ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 6
ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ब्र॒ह्मा दे॒वानां॑ पद॒वीः क॑वी॒नामृषि॒र्विप्रा॑णां महि॒षो मृ॒गाणा॑म् । श्ये॒नो गृध्रा॑णां॒ स्वधि॑ति॒र्वना॑नां॒ सोम॑: प॒वित्र॒मत्ये॑ति॒ रेभ॑न् ॥
स्वर सहित पद पाठब्र॒ह्मा । दे॒वाना॑म् । प॒द॒ऽवीः । क॒वी॒नाम् । ऋषिः॑ । विप्रा॑णाम् । म॒हि॒षः । मृ॒गाणा॑म् । श्ये॒नः । गृध्रा॑णाम् । स्वऽधि॑तिः । वना॑नाम् । सोमः॑ । प॒वित्र॑म् । अति॑ । ए॒ति॒ । रेभ॑न् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मा देवानां पदवीः कवीनामृषिर्विप्राणां महिषो मृगाणाम् । श्येनो गृध्राणां स्वधितिर्वनानां सोम: पवित्रमत्येति रेभन् ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मा । देवानाम् । पदऽवीः । कवीनाम् । ऋषिः । विप्राणाम् । महिषः । मृगाणाम् । श्येनः । गृध्राणाम् । स्वऽधितिः । वनानाम् । सोमः । पवित्रम् । अति । एति । रेभन् ॥ ९.९६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोमः) सर्वोत्पादकः परमात्मा (पवित्रं) वज्रिणमपि (रेभन्) शब्दायमानः (अति, एति) अतिक्रामति, यथा (गृध्राणां) शस्त्राणां मध्ये (स्वधितिः) वज्रनामशस्त्रं सर्वाण्यतिक्रामति (मृगाणां, श्येनः) यथा च शीघ्रगतिकपक्षिणां मध्ये श्येनः (विप्राणां, कवीनां, ऋषिः) विप्राणां कवीनां मध्ये ऋषिः (देवानां, ब्रह्मा) विदुषां मध्ये चतुर्णामपि वेदानामध्येता सर्वानतिक्रामति एवं हि (पदवीः) सर्वोच्चपदरूपः सोमः सर्वेषु वस्तुषु मुख्यः ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोमः) सर्वोत्पादक परमात्मा (पवित्रम्) वज्रवाले को भी (रेभन्) शब्द करता हुआ अतिक्रमण कर जाता है। जिस प्रकार (गृध्राणाम्) “गृध्यति शश्वच्छेत्तुमभिकाङ्क्षति इति गृध्रः शस्त्रम्”। शस्त्रों के मध्य में (स्वधितिः) वज्र सबको अतिक्रमण कर जाता है और (मृगाणां श्येनः) शीघ्रगतिवाले पक्षियों में वाज और (विप्राणाम्, कवीनां, ऋषिः) विप्र और कविओं के मध्य में ऋषि सबको अतिक्रमण कर जाता है (देवानाम्) और विद्वानों के मध्य में (ब्रह्मा) ४ वेदों का वक्ता सबको अतिक्रमण कर जाता है, इसी प्रकार (पदवीः) सर्वोपरि उच्चपदरूप परमात्मा सब वस्तुओं में मुख्य है ॥६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में कवि, विप्र, ब्रह्मादि मुख्य-२ शक्तियोंवाले पुरुषों का दृष्टान्त देकर परमात्मा की मुख्यता वर्णन की है ॥६॥
विषय
सर्वोपदेष्टा का वर्णन, वह कैसा है। अध्यात्म में आत्मा और उसके इन्द्रियगण का वर्णन। उसके ब्रह्मा, कवि, श्येन, स्वधिति आदि नाम। इन्द्रियों के देव, कवि, विप्र, मृग, गृध, वन आदि नाम।
भावार्थ
वह (सोमः) शास्ता ही (रेभन्) उत्तम उपदेश करता हुआ, अधीनों के प्रति आज्ञा देता हुआ (पवित्रम् अति एति) दोषनाशक, परम पावन पद को सब से ऊपर प्राप्त करता है। वह (देवानां ब्रह्मा) विद्वानों के बीच चारों वेदों के ज्ञाता ब्रह्मा के समान विद्वान्, शक्तियों में महान् हो। वह (कविनां पदवीः) क्रान्तदर्शी विद्वानों के बीच में परम पद को प्राप्त करने और उसको प्रकाश करने वाला हो। वह (विप्राणां ऋषिः) विद्वान् पुरुषों के बीच में सत्य अर्थ का देखने वाला हो। वह (मृगाणां