ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 15
ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ए॒ष स्य सोमो॑ म॒तिभि॑: पुना॒नोऽत्यो॒ न वा॒जी तर॒तीदरा॑तीः । पयो॒ न दु॒ग्धमदि॑तेरिषि॒रमु॒र्वि॑व गा॒तुः सु॒यमो॒ न वोळ्हा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । स्यः । सोमः॑ । म॒तिऽभिः॑ । पु॒ना॒नः । अत्यः॑ । न । वा॒जी । तर॑ति । इत् । अरा॑तीः । पयः॑ । न । दु॒ग्धम् । अदि॑तेः । इ॒षि॒रम् । उ॒रुऽइ॑व । गा॒तुः । सु॒ऽयमः॑ । न । वोळ्हा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष स्य सोमो मतिभि: पुनानोऽत्यो न वाजी तरतीदरातीः । पयो न दुग्धमदितेरिषिरमुर्विव गातुः सुयमो न वोळ्हा ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । स्यः । सोमः । मतिऽभिः । पुनानः । अत्यः । न । वाजी । तरति । इत् । अरातीः । पयः । न । दुग्धम् । अदितेः । इषिरम् । उरुऽइव । गातुः । सुऽयमः । न । वोळ्हा ॥ ९.९६.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 15
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषः, स्यः, सोमः) असौ प्रसिद्धः परमात्मा (मतिभिः) ज्ञानविज्ञानद्वारेण (पुनानः) पावयन् (अत्यः, न) विद्युदिव (वाजी) बलवान् (अरातीः) शत्रून् (इत्, तरति) अवश्यमभिभवति स च (अदितेः) गोः (दुग्धं, पयः, न) दोहनिष्पन्नदुग्धमिव (इषिरं) सर्वप्रियोऽस्ति (उरु, गातुः, इव) विस्तीर्णमार्ग इव सर्वाश्रयणीयोऽस्ति। (वोळ्हा, न) तथा च सम्यङ् नियन्तेवास्ति ॥१५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एषः, स्यः, सोमः) यह उक्त परमात्मा (मतिभिः) ज्ञान-विज्ञानों द्वारा (पुनानः) पवित्र करता हुआ (अत्यो न) विद्युत् के समान (वाजी) बलरूप परमात्मा (अरातीः) शत्रुओं को (इत्) अवश्य (तरति) उल्लङ्घन करता है, वह परमात्मा (अदितेः) गौ के (दुग्धम्) दुहे हुए (पयः) दुग्ध के (न) समान (इषिरम्) सर्वप्रिय है (उरु) विस्तीर्ण (गातुरिव) मार्ग के समान सबका आश्रयणीय है तथा (वोळ्हा) सम्यक् नियन्ता के (न) समान है ॥१५॥
भावार्थ
परमात्मा के सदृश इस संसार में कोई नियन्ता नहीं, उसी के नियम में सब लोक-लोकान्तर भ्रमण करते हैं ॥१५॥
विषय
सर्वप्रिय शासक।
भावार्थ
(एषः स्यः सोमः) यह वह सोम, राजावत् विद्वान्, (मतिभिः) ज्ञानवाणियों, मतिमान् पुरुषों से (पुनानः) पवित्र होता हुआ, अभिषेक वा स्नान करता हुआ, (वाजी अत्यः न) वेगवान्, बलवान् अश्व के समान स्वयं ज्ञानादि बल से युक्त और सर्वोपरि होकर (अरातीः इत् तरति) समस्त शत्रुओं को पार कर जाता है। इस प्रकार (दुग्धं पयः न) दोहे हुए दूध के समान वह शासक स्वयं (अदितेः इषिरम्) भूमि और सूर्य का मानों अभीष्ट चन्द्रवत् माता पिताके अभीष्ट पुत्रवत् प्रिय हो जाता है, वह (उरु इव गातुः) महापथ के समान सबको उद्देश्य तक सुखसे पहुंचानेवाला और (सुयमः वोढा न) उत्तम यम नियम वाला पूर्ण ब्रह्मचारी, विवाह करनेवाले के समान दृढ़ बलवान् वा (सुयमः न वोढा) भार वहन करने वाले अश्व वा बैल के समान उत्तम रीति से निमन्त्रित हो। इत्यष्टमो वर्गः॥
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'शत्रुओं को जीतनेवाला' सोम
पदार्थ
(एषः) = यह (स्य) = प्रसिद्ध (सोमः) = सोम [वीर्य] (मतिभिः) = मननपूर्वक किये गये प्रभु के स्तोत्रों से (पुनानः) = पवित्र किया जाता हुआ, (अत्यः वाजी न) = शक्तिशाली घोड़े के समान (अरातीः तरति इत्) = शत्रुओं को तैर ही जाता है। शरीर में सुरक्षित सोम रोगकृमि व वासनारूप शत्रुओं को विनष्ट करनेवाला होता है। यह सोम क्रिया है ? यह तो (अदितेः) = इस अदीना देवमाता वेदवाणीरूप गौ के (दुग्धम्) = दोहे हुए (पयः न) = दूध के समान है । (इषिरम्) = यह हमें कर्मों की प्रेरणा देनेवाला है। यह सोम (उरु गातुः इव) = विशाल मार्ग के समान सबसे समादरणीय है । (सुयमः) = सुनियन्तित (वोढा न) = अश्व के समान यह हमें लक्ष्यस्थान पर पहुँचानेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम शक्तिशाली घोड़े के समान शत्रु विजय का साधन है। ज्ञानदुग्ध को प्राप्त करानेवाला, हृदय को विशाल मार्ग की ओर प्रेरित करनेवाला तथा सुनियन्त्रित अश्व के समान लक्ष्यस्थान पर पहुँचानेवाला है।
इंग्लिश (1)
Meaning
This, the lord Soma, celebrated and exalted by devotees and wise sages, overcomes contradictions and negativities like a victor war horse trampling the enemies. It is delicious like the milk of the inviolable cow, sure guide like a wide path on earth, and unfailing carrier and saviour like a trained courser for the destination.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराप्रमाणे या जगात कोणी नियन्ता नाही. त्याच नियमात सर्व लोकलोकान्तर भ्रमण करतात. ॥१५॥
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