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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 44
    ऋषिः - विरूप ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    वरू॑त्रीं॒ त्वष्टु॒र्वरु॑णस्य॒ नाभि॒मविं॑ जज्ञा॒ना रज॑सः॒ पर॑स्मात्। म॒ही सा॑ह॒स्रीमसु॑रस्य मा॒यामग्ने॒ मा हि॑ꣳसीः पर॒मे व्यो॑मन्॥४४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वरू॑त्रीम्। त्वष्टुः॑। वरु॑णस्य। नाभि॑म्। अवि॑म्। ज॒ज्ञा॒नाम्। रज॑सः। पर॑स्मात्। म॒हीम्। सा॒ह॒स्रीम्। असु॑रस्य। मा॒याम्। अग्ने॑। मा। हि॒ꣳसीः॒। प॒र॒मे। व्यो॑मन्निति॒ विऽओ॑मन् ॥४४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वरूत्रीन्त्वष्टुर्वरुणस्य नाभिमविञ्जज्ञानाँ रजसः परस्मात् । महीँ साहस्रीमसुरस्य मायामग्ने मा हिँसीः पर्मे व्योमन् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वरूत्रीम्। त्वष्टुः। वरुणस्य। नाभिम्। अविम्। जज्ञानाम्। रजसः। परस्मात्। महीम्। साहस्रीम्। असुरस्य। मायाम्। अग्ने। मा। हिꣳसीः। परमे। व्योमन्निति विऽओमन्॥४४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 44
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    पदार्थ -
    १. हे विरूप! गत मन्त्र के अनुसार स्तवन करनेवाला बनकर विशिष्टरूपता को सिद्ध करनेवाला और (अग्ने) = आगे बढ़नेवाला ! तू (परमे व्योमन्) = इस हृदयाकाश में प्रभु के स्थापन के कारण उत्पन्न हुई (असुरस्य मायाम्) = प्राणशक्ति देनेवाले [ असून् राति] प्रभु की प्रज्ञा को, जहाँ प्रभु हैं वहाँ प्रभु का प्रकाश तो होगा ही, (मा हिंसी:) = नष्ट मत कर। अपने हृदय को उस प्राणों के प्राण प्रभु की प्रज्ञा से पूर्ण रख जो प्रज्ञा २. (त्वष्टुः वरुणस्य) = संसार के निर्माता प्रभु की (वरूत्रीम्) = वरण करनेवाली है। जो प्रज्ञा प्रभु को प्राप्त करानेवाली है। ३. जो प्रज्ञा (वरुणस्य नाभिम्) = श्रेष्ठता का केन्द्र है। प्रज्ञा ही मनुष्य को द्वेषादि से ऊपर उठाकर उत्तम जीवनवाला बनाती है। (अविम्) = जो रक्षण करनेवाली है तथा जो प्रज्ञा (रजसः परस्मात्) = रजोगुण से पर देश में (जज्ञानाम्) = प्रादुर्भूत होती है, अर्थात् जो प्रज्ञा रजोगुण से ऊपर उठने पर प्राप्त होती है। ४. (महीम्) = यह प्रज्ञा तुझे 'मह पूजयाम्' पूजा की मनोवृत्तिवाला बनाती है । ५. (साहस्त्रीम्) = [सहस्रोपकारक्षमम्] यह प्रज्ञा तुझे हज़ारों के उपकार में सक्षम करती है। तू अधिक-से-अधिक कल्याण करने में समर्थ होता है।

    भावार्थ - भावार्थ- हम हृदयाकाश में प्रकट होनेवाले प्रभु के प्रकाश को नष्ट न होने दें, जिससे हम द्वेष व दुर्गुणों से ऊपर उठकर सहस्रशः प्राणियों का कल्याण करनेवाले बनें।

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