महिषः) पशुओं के बीच में महान् बलशाली, सिंह के समान गुणों में भी महान् हो। (गृधाणां श्येनः) वह बड़े २ पक्षियों के बीच में भी बाज के समान पराक्रमी, बलवान् एवं सर्वोत्तम आचारवान् हो। (वनानां स्वधितिः) वनों के बीच में कुठार के समान शत्रुओं के छेदन-भेदन में कुशल हो। वह (रेभन्) सर्वोपदेष्टा सर्वाज्ञापालक (पवित्रम् अति एति) परम पावन पद को सर्वोपरि होकर प्राप्त होता है। (२) अध्यात्म में—ज्ञान के प्रकाशक इन्द्रियों में आत्मा ही बलशाली होने से ‘ब्रह्मा’ है। देहावधि को क्रान्त कर देखने से इन्द्रिय ही ‘कवि’ हैं उनको लक्ष्य पद तक पहुंचाने और उनके किये ज्ञान को देखने भोगने वाला आत्मा ही ‘पदवी’ है। ज्ञान-कर्म के साधक ‘विप्र’ इन्द्रियें हैं उनका द्रष्टा ‘ऋषि’ आत्मा है। विषयों के खोजने वाले इन्द्रियगण के बीच वह आत्मा बड़ा बलवान् होने से ‘महिष’ है। विषयों की लिप्सा करनेवाले इन्द्रियगण ‘गृध्र’ हैं, उनमें सर्वोत्तम प्रशंसनीय आत्मा ‘श्येन’ है। भोग्य पदार्थों को सेवन करनेवाली इन्द्रियां ‘वन’ है उनको स्वशक्ति से धारनेवाला आत्मा ‘स्वधिति’ है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
ब्रह्मा देवानाम्
पदार्थ
(सोमः) = सोम (पवित्रम्) = पवित्र हृदय वाले पुरुष को (रेभन्) = स्तुति करता हुआ (अति एति) = अतिशयेन प्राप्त होता है। यह सोम ही स्तुति की वृत्ति को पैदा करता है। यह सोम (देवानां ब्रह्म) = देवों में ब्रह्मा है, सर्वप्रथम देव है । यह हमें देवों में श्रेष्ठतम बनाता है। (कवीनां पदवी:) = क्रान्तदर्शी ज्ञानियों का मार्गदर्शक है, अर्थात् कवियों का भी कवि है । (विप्राणां ऋषिः) = मेधावियों में ऋषि है, सोम उत्कृष्ट मेधा का जनक है। (मृगाणाम्) = आत्मान्वेषण करने वालों में (महिषः) = पूज्य है । (गृध्राणाम्) = विषयलोलुप इन्द्रियों का यह (श्येनः) = शंसनीय गतिवाला है । विषयलोलुप इन्द्रिय रूप गृध्रों के लिये यह श्येन हैं, उन्हें समाप्त करनेवाला 'बाज' है। यह इन्द्रियों की विषयलोलुपता को समाप्त करके उन्हें शंसनीय गतिवाला बनाता है । सोमरक्षण से इन्द्रियाँ विषयलोलुपता को छोड़कर शंसनीय गति वाली बनती हैं। यह सोम (वनानां स्वधितिः) = उपासकों में आत्मतत्व को धारण करनेवाला है। अथवा वासनावृक्ष के वनों का कुल्हाड़ा ही है, वासनाओं को छिन्न-भिन्न करके हृदय क्षेत्र को निर्मल करनेवाला है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम जीवन को श्रेष्ठ, श्रेष्ठतर व श्रोष्ठतम बनाता चलता है। यह अन्ततः हमें 'ब्रह्मा' बना देता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
The Soma Spirit is Brahma, supreme over divinities, highest of the poets, divine seer among the wise, lion among the strongest animals, eagle among the birds of power, sword among the killers and, roaring and thundering, it goes forward, excels all others, and blesses the pure heart core of the soul.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात कवी, विप्र, ब्रह्म इत्यादी प्रमुख शक्ती असणाऱ्या पुरुषांचा दृष्टान्त देऊन परमेश्वराचे महत्त्व वर्णिलेले आहे. ॥६॥
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