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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 20
    सूक्त - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - भुरिग्गायत्री सूक्तम् - रुद्र सूक्त

    मा नो॑ हिंसी॒रधि॑ नो ब्रूहि॒ परि॑ णो वृङ्ग्धि॒ मा क्रु॑धः। मा त्वया॒ सम॑रामहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । न॒: । हिं॒सी॒: । अधि॑ । न॒: । ब्रू॒हि॒ । परि॑ । न॒: । वृ॒ङ्ग्धि॒ । मा । क्रु॒ध॒: । मा । त्वया॑ । सम् । अ॒रा॒म॒हि॒ ॥२.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो हिंसीरधि नो ब्रूहि परि णो वृङ्ग्धि मा क्रुधः। मा त्वया समरामहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । न: । हिंसी: । अधि । न: । ब्रूहि । परि । न: । वृङ्ग्धि । मा । क्रुध: । मा । त्वया । सम् । अरामहि ॥२.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 20

    पदार्थ -

    १. हे पशुपते! (न: मा हिंसी:) = हमें हिसित मत कीजिए। (न:) = हमें (अधिब्रुहि) = आधिक्येन ज्ञानोपदेश कीजिए। (न:) = हमें (परिवन्धि) = सब पापों से बचाइए। (मा धः) = हमपर क्रोध मत कीजिए। सदा शुभाचरण करते हुए हम आपके प्रिय बनें। २.हे प्रभो! हम त्वया आपके साथ (मा समरामहि) = समर [युद्ध] की स्थिति में न हों। सदा आपके निर्देशों के अनुसार चलनेवाले हों।

    भावार्थ -

    हम प्रभु से ज्ञान प्राप्त करके तदनुसार गति करते हुए कभी प्रभु के क्रोध के पात्र न हों।

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