॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा की आज्ञाओं का पालन करते हैं, वे किसी से दबाये व दीन नहीं किये जा सकते ॥४॥
विषय
उसका उद्देश्य, प्रजा का सुख कल्याण।
भावार्थ
हे (पवमान सोम) दुष्ट पुरुषों को दण्डित करके राष्ट्र को शुद्ध, स्वच्छ करने हारे अधिकारी शासक जन ! तू (अजीतये) कभी स्वयं पराजित न होने और शत्रु को विजयी न होने देने के लिये, (अहतये) प्रजा को दुष्टों से पीड़ित न होने देने के लिये, (स्वस्तये) प्रजा के सुख कल्याण के लिये और (बृहते विश्वतातये) बड़े भारी विश्वजनीन कल्याण, के लिये तू (पवस्व) उद्योग कर। (इसे विश्व सखायः) ये समस्त मित्रगण (तत् उशन्ति) वही सब चाहते हैं और (अहं तत् वश्मि) यही मैं प्रजाजन भी चाहता हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
अजीति अहति
पदार्थ
हे सोम ! तू (अजीतये) = 'हम शत्रुओं से पराजित न हो' इसके लिये (पवस्व) = हमें प्राप्त हो । (अहतये:) = ' हम शत्रुओं से विनष्ट न किये जा सकें इसके लिये हमें प्राप्त हो। इसी प्रकार (स्वस्तये) = कल्याण के लिये, (सर्वतातये) = सब सद्गुणों के विस्तार के लिये तथा (बृहते) = महान् बुद्धि के लिये तू हमें प्राप्त हो । (विश्वे इमे सखायः) = सब ये मेरे मित्र (तद् उशन्ति) = उस अजीति व अहुति की ही कामना करते हैं। हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले सोम (अहं) = मैं भी (तद् वश्मि) = वह ही चाहता हूँ। मैं भी यही कामना करता हूँ कि सोमरक्षण के द्वारा मैं शत्रुओं से न जीता जाऊँ, न मारा जाऊँ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम शरीर में रोगों से अहत रहते हैं और मन में वासनाओं से अपराजित बनते हैं ।
इंग्लिश (1)
Meaning
O pure and purifying Soma, peace and power of divinity, come, purify and strengthen us against slavery and injury to our honour and excellence, come for our well being and universal welfare of high order. That gift of honour, freedom and welfare, all these friendly communities of the world love and pray for, that same I love, and that we all pray and strive for.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमेश्वराच्या आज्ञेचे पालन करतात त्यांचे कुणी दमन करू शकत नाही किंवा त्यांना दीनही बनविता येत नाही. ॥४॥
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