ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 21
ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
पव॑स्वेन्दो॒ पव॑मानो॒ महो॑भि॒: कनि॑क्रद॒त्परि॒ वारा॑ण्यर्ष । क्रीळ॑ञ्च॒म्वो॒३॒॑रा वि॑श पू॒यमा॑न॒ इन्द्रं॑ ते॒ रसो॑ मदि॒रो म॑मत्तु ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑स्व । इ॒न्दो॒ इति॑ । पव॑मानः । महः॑ऽभिः । कनि॑क्रदत् । परि॑ । वारा॑णि । अ॒र्ष॒ । क्रीळ॑न् । च॒म्वोः॑ । आ । वि॒श॒ । पू॒यमा॑नः । इन्द्र॑म् । ते॒ । रसः॑ । म॒दि॒रः । म॒म॒त्तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवस्वेन्दो पवमानो महोभि: कनिक्रदत्परि वाराण्यर्ष । क्रीळञ्चम्वो३रा विश पूयमान इन्द्रं ते रसो मदिरो ममत्तु ॥
स्वर रहित पद पाठपवस्व । इन्दो इति । पवमानः । महःऽभिः । कनिक्रदत् । परि । वाराणि । अर्ष । क्रीळन् । चम्वोः । आ । विश । पूयमानः । इन्द्रम् । ते । रसः । मदिरः । ममत्तु ॥ ९.९६.२१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 21
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 10; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (महोभिः, पवमानः) श्रेष्ठजनैरुपास्यमानो भवान् (पवस्व) मां पावयतु (कनिक्रदत्) वेदवाग्भिः शब्दायमानो भवान् (वाराणि, परि, अर्ष) श्रेष्ठपुरुषान् लभतां (चम्वोः, क्रीळन्) ब्रह्माण्डे क्रीडां कुर्वन् (पूयमानः) सर्वान् पावयन् (आ, विश) मदन्तःकरणे निवसतु। हे परमात्मन् ! (ते, रसः) भवत आनन्दः (मदिरः) यः सर्वाह्लादकः स (इन्द्रं, ममत्तु) कर्मयोगिनं तर्पयतु ॥२१॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (महोभिः) महापुरुषों से (पवमानः) उपास्यमान आप (पवस्व) हमको पवित्र करें और (कनिक्रदत्) वैदिक वाणियों के द्वारा शब्दायमान होते हुए आप (वाराणि) श्रेष्ठ पुरुषों के प्रति (पर्य्यर्ष) प्राप्त हों और (पूयमानः) सबको पवित्र करते हुए (आविश) हमारे अन्तःकरण में आकर प्रविष्ट हों। हे परमात्मन् ! (ते) तुम्हारा (रसः) आनन्द (मदिरः) जो आह्लादित करनेवाला है, वह (इन्द्रं) कर्म्मयोगी को (ममत्तु) प्रसन्न करे ॥२१॥
भावार्थ
परमात्मा के आन्दाम्बुधि रस को केवल कर्म्मयोगी ही पान कर सकता है, आलसी निरुद्यमी लोग उक्त आनन्द के अधिकारी कदापि नहीं हो सकते ॥२१॥
विषय
तेजस्वी के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (इन्दो) तेजस्विन् ! तू (महोभिः पवमानः) बड़ों से अभिषिक्त, स्नातक होकर (पवस्व) हमें प्राप्त हो। (कनिक्रदत्) गर्जता हुआ, (वाराणि परि अर्ष) वरण करने योग्य, शत्रु-वारण में समर्थ ऐश्वर्यों और बलों को प्राप्त कर। (पूयमानः) अभिषिक्त होकर ही तू (चम्वोः) दोनों सेनाओं के बीच वीरवत् समस्त स्त्री पुरुषों माता पिताओं वा राज प्रजा वर्गों के बीच (आविश) प्रवेश कर। (ते रसः) तेरा बल और ज्ञान रस (मदिरः) हर्षकारी होकर (इन्द्रम् ममत्तु) ऐश्वर्यवान् राजा और राष्ट्र को आह्लादक हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
विषय
'कनिक्रत् + क्रीडन्'
पदार्थ
हे (इन्दो) = सोम ! तू (महोभिः) = अपने तेजों से (पवमानः) = हमें पवित्र करता हुआ (पवस्व) = प्राप्त हो । (कनिक्रदत्) = प्रभु के नामों का स्मरण करता हुआ (वाराणि) = वरणीय धनों को (परि अर्ष) = [अभिगमय] प्राप्त करा । सोम तेजस्विता द्वारा हमें पवित्र करता है, प्रभुस्मरण की ओर हमारा झुकाव करता है, तथा सब वरणीय धनों को प्राप्त कराता है। (पूयमानः) = पवित्र किया जाता हुआ, वासनाओं से मलिन न होता हुआ तू (क्रीडन्) = हमें कीड़क की मनोवृत्ति वाला बनाता हुआ (चम्वोः) = द्यावापृथिवी में, मस्तिष्क व शरीर में (आविशः) = प्रवेश कर । (ते) = तेरा (मदिर:) = आनन्द को देनेवाला (रसः) = रस [सार] (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय पुरुष को (ममत्तु) = आनन्दित करे। तेरे रक्षण से उत्पन्न शक्ति जीवन को उल्लासमय बनाये ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम तेजस्विता द्वारा हमें पवित्र करे । वरणीय धनों को प्राप्त कराये। हमें कीड़क की मनोवृत्ति वाला बनाये [sport's man like spirit]।
इंग्लिश (1)
Meaning
O spirit of light divine, beauty and peace, flow, pure and purifying, adored and exalted by great souls, radiate bright and bold and self-proclaimed, and seep into the heart core of chosen souls. Come playing over and between heaven and earth, enter pure and exalted, and may your exalting spirit of ecstasy exhilarate and exalt the soul and its glory in the world of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराच्या आनंदाम्बुधीचे रस पान केवळ कर्मयोगीच करू शकतो. आळशी, निरुद्यमी लोक आनंदाचे अधिकारी कधीही बनू शकत नाहीत. ॥२१॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